कोविड-19: बच्चों पर असर को समझने के लिये और ज़्यादा शोध की ज़रूरत

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोविड-19 से बच्चों और किशोरों के गम्भीर रूप से बीमार होने के जोखिम के कारणों की पड़ताल किये जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया है. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस के मुताबिक मोटे तौर पर बच्चे इस बीमारी के गम्भीर प्रभावों से अछूते रहे हैं लेकिन उन्हें अन्य प्रकार की अनेक पीड़ाओं का अनुभव करना पड़ा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) और संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवँ सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के प्रमुखों ने मंगलवार को एक प्रैस वार्ता को सम्बोधित किया.
We all want to:-see children back at school-ensure schools are safe environmentsTo support countries, @UNESCO, @UNICEF & @WHO updated school-related public health guidance for #COVID19.I thank @unicefchief & @AAzoulay for their partnership & for joining our presser today. https://t.co/Bs6LIasQsJ pic.twitter.com/qQPFS7VF8X
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यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने बताया कि कोविड-19 महामारी की शुरुआत से ही बच्चों पर उसके प्रभावों को समझना एक प्राथमिकता रही है.
“महामारी शुरू होने के नौ महीने बाद बहुत सेवाल अनसुलझे हैं लेकिन हमें एक स्पष्ट तस्वीर नज़र आ रही है. हम जानते हैं कि बच्चे और किशोर भी इस महामारी से संक्रमित हो सकते हैं और अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं.”
“हम जानते हैं कि यह वायरस बच्चों की जान ले सकता है लेकिन बच्चों में संक्रमण हल्का होता है और बच्चों व किशोरों में गम्भीर संक्रमण और मौतों के मामले बेहद कम होते हैं.”
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के आँकड़ों के मुताबिक 20 वर्ष से कम उम्र के लोगों में कोरोवायरस संक्रमण के मामलों की कुल संख्या के 10 फ़ीसदी मामले सामने आए हैं और 0.2 फ़ीसदी की मौत हुई है.
लेकिन ऐसे कारणों को जानने के लिये और ज़्यादा शोध किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है जिनसे बच्चों और किशोरों के लिये संक्रमण का जोखिम बढ़ता है.
इसके अलावा, संक्रमितों के दीर्घकालीन स्वास्थ्य पर होने वाले असर के प्रति भी समझ विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है.
विश्व भर में तालाबन्दी और अन्य ऐहतियाती उपायों से करोड़ों बच्चे प्रभावित हुए हैं जिससे शिक्षा के साथ-साथ अन्य प्रकार की महत्वपूर्ण सेवाओं पर भी असर पड़ा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने आगाह किया कि स्कूल बन्द करना आख़िरी विकल्प के तौर पर इस्तेमाल होना चाहिये – अस्थाई रूप से उन इलाक़ों में जहाँ संक्रमण तेज़ी से फैल रहा हो.
स्कूल बन्द रखने की अवधि का इस्तेमाल कोरोनावायरस महामारी की रोकथाम के उपाय करने और स्कूल खुलने पर बच्चों को उससे सुरक्षित रखने के इन्तेज़ाम करने के लिये किया जाना चाहिये.
“बच्चों को सुरक्षित रखना और उन्हें शिक्षा के लिये स्कूलों में लाना, सिर्फ़ स्कूलों, या सरकार या परिवार की ही ज़िम्मेदारी नहीं है. यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है, एक साथ मिलकर काम करने की.”
“समुचित उपायों के मिश्रण के ज़रिये हम अपने बच्चों को सुरक्षित रख सकते हैं और उनमें जागरूकता फैला सकते हैं कि स्वास्थ्य और शिक्षा, जीवन में दो सबसे मूल्यवान चीज़ें हैं.”
ग़ौरतलब है कि स्कूल बन्द होने से विश्व भर में करोड़ों बच्चे प्रभावित हुए हैं. विभिन्न देशों में अलग हालात होने की वजह से यूएन एजेंसियों ने स्कूलों में सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के सन्दर्भ में नए दिशा-निर्देश जारी किये हैं.
इन दिशा-निर्देशों में संक्रमण के मामले ना होने, छिटपुट संक्रमणों का पता चलने, किसी स्थान पर संक्रमणों के ज़्यादा मामलों के उभरने या सामुदायिक फैलाव से निपटने के लिये वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर दिशा-निर्देश उपलब्ध कराए गए हैं.
यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने स्कूलों की अहमियत पर बल देते हुए कहा कि वे शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य, संरक्षण और पोषण भी प्रदान करते हैं.
“स्कूल जितने लम्बे समय तक बन्द रहते हैं, उसके उतने ही हानिकारक नतीजे होंगे, विशेषत: कमज़ोर वर्गों से आने वाले बच्चों के लिये... इसलिये, स्कूल सुरक्षित ढँग से फिर खोला जाना हम सभी के लिये एक प्राथमिकता होना चाहिये.”
स्कूलों को सुरक्षित ढंग से फिर खोले जाने के अलावा यह भी सुनिश्चित किया जाना होगा कि कोई भी पीछे ना छूटने पाए.
उन्होंने कहा कि कुछ देशों में बच्चे कक्षाओं में नहीं लौटे हैं और आशंका जताई जा रही है कि बहुत सी लड़कियाँ फिर स्कूल कभी नहीं आ पाएँगी.
इस पृष्ठभूमि में उन्होंने दोहराया है कि आज लिये गए फ़ैसले भविष्य की दुनिया को प्रभावित करेंगे.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर ने भी ध्यान दिलाया कि विश्व में छात्रों की आधी आबादी अभी भी स्कूल लौट नहीं पाई है और लगभग एक-तिहाई छात्र घर बैठकर पढ़ाई से जुड़ने में असमर्थ हैं.
उन्होंने मौजूदा हालात को वैश्विक शिक्षा की आपात स्थिति घोषित किया है.
“हम जानते हैं कि स्कूल लम्बी अवधि तक बन्द किये जाने के कारण बच्चों पर विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं.” इससे उनके साथ शारीरिक, यौन और भावनात्मक हिंसा का ख़तरा बढ़ जाता है.
हाल ही में 158 देशों में कराए गये यूनीसेफ़ के एक सर्वेक्षण के मुताबिक एक-चौथाई देश ऐसे हैं जहाँ छात्रों को कक्षाओं में वापिस लाने का कार्यक्रम अभी तय नहीं हो पाया है.
उन्होंने सरकारों से स्कूल खोले जाने को प्राथमिकता देने, पाबन्दियाँ हटाने का कार्यक्रम तय करने और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, संरक्षण और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान केन्द्रित करने की बात कही है.
साथ ही घर से बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिये नवाचार माध्यमों का सहारा लेने का सुझाव दिया गया है ताकि ऑनलाइन, टीवी और रेडियो के ज़रिये भी पढ़ाई-लिखाई जारी रखी जा सके.