...जीवाश्म ईंधन में कटौती ज़रूरी

संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व को अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि से होने वाली "तबाही" से बचना है, तो 2020 और 2030 के बीच, देशों को जीवाश्म ईंधनों के उत्पादन में, कम से कम 6 प्रतिशत की कमी करनी होगी.
कोरोनावायरस महामारी के बीच, बुधवार को जारी 'उत्पादन अन्तर रिपोर्ट' से यह भी मालूम होता है कि महामारी और उसके परिणामस्वरूप हुई तालाबन्दी से जहाँ कोयला, तेल और गैस उत्पादन में कुछ समय के लिये कमी आई, लेकिन कोविड-19 शुरू होने से पहले की योजनाओं और उससे निपटने के उपाय, जीवाश्म ईंधन उत्पादन में वृद्धि की ओर इशारा करते हैं.
Scientists tell us that unless the world cuts fossil fuel production by 6% every year until 2030, things will get much worse.Instead, it is on track to go up by 2% each year.We are going in the wrong direction. Only determined #ClimateAction can prevent disaster. pic.twitter.com/l7WB0EFYyF
antonioguterres
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की कार्यकारी निदेशक, इन्गेर एण्डरसन ने कहा है, "जब हम कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्थाओं की पुनर्बहाली करने में लगेंगे, ऐसे में कम कार्बन वाली ऊर्जा व बुनियादी ढाँचे में निवेश करना, रोज़गार व अर्थव्यवस्थाओं और स्वास्थ्य के लिये अच्छा होगा."
"सरकारों को, जीवाश्म ईंधन को अपनी अर्थव्यवस्थाओं और ऊर्जा प्रणालियों से दूर करने के इस अवसर का लाभ उठाकर, अधिक न्यायसंगत, टिकाऊ और लचीले भविष्य का निर्माण करना चाहिये."
उत्पादन अन्तर रिपोर्ट, अनुसन्धान संस्थानों - स्टॉकहोम पर्यावरण संस्थान (SEI), अन्तरराष्ट्रीय टिकाऊ विकास संस्थान (IISD), विदेशी विकास संस्थान और ई3जी - व यूनेप ने संयुक्त रूप से तैयार की है.
ये रिपोर्ट पेरिस समझौते की आकाँक्षाओं और देशों की कोयला, तेल और गैस के नियोजित उत्पादन के बीच के "अन्तर" को मापती है.
रिपोर्ट तैयार करने वाले संगठनों के अनुसार, यह रिपोर्ट एक ऐसे सम्भावित मोड़ पर आई है, जब वैश्विक महामारी के कारण सरकारें अभूतपूर्व कार्रवाई में लगी हैं - और चीन, जापान व कोरिया गणराज्य सहित प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने नैट-ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुँचने का वादा किया है.
2020 के संस्करण में पाया गया कि "उत्पादन अन्तर" बड़ा बना हुआ है: ज़्यादातर देश 2030 में जीवाश्म ईंधन के दोगुने से अधिक उत्पादन की योजना बनाए हुए हैं, जो 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान की प्रस्तावित सीमा के विपरीत है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि रिपोर्ट में "बिना सन्देह" यह दर्शाया गया है कि यदि दुनिया पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहती है, तो जीवाश्म के उत्पादन और उपयोग को तुरन्त कम करना होगा.
उन्होंने कहा, "यह सभी देशों के लिये जलवायु-सुरक्षित भविष्य और मज़बूत, टिकाऊ अर्थव्यवस्थाएँ सुनिश्चित करने के लिये बेहद महत्वपूर्ण है – विशेषकर उनके लिये, जिन्होंने धुएँ वाली धूसर से हरित अर्थव्यवस्था की ओर क़दम बढ़ाया है."
“सरकारों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाने और श्रमिकों की सहायता करने पर काम करना चाहिये. इनमें कोविड पुनर्बहाली की वो योजनाएँ भी शामिल की जानी चाहिये, जो उन्हें ग़ैर-टिकाऊ जीवाश्म ईंधन मार्गों में बन्द नहीं करतीं, बल्कि हरित और टिकाऊ पुनर्बहाली से लाभान्वित भी करतीं हैं. हम साथ मिलकर, बेहतर पुनर्बहाली कर सकते हैं.”
रिपोर्ट में कार्रवाई के प्रमुख क्षेत्रों को रेखांकित किया गया है और कोविड-19 पुनर्बहाली योजनाओं को लागू करने वाले नीति निर्माताओं को जीवाश्म ईंधन को कम करने के लिये विकल्प दिये गए हैं.
रिपोर्ट की सह-लेखिका और आईआईएसडीटी में टिकाऊ ऊर्जा आपूर्ति की प्रमुख, इवेत्ता गेरासिमचुक ने कहा, "सरकारों को पुनर्बहाली की निधि - आर्थिक विविधता और स्वच्छ ऊर्जा में लगानी चाहिये, जो बेहतर दीर्घकालिक आर्थिक व रोज़गार क्षमता प्रदान करते हैं."
उन्होंने यह भी कहा कि इस साल महामारी के कारण मांग को झटका लगने और तेल की क़ीमतों में गिरावट ने, जीवाश्म ईंधन पर निर्भर क्षेत्रों और समुदायों की कमज़ोरियाँ उजागर कर दी है.
उन्होंने कहा, "इस जाल से निकलने का एकमात्र रास्ता जीवाश्म ईंधन छोड़कर, इन अर्थव्यवस्थाओं को विविधतापूर्ण बनाना है."
रिपोर्ट में, जीवाश्म ईंधन के लिये मौजूदा सरकारी समर्थन में कटौती करने, उसके उत्पादन पर प्रतिबन्ध लगाने और हरित निवेश के लिये प्रोत्साहन राशि देने जैसे क़दम उठाने का आग्रह किया गया है.
रिपोर्ट के सह-लेखक और एसईआई के यूएस सैण्टर के प्रमुख, माइकल लज़ारस ने ज़ोर देते हुए कहा, "शोध से बहुत स्पष्ट है कि अगर हम मौजूदा स्तरों पर जीवाश्म ईंधन का उत्पादन जारी रखते हैं, तो हमे गम्भीर जलवायु व्यवधान का सामना करना पड़ेगा.”
"रिपोर्ट में समाधान भी स्पष्ट किये गए हैं: सरकारी नीतियाँ जो जीवाश्म ईंधन की मांग और आपूर्ति कम करें, और उन पर निर्भर समुदायों की मदद करें. यह रिपोर्ट ऐसे क़दम पेशकश करती है, जो सरकारें जीवाश्म ईंधन रहित, न्यायसंगत और समानता पर आधारित बदलाव के लिये उठा सकती हैं.”