आतंकवाद के पीड़ितों की आवाज़ों को कभी नहीं भुलाया जाएगा - महासचिव

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि आतंकवादी हमलों से पहुँचने वाला गहरा सदमा पीड़ितों को जीवन-पर्यन्त प्रभावित कर सकता है और उनका असर पीढ़ियों तक महसूस किया जाता है. यूएन प्रमुख ने शुक्रवार, 21 अगस्त, को आतंकवाद के पीड़ितों के स्मरण और श्रृद्धांजलि के अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर एक वर्चुअल कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए भरोसा दिलाया है कि संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद के सभी पीड़ितों के साथ एकजुटता से खड़ा है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने आतंकवाद के सभी पीड़ितों का स्मरण और सम्मान करते हुए भरोसा दिलाया कि यूएन उन सभी लोगों के साथ मज़बूती से खड़ा है जो आतंकी अत्याचारों के शारीरिक व मनोवैज्ञानिक ज़ख़्मों के साथ जी रहे हैं.
"The United Nations stands in solidarity with all victims of terrorism -- today and every day."-- @antonioguterres on Friday's #VictimsOfTerrorism Day. https://t.co/f5ViX7voDA pic.twitter.com/I6su5giPjd
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“सदमा देने वाली यादें मिटाई नहीं जा सकतीं लेकिन हम सच्चाई, न्याय और मुआवज़े की माँग करके, उनकी आवाज़ों को बुलन्द करके और मानवाधिकार सुनिश्चित करके पीड़ितों और जीवित बचे लोगों की मदद कर सकते हैं.”
वर्ष 2020 में इस दिवस पर आयोजन कोविड-19 महामारी की पृष्ठभूमि में ऐसे समय में हो रहे हैं जब पीड़ितों के लिये आपराधिक न्याय प्रक्रियाओं और मनोसामाजिक जैसी अहम सेवाओं में व्यवधान आया है और सरकारों का ध्यान व संसाधन महामारी से निपटने के प्रयासों पर केन्द्रित हैं.
कोरोनावायरस संकट के कारण अनेक स्मृति समारोह या तो स्थगित किये गए हैं या फिर उन्हें वर्चुअली आयोजित किया जा रहा है जिससे पीड़ितों को एक दूसरे के पास मौजूद रहकर सहारा और सम्बल देने का अवसर नहीं है.
मौजूदा पाबन्दियों के कारण आतंकवाद के पीड़ितों की पहली वैश्विक काँग्रेस भी अगले वर्ष तक के लिये स्थगित कर दी गई है जिसे पहली बार आयोजित किये जाने की तैयारियाँ थी.
महासचिव ने ज़ोर देकर कहा, “लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि हम इस अहम मुद्दे को प्रकाश में रखें.”
“आतंकवाद के पीड़ितों को याद करना और उन्हें समर्थन के लिये ज़्यादा प्रयास करना उनके जख़्मों पर मरहम लगाने और उसे फिर शुरू करने के लिये बेहद ज़रूरी है.”
यूएन प्रमुख ने सासंदों और सरकारों से इस सिलसिले में ज़रूरी क़ानूनों व राष्ट्रीय रणनीतियों का मसौदा तैयार करने का आग्रह किया है ताकि पीड़ितों को मदद पहुँचाई जा सके.
महासचिव ने ज़ोर देकर कहा है कि संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद के सभी पीड़ितों के साथ एकजुटता से खड़ा है – आज और हर दिन. उन्होंने ध्यान दिलाया कि जिन लोगों ने ये पीड़ा झेली है उनकी आवाज़ों को हमेशा सुना जाना होगा और कभी नहीं भुलाना होगा.
आतंकवादी घटनाओं में जीवित बचे लोगों ने वर्चुअल कार्यक्रम में अपनी आपबीती कहानियों को साझा करते हुए बताया कि किसी भी प्रकार के हमले में बच जाने के बावजूद उसके सदमे व असर को लम्बे समय तक नहीं भूला जा सकता.
पाकिस्तान के ताहिर की पत्नी की मौत इस्लामाबाद में विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के कार्यालय पर हुए हमले में हो गई थी.
उन्होंने कहा कि अगर किसी के साथ कोई दुर्घटना होती है तो कुछ मालूम होता है कि ख़ुद को किस तरह सम्भालना है. लेकिन एक आतंकी हमले में किसी की मौत के बाद ऐसा सम्भव नहीं है.
नीजिल के पिता वर्ष 1998 में केनया में यूएन दूतावास पर हुए हमले में मारे गए थे. उस समय नीजिल बहुत छोटे थे.
22 वर्षीय नीजिल ने बताया कि जब आप बड़े हो रहे होते हैं तो इसका बहुत ज़्यादा असर नहीं होता लेकिन जैसे-जैसे ज़िन्दगी आगे बढ़ेगी, मैं ख़ुद को यही सोचता पाऊँगा कि अगर मैं ऐसा करता और मेरे पिता यहाँ होते तो क्या वो मुझ पर गर्व करते?
ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली जूली ने अपनी 21 वर्षीय बेटी को 2017 के लन्दन हमले में खो दिया था. उन्होंने बताया कि ऑस्ट्रेलियाई पुलिस उनके घर आई और कहा कि एक शव मिला है जिसकी शिनाख़्त नहीं हो पाई है.
इसके बाद हमें लन्दन जाने के लिये कहा गया. जूली के मुताबिक किसी भी अभिभावक के लिये इन हालात में अपने बच्चे को खोना ताउम्र पीड़ा का कारण बन जाता है.