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मानवाधिकार सन्धि संस्थाओं के कामकाज पर मँडराता ‘जोखिम’

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद.
UN Photo/Elma Okic
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद.

मानवाधिकार सन्धि संस्थाओं के कामकाज पर मँडराता ‘जोखिम’

मानवाधिकार

अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार सन्धियों के क्रियान्वयन की निगरानी करने वाली संयुक्त राष्ट्र समितियों के प्रमुखों ने सदस्य देशों से उनके कामकाज को समर्थन देने की अपील की है. साथ ही उन्होंने एक चेतावनी जारी की है कि इस वर्ष वित्तीय संसाधन उपलब्ध ना कराए जाने के कारण सितम्बर के बाद आगामी समीक्षा बैठकों पर असर पड़ने की आशंका है. 

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रणाली के तहत महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभाव के उन्मूलन पर समिति, नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर समिति, जबरन ग़ायब किये जाने पर समिति समेत कुल 10  समितियाँ हैं.

इनमें स्वतन्त्र विशेषज्ञ चुने जाते हैं जिनकी ज़िम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि सदस्य देश क़ानूनी दस्तावेज़ों के अनुरूप अपने दायित्वों का निर्वहन करें.

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सदस्य देशों के आचरण की स्वतन्त्र समीक्षा की यह प्रणाली संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रणाली का एक अहम हिस्सा है.

प्रमुखों ने एक साझा बयान में कहा, “सन्धि संस्थाओं को वित्तीय समर्थन देना सदस्य देशों का क़ानूनी दायित्व है.”

“कोविड-19 महामारी से दुनिया भर में व्यापक प्रकार के मानवाधिकार उल्लंघन हुए हैं और इस दौरान सदस्य देशों द्वारा वित्तीय संसाधन मुहैया नहीं कराना और भी ज़्यादा क्षुब्धकारी है.”

समिति प्रमुखों की वार्षिक बैठक 27 से 30 जुलाई को वर्चुअल रूप से आयोजित की गई थी जिसके बाद उनकी ओर से यह अपील जारी की गई है. 

बैठक के दौरान मानवाधिकार सन्धि संस्थाओं के 10 सदस्यों ने अपने कामकाज पर चर्चा की और सन्धि प्रणाली को और ज़्यादा प्रभावी बनाने के रास्तों पर विचार किया.

उन्होंने चिन्ता जताई है कि संयुक्त राष्ट्र बजट का मौजूदा संकट उनके मिशन के लिये एक बड़ा ख़तरा है और हैरानी व्यक्त की है कि इस सितम्बर 2020 के बाद आगामी समीक्षा बैठकों के लिये वित्तीय साधनों की कोई गारण्टी फ़िलहाल नहीं है.  

“हमारा मानना है कि इस अभूतपूर्व वैश्विक संकट के समय मानवाधिकारों को बरक़रार रखने और पुष्ट करने की आवश्यकता पहले से कहीं ज़्यादा है.”

समितियों के प्रमुखों ने सदस्य देशों और महासचिव से अपील की है कि मानवाधिकार सन्धि संस्थाओं के कामकाज को पूर्ण रूप से समर्थन दिया जाना चाहिए.

बैठक के दौरान कोविड-19 की आपात स्थिति से निपटने के लिये रणनीति पर भी चर्चा हुई. महामारी के फैलाव के कारण यात्रा सम्बन्धी पाबन्दियाँ लागू हैं जिस वजह से मार्च 2020 से मानवाधिकार सन्धि संस्थाओं की शारीरिक मौजूदगी वाली बैठकें नहीं हो पा रही हैं. 

लेकिन समितियों ने ऑनलाइन सत्रों के ज़रिये अपना काम जारी रखा है हालाँकि इसे एक अस्थाई समाधान ही बताया गया है. 

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इस बीच समिति प्रमुखों ने कोविड-19 वर्किंग ग्रुप पर अपना काम जारी रखने का फ़ैसला लिया है जिसमें महामारी से लोगों के मानवाधिकारों पर हुए असर पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा. 

इस वर्किंग ग्रुप की स्थापना के ज़रिये महामारी से पैदा हुई चुनौतियों का सामना करने में सन्धि संस्थाओ को समन्वित ढँग से प्रणालीगत कार्रवाई के लिये तैयार करना है. 

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सन्धि संस्था प्रणाली में निम्न समितियाँ हैं:

यातना के ख़िलाफ़ समिति; आर्थिक, सामाजिक एवँ सांस्कृतिक अधिकारों पर समिति; महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभाव के उन्मूलन पर समिति; नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर समिति; जबरन ग़ायब किये जाने पर समिति; मानवाधिकार समिति; बाल अधिकारों पर समिति; विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर समिति; प्रवासी कामगारों पर समिति; याताना की रोकथाम पर उपसमिति.