अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ती हिंसा के बीच शान्ति वार्ता पर ख़तरा

अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की वरिष्ठ अधिकारी ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि शान्ति वार्ता की औपचारिक शुरुआत से पहले देश में हिंसा रिकॉर्ड स्तर के नज़दीक पहुँच गई है जिससे अविश्वास का माहौल बन रहा है. यूएन महासचिव की ओर से नियुक्त विशेष प्रतिनिधि डेबराह लियोन्स ने आशंका जताई है कि मौजूदा हालात से सरकार और तालेबान के बीच होने वाली बहुप्रतीक्षित वार्ता के प्रयास विफल हो सकते हैं.
विशेष प्रतिनिधि और अफ़ग़ानिस्तान में यूएन मिशन (UNAMA) की प्रमुख डेबराह लियोन्स ने सुरक्षा परिषद को हालात से अवगत कराते हुए बताया कि अफ़ग़ानिस्तान के विभिन्न पक्षों में बातचीत देश के इतिहास में एक ऐतिहासिक लम्हा है और बहुत कुछ दाँव पर लगा है.
“After four decades of war, the people of #Afghanistan have more reason than ever to hope that this devastating conflict may come to an end,” UN envoy @DeborahLyonsUN tells Security Council. More: https://t.co/N3lhm8supy pic.twitter.com/0JTnVDPaLu
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पिछले चार दशकों से चले आ रहे संघर्ष के कारण अब भी सैकड़ों लोगों की हर सप्ताह मौतें हो रही है और वर्षों से लोग विस्थापन का शिकार हैं. इनमें से बहुत से लोगों के जल्द देश वापिस लौटने की सम्भावना नहीं है.
अफ़ग़ान सरकार और तालेबान के बीच वार्ता की मेज़बानी क़तर कर रहा है.
यूएन मिशन की प्रमुख ने सभी पक्षों से मानवीय राहत के लिये युद्धिवराम को एजेण्डा में सर्वोपरि रखने का आहवान किया है.
उन्होंने वार्ता आयोजित करने के प्रयासों के लिये क़तर, अमेरिका और पाकिस्तान का आभार जताया है जिनके कूटनीतिक प्रयासों से सभी पक्षों को बातचीत की मेज़ तक लाने में सफलता मिली है.
यूएन मिशन की प्रमुख के मुताबिक वार्ता शुरू होने से पहले के चरण में बन्दियों की रिहाई जैसे मुश्किल मुद्दों को पहले ही उठाया जा चुका है जिन्हें सुलझाने में लगभग पाँच महीने का समय लगा है.
उन्होंने आगाह किया कि बातचीत के दौरान पक्षों को कुछ ऐसे गहरे सवालों का सामना करना होगा जिनके मूल में छिपा होगा कि अफ़ग़ान नागरिक अपने लिये किस तरह का देश चाहते हैं. “समाधान रणभूमि पर नहीं ढूँढे जा सकते या उन्हें बाहर से नहीं थोपा जा सकता.”
विशेष प्रतिनिधि ने कहा कि सभी पक्षों को अपनी भूमिका निभानी होगी ताकि बातचीत को ज़मीनी स्तर पर फलने- फूलने में मदद मिल सके.
संयुक्त राष्ट्र ने दोनों पक्षों के साथ बातचीत शुरू की है जिसमें शान्ति वार्ता में पीड़ितों की आवाज़ों को शामिल करने और पीड़ितों पर केन्द्रीय न्यायिक प्रक्रिया को सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है.
“यह एक मुश्किल विषय है, लेकिन ज़रूरी है.”
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि जब पीड़ितों की पीड़ाओं की शिनाख़्त होती है, उन्हें मरहम लगाया जाता है, तभी वास्तविक अर्थों में आपसी मेल-मिलाप सम्भव हो पाता है.
विशेष प्रतिनिधि डेबराह लियोन्स ने कहा कि वार्ता में शामिल पक्षों के लिये महिलाओं के अधिकार एक मुश्किल मुद्दा हैं और इस पर समझौता सदस्य देशों के लिये चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है. महिलाधिकारों पर समझौता सदस्य देशों के लिये दुविधा का कारण बन सकता है.
“हाल के समय में किसी अन्य शान्ति वार्ता के मुक़ाबले अफ़ग़ान शान्ति प्रक्रिया में यह मुद्दा ज़्यादा अहम होगा.”
यूएन मिशन प्रमुख देश भर में महिलाओं के नैटवर्क से सम्पर्क करने में जुटी हैं.
उन्होंने कहा कि शान्ति वार्ता पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व उनके अधिकार सुनिश्चित करने का सर्वश्रेष्ठ अवसर प्रदान करता है जिससे एक शान्तिपूर्ण अफ़ग़ानिस्तान की दिशा में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी.
तालेबान के प्रतिनिधिमण्डल में अभी किसी महिला सदस्य के शामिल होने की जानकारी नहीं है लेकिन विशेष प्रतिनिधि ने उम्मीद जताई है कि वार्ताकार महिलाओं को अपनी टीम में शामिल होने का रास्ता तलाश कर लेंगे.