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विकलाँग व्यक्तियों के अधिकारों को पहचान व सुरक्षा देने की ज़रूरत

मलेशिया के कुआलालम्पुर में एक किशोर लड़का, एक विशेष शिक्षा स्कूल में, विशेष सॉफ़्टवेयर के ज़रिये, कम्पूटर सीखने की कोशिश करते हुए.
UNICEF/Pirozzi
मलेशिया के कुआलालम्पुर में एक किशोर लड़का, एक विशेष शिक्षा स्कूल में, विशेष सॉफ़्टवेयर के ज़रिये, कम्पूटर सीखने की कोशिश करते हुए.

विकलाँग व्यक्तियों के अधिकारों को पहचान व सुरक्षा देने की ज़रूरत

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र ने समाजों में विकलाँग व्यक्तियों के और ज़्यादा समावेशन और उनके मानवाधिकारों को पहचान देने के साथ-साथ उनका सम्मान किये जाने का आहवान किया है. गुरुवार को विकलाँग व्यक्तियों के अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर ये आहवान किया गया है. 

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरश ने एक सन्देश में कहा है, “ये अधिकार जीवन के हर क्षेत्र से सम्बन्धित हैं: स्कूली शिक्षा हासिल करने का अधिकार, अपने समुदायों में रहने का अधिकार, स्वास्थ्य देखभाल हासिल करने का अधिकार, पारिवारिक जीवन जीने का अधिकार, राजनैतिक गतिविधियों में शिरकत करने का अधिकार, खेलकूद में शिरकत करने और आनन्द लेने का अधिकार – और शिष्ट व सम्मानजनक कामकाज करने का अधिकार.” 

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कोरोनावायरस ने दुनिया भर में ज़िन्दगियों उथल-पुथल मचा दी है और पहले से ही मौजूद असमाताएँ और ज़्यादा गहरी कर दी हैं, विकलाँग लोग, सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वालों में शामिल हैं. उनके बहुत ज़्यादा ग़रीबी में जीवन जीने और हिंसा, उपेक्षा व दुर्व्यवहार का ज़्यादा सामना करने की सम्भावना है.

यूएन प्रमुख ने आग्रह करते हुए कहा, “अब जबकि दुनिया कोरोनावायरस से उबरने के प्रयासों में लगी है, हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि विकलाँग व्यक्तियों की अपेक्षाओं व अधिकारों का ख़याल रखा जाए, और कोविड-19 के बाद के दुनिया को ज़्यादा समावेशी, सर्वसुलभ और टिकाऊ बनाया जाए.”

उन्होंने कहा, “ये लक्ष्य विकलाँग व्यक्तियों और उनका प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों के साथ सार्थक बातचीत करके ही हासिल किया जा सकता है.”

“इस अन्तरराष्ट्रीय विकलाँग व्यक्तियों के दिवस पर, आइये, हम सब उन बाधाओं, अन्यायों और भेदभाव का सामना करने के लिये एकजुट होकर काम करें जिनका सामना विकलाँग व्यक्तियों को करना पड़ता है.”

अतीत और भविष्य

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भी विश्व नेताओं का आहवान किया है कि विकलाँग व्यक्तियों को कोविड-19 से उबरने के प्रयासों, योजनाओं और कार्यों में पूरी तरह से शामिल किया जाए.

विकलाँग व्यक्तियों के अधिकारों पर समिति के अध्यक्ष दनलामी उमारू बशारू का कहना है, “पिछले कुछ महीनों से ये अनुभव हासिल हुआ है कि विकलाँग व्यक्तियों के साथ बातचीत का अभाव रहा है, इसके कारण स्वभाविक समस्याओं से ध्यान हट गया और कोविड-19 का सामना करने के प्रयासों पर नकारात्मक असर पड़ा.”

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विकलाँग व्यक्तियों के अधिकारों पर विशेष रैपोर्टेयर गेरार्ड क्विन्न का कहना है कि समान व न्यायसंगत, टिकाऊ और सहनशील समाजों की स्थापना का लक्ष्य, केवल मानावधिकारों पर आधारित रुख़ अपनाकर ही हासिल किया जा सकता है.

जॉर्डन के ज़ाआतारी शरणार्थी शिविर में बनाए गए एक समावेशी स्कूल में, एक 9 वर्षीय बच्ची, अपनी सहेलियों के साथ खेलते हुए.
UNICEF/Herwig
जॉर्डन के ज़ाआतारी शरणार्थी शिविर में बनाए गए एक समावेशी स्कूल में, एक 9 वर्षीय बच्ची, अपनी सहेलियों के साथ खेलते हुए.

उन्होंने कहा, “इन उपायों में, विकलाँग व्यक्तियों को सशक्त बनाने और समुदायों में उनका सामाजिक व राजनैतिक समावेश करने के लिये, शिक्षा को एक अनिवार्य तत्व के रूप में पहचान दी जाए... भविष्य, अतीत की तरह नहीं हो सकता, और पुनर्बहाली की पूरी प्रक्रिया में ये ध्यान रखा जाना बहुत ज़रूरी है.”

शिक्षा पर प्रभाव

संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक, वैज्ञानिक और साँस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने, कोविड-19 महामारी का सामना करने और उसका असर कम करने के लिये उठाए गए क़दमों का विकलाँगता वाले बच्चों और युवाओं पर होने वाले असर की तरफ़ ध्यान दिलाया है, जिनमें स्कूलों का बन्द होना भी शामिल है.

यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने कहा है कि अक्सर ये लोग ही अपनी शिक्षा में आए व्यवधान से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने के जोखिम का सामना करते हैं.

उन्होंने आगाह करने के अन्दाज़ में कहा दूरस्थ शिक्षा मुहैया कराने वाले बहुत से तरीक़े और उपाय, विकलाँग व्यक्तियों की विशिष्ठ ज़रूरतों पर खरा नहीं उतरते. 

यूनेस्को महानिदेशक ने कहा, “ये बहुत अहम है कि ऐसे समाधान तलाश करने की प्रक्रिया में विकलाँग व्यक्तियों को भी शामिल किया जाए, जो हर एक इनसान को ध्यान में रखें और जिनमें अनुभवों से सबक़ सीखा जाए.”

अन्तरराष्ट्रीय दिवस

अन्तरराष्ट्रीय विकलाँग व्यक्ति दिवस हर वर्ष 3 दिसम्बर को मनाया जाता है. ये दिवस संयुक्त राष्ट्र महासभा ने, विकलाँग व्यक्तियों के जीवन के बारे जागरूकता बढ़ाने और समाजों में उनके समावेश और विकास की ख़ातिर समर्थन जुटाने के वास्ते, अक्टूबर 1992 में शुरू किया था.