कोविड-19: मानसिक स्वास्थ्य संकट से निर्बलों को बचाने का आहवान

मानसिक स्वास्थ्य ज़रूरतों को पूरा करने वाली प्रणालियाँ दशकों से कम निवेश और उपेक्षा का शिकार रही हैं और वैश्विक महामारी कोविड-19 ने इन कमज़ोरियों को पूरी तरह उजागर कर दिया है. संयुक्त राष्ट्र ने इन ख़ामियों, नशीली दवाओं के इस्तेमाल और आत्महत्या के बढ़ते मामलों से उपजी चिन्ता के बीच गुरुवार को सभी देशों से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए महत्वाकाँक्षी संकल्प लेने का आहवान किया है.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने जिनीवा में होने वाली विश्व स्वास्थ्य एसेम्बली से पहले एक अलर्ट जारी करते हुए अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया है कि बढ़ते मानसिक दबावों का सामना कर रहे लोगों की रक्षा करने के लिए और ज़्यादा प्रयास करने होंगे.
#COVID19 is not only attacking our physical health; it is also increasing psychological suffering.Mental health services are an essential part of all government responses to #coronavirus.They must be expanded and fully funded.https://t.co/AOoxqkMJBb pic.twitter.com/j0KpYfPNkF
antonioguterres
संयुक्त राष्ट्र की ओर से नीतिगत सलाह के लिए जारी ‘COVID-19 And The Need for Action On Mental Health’ पॉलिसी ब्रीफ़ में बताया गया है कि अग्रिम मोर्चे पर जुटे स्वास्थ्यकर्मी, वृद्धजन, वयस्क, युवा, पहले से ही बीमारी से पीड़ित और हिंसा व संकटों में फँसे लोगों के लिए ज़्यादा खतरा है.
यूएन प्रमुख ने ऐसे सभी लोगों का साथ देने और उनके साथ खड़ा होने की अपील की है.
यूएन प्रमुख ने अपने वीडियो संदेश में मानसिक अवसाद और बेचैनी सहित अन्य मनोवैज्ञानिक मुश्किलों को दुनिया में पीड़ा के सबसे बड़े कारणों में शामिल बताया है.
उन्होंने बताया कि किस तरह उनके जीवन और परिवार में वह ऐसे डॉक्टरों और मनोचिकित्सकों के नज़दीक रहे हैं जो इन स्वास्थ्य मुश्किलों का इलाज करते रहे हैं. इससे वे इन स्थितियों का सामना करने वाले लोगों की पीड़ाओं को भली-भाँति समझते हैं.
उनके मुताबिक कथित सामाजिक कलंक और भेदभाव का शिकार होने से अक्सर यह पीड़ा और भी गहरी हो जाती है.
यूएन के अनुसार कोविड-19 महामारी से पहले भी मानसिक विषाद या अवसाद (Depression) और चिन्ता या बेचैनी (Anxiety) जैसी समस्याएँ विश्व अर्थव्यवस्था को लगभग एक ट्रिलियन डॉलर के नुक़सान के लिए ज़िम्मेदार थीं.
दुनिया भर में 26 करोड़ से ज़्यादा लोग डिप्रैशन यानि अवसाद से पीड़ित हैं – मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों के आधे से ज़्यादा मामले 14 वर्ष की आयु से शुरू होते हैं. 15 से 29 आयु वर्ग में युवाओं की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य और टिकाऊ विकास पर ‘लान्सेट कमीशन’ की उस चेतावनी का भी उल्लेख है जिसके मुताबिक पहले के हालात में ख़ुद को ठीक ढंग से संभाल लेने वाले बहुत से लोगों के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं क्योंकि महामारी के कारण अनेक प्रकार के दबाव पैदा हुए हैं.
लोगों के सामने अनेक अनिश्चितताएँ हैं और इन हालात में ख़ुद को संभालने के लिए लोगों में एल्कॉहॉल (शराब), नशीली दवाओं, तम्बाकू और ऑनलाइन गेम्स की लत बढ़ रही है.
कैनेडा में एक रिपोर्ट के मुताबिक 15 से 49 वर्ष आयु वर्ग में 20 फ़ीसदी लोगों ने महामारी के दौरान एल्कॉहॉल सेवन की मात्रा बढ़ा दी है.
महामारी के फैलाव और आपात हालात के दौरान लोग संक्रमण के कारण मौत होने और परिजनों को खोने से भयभीत हैं. इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों ने या तो अपने रोज़गार खो दिए हैं या फिर आजीविका के साधनों के खोने का जोखिम है.
वे सामाजिक रूप से अलग-थलग हो गए हैं, वे अपने परिजनों से दूर हैं और कुछ देशों में उन्होंने घर पर रहने के आदेश को बड़े कठोर ढंग से लागू किए जाने का अनुभव किया है.
यूएन रिपोर्ट के अनुसार घर तक सीमित होने से घरेलू हिंसा व दुर्व्यवहार के मामले बढ़े हैं और महिलाओं व बच्चों के लिए शारीरिक व मानसिक नुक़सान का जोखिम बढ़ा है.
