महिलाएँ, शान्ति व सुरक्षा एजेण्डा को आगे बढ़ाने के लिये यूएन के अथक प्रयास

सशस्त्र हिंसक संघर्ष का महिलाओं व लड़कियों पर अनुपात से ज़्यादा असर होता है और इसके मद्देनज़र संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षा अभियानों में महिलाओं की पूर्ण, समान व अर्थपूर्ण भागीदारी को प्राथमिकता दी जा रही है. यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने शान्तिरक्षा अभियानों में महिलाएँ, शान्ति व सुरक्षा के मुद्दे पर आयोजित एक गोलमेज़ चर्चा में यह बात कही है.
महासचिव गुटेरेश ने गुरुवार को बैठक के दौरान सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1325 की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए उसे अन्तरराष्ट्रीय शान्ति की बुनियाद क़रार दिया.
उन्होंने कहा कि अक्टूबर का महीना अभूतपूर्व बदलाव लाने वाले उस प्रस्ताव की 20वीं वर्षगाँठ है.
यह प्रस्ताव शान्ति व सुरक्षा से जुड़े हर क्षेत्र में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये और अधिक प्रयासों की ज़रूरत का ध्यान दिलाता है. साथ ही इससे लैंगिक असमानता व नाज़ुक हालात और महिला सुरक्षा व अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा के बीच सम्बन्ध को रेखांकित होता है.
Peace is only sustainable if women are fully involved in all stages of the process. @UNPeacekeeping works alongside women leaders and women’s organizations towards a full, meaningful & equal participation of women in peace processes. #UNSCR1325 #WPSin2020 pic.twitter.com/uRAclztVLV
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“तभी से, संयुक्त राष्ट्र ने महिलाएँ, शान्ति व सुरक्षा एजेण्डा को आगे बढ़ाने के लिये अथक प्रयास किये हैं.”
यूएन प्रमुख ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान महिलाओं ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सन्देशों को आगे बढ़ाया है लेकिन वे अनेक मुश्किलों में घिर गई हैं.
अनेक समाजों में उन्हें पारिवारिक देखभाल और आर्थिक कठिनाइयों के बोझ का सामना करना पड़ रहा है और घरेलू हिंसा के मामलों में भी बढ़ोत्तरी हुई है.
हिंसा प्रभावित इलाक़ों में महिलाएँ अक्सर समुदायों में शान्ति क़ायम करने में भूमिका निभाती हैं लेकिन राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें नज़रअन्दाज़ किया जाना अब भी बरक़रार है.
वर्ष 2018 में कुल वार्ताकारों में महज़ 13 फ़ीसदी महिलाएँ थीं, जबकि मध्यस्थकारों में महिलाओं की संख्या सिर्फ़ तीन प्रतिशत है. शान्ति समझौतों पर हस्ताक्षरकर्ताओं में चार फ़ीसदी महिलाएँ हैं.
यूएन महासचिव ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि महिलाओं को अपनी आवाज़ सुनाने के लिये लड़ना पड़ता है जबकि अब तथ्य मज़बूती से दर्शाते हैं कि महिलाओं की भागीदारी से टिकाऊ शान्ति का मार्ग प्रशस्त होता है.
इस बैठक में मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, साइप्रस, सूडान और माली की महिला नेताओं के सम्बोधन से पहले महासचिव गुटेरेश ने इन देशों के अपने अनुभव साझा किये.
उन्होंने इन देशों में स्थानीय पीड़ाएँ दूर करने और शान्ति स्थापित करने में महिलाओं को केन्द्रीय भूमिकाओं में देखा.
“दारफ़ूर की महिलाओं ने निरन्तर शान्ति व सुरक्षा की पैरवी की है और उस दिशा में और वर्तमान में जारी राष्ट्रीय राजनैतिक बदलाव प्रक्रिया के लिये कार्य किया है.”
उन्होंने कहा कि हाल ही में जूबा शान्ति वार्ता के दौरान महिला हस्ताक्षरकर्ताओं को बुलाया जाना एक बड़ी उपलब्धि है.
मध्य अफ़्रीकी गणराज्य के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब महिलाओं ने ख़ारतूम शान्ति वार्ता में हिस्सा लिया और एक महिला ने पिछले साल शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर किये.
उन्होंने कहा कि माली में महिलाएँ अहम राजनैतिक भूमिकाएँ निभा रही हैं जबकि साइप्रस में वर्ष 2015 से 2017 के दौरान वार्ताओं में दोनों पक्षों की ओर से महिलाओं ने शिरकत की.
इसके बावजूद राजनैतिक विफलताएँ, महिला संगठनों में निवेश की कमी और गहराई से समाई पुरुषवादी मानसिकता व दबदबे के कारण महिलाओं की प्रगति में रुकावट आ रही है जिसे बदले जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने सरकारों, यूएन प्रणाली, क्षेत्रीय व नागरिक समाज संगठनों सहित अन्य पक्षकारों से निडर क़दम उठाने का आग्रह किया है ताकि महिलाएँ, शान्ति व सुरक्षा के एजेण्डे को समग्रता से लागू किया जा सके.