इसी दौरान वायरस और उसकी रोकथाम के उपायों के बारे में ग़लत जानकारियाँ तेज़ी से फैल रही हैं और भविष्य के प्रति अनिश्चितता गहराना तनाव बढ़ने का एक बड़ा कारण है.
रिपोर्ट के मुताबिक “यह अहसास कि मौत के नज़दीक पहुँच चुके अपने परिजनों से आख़िरी बार विदा लेने या अंतिम संस्कार में शामिल होने का अवसर लोगों के पास नहीं होगा, तनाव को बढ़ाता है.”
विश्व स्वास्थ्य संगठन में मानसिक स्वास्थ्य मामलों के विभाग में निदेशक डेवोरा कैस्टेल ने ध्यान दिलाया है कि अतीत में भी आर्थिक संकटों के दौरान मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी मुश्किलों का सामना करने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई थी और आत्महत्या के मामलों की दर में वृद्धि हुई थी.
उन्होंने कहा कि चीन, अमेरिका और ईरान सहित अनेक देशों में राष्ट्रीय आँकड़े मानसिक स्वास्थ्य के लिए बढ़ते जोखिम को दर्शाते हैं.
यूएन रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 के कारण होने वाले मानसिक स्वास्थ्य लक्षणों में सिरदर्द, स्वाद और सूँघने की क्षमता कमज़ोर पड़ना, आवेशित या बेसुध महसूस करना या फिर दौरे का शिकार होना है.
पहले से ही बीमार होने और फिर कोविड-19 से संक्रमित होने के कारण अस्पताल में भर्ती होने की आशंका बढ़ जाती है. मानसिक तनाव, सामाजिक जीवन में अलग-थलग पड़ने और परिवार में हिंसा नज़दीक से देखने से युवा बच्चों और वयस्कों के मस्तिष्क का स्वास्थ्य और विकास प्रभावित होता है.
डॉक्टर कैस्टेल ने कहा है कि यह सुनिश्चित करना होगा कि मौजूदा हालात को सम्भालने और लोगों की रक्षा के लिए उपाय मौजूद हैं. ऐसा संकट के दौरान ही करना होगा ताकि निकट भविष्य में हालात को और ज़्यादा ख़राब होने से रोका जा सके.
आँकड़े ये पुष्टि करते हैं कि चिकित्साकर्मियों और कर्मचारियों ने कोविड-19 के आपात हालात में मानसिक स्वास्थ्य दिक़्क़तों का सामना किया है.
“कैनेडा में कुछ सर्वे किए गए थे जो दिखाते हैं कि 47 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मियों ने मनोवैज्ञानिक सहारे की ज़रूरत बताई – यानि लगभग आधी संख्या. चीन में अलग-अलग आँकड़े हैं: डिप्रैशन के लिए 50 फ़ीसदी, बेचैनी के लिए 45 प्रतिशत, नीन्द ना आने के लिए 34 फ़ीसदी.”
संयुक्त राष्ट्र ने लड़ाई-झगड़ों और हिंसा से बचकर भाग रहे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए कार्रवाई की पुकार लगाई है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी में टैक्निकल ऑफ़िसर डॉक्टर फ़हमी हना के मुताबिक 2019 में कोविड-19 का पहला मामला सामने आने से पहले ही अनेक देशों में मानसिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक सहारे की विशाल ज़रूरतें थीं.
उन्होंने कहा, “इन हालात में हर पाँच में से एक व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक सहारे की ज़रूरत होगी क्योंकि उनकी कोई ना कोई मानसिक स्वास्थ्य समस्या होगी.”
“यमन दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय संकट ही नहीं है बल्कि यह विश्व का सबसे बड़ा मानसिक स्वास्थ्य संकट है. 70 लाख से ज़्यादा लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी सहारे की ज़रूरत है.”
अनेक देशों ने दर्शाया है कि समुदाय में सभी को देखभाल उपलब्ध कराने के बाद मानसिक रोग चिकित्सालयों को बन्द करना संभव है.
डॉक्टर हैना ने कहा, “सिर्फ़ कोविड संकट में ही नहीं बल्कि सभी तरह की आपदाओं में, दीर्घकाल के लिए देखभाल केन्द्रों में मानवाधिकारों के उल्लंघन का जोखिम होता है. साथ ही इन केन्द्रों पर आपात परिस्थितियों में उपेक्षा का भी ख़तरा होता है और बीमारी व महामारी फैलने और स्टाफ़ और वहाँ भर्ती लोगों के संक्रमित होने का ख़तरा होता है.”
यूएन द्वारा जारी की गई अपील का एक अहम उद्देश्य कोविड-19 की जवाबी कार्रवाई में सभी सरकारों द्वारा मानसिक स्वास्थ्य ज़रूरतों का ख़याल रखा जाना है.
उन्होंने कहा कि इस तरह की पहल से दक्षिण सूडान जैसे देशों को ख़ासतौर पर मदद मिल सकती है जहाँ हर 40 लाख लोगों के लिए महज़ एक मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ है.