कोविड-19: महिलाओं और युवाओं के स्वास्थ्य पर परोक्ष असर से चिन्ता
विश्व स्वास्थ्य एजेंसी (WHO) ने कोविड-19 के निम्न और मध्य आय वाले देशों में तेज़ी से फैलने के बीच, महिलाओं, किशोरों और युवाओं पर इसके अप्रत्यक्ष रूप से पड़ने वाले असर पर चिन्ता व्यक्त की है. दुनिया भर में कोरोनावायरस के संक्रमण के अब तक 74 लाख से ज़्यादा मामलों की पुष्टि हो चुकी है और 4 लाख 18 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है.
एजेंसी के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने शुक्रवार को कहा कि जिन देशों में महामारी फैलने से स्वास्थ्य प्रणालियों पर बोझ बढ़ा है वहाँ महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य के प्रति चिन्ता बढ़ रही है जिनके लिए स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच पाना एक चुनौती है.
गर्भवती महिलाओं या प्रसव के दौरान जटिलताओं के कारण मौत होने की आशंका बढ़ गई है.
इसके मद्देनज़र यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने महिलाओं, नवजात शिशुओं, बच्चों और किशोरों के लिए स्वास्थ्य केन्द्रों और ज़रूरी सेवाओं को बरक़रार रखने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं.
इससे संक्रमण की रोकथाम और उस पर क़ाबू पाने के उपयुक्त उपाय करने में मदद मिलेगी.
इसके साथ ही स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने स्तनपान के दौरान नवजात शिशुओं के कोविड-19 से संक्रमित होने के जोखिम की भी जाँच की है.
महानिदेशक घेबरेयेसस ने बताया कि अब तक जो तथ्य उपलब्ध हैं उनके आधार पर यूएन एजेंसी की सलाह यही है कि स्तनपान के बहुत फ़ायदे हैं और वे कोविड-19 के संक्रमण के जोखिम से बड़े हैं. इसलिए शिशुओं को स्तनपान कराना ज़रूरी है.
जिन महिलाओं को संक्रमित होने का सन्देह तो है लेकिन उनका स्वास्थ्य ज़्यादा ख़राब नहीं है, उन्हें भी बच्चों को स्तनपान कराना चाहिए क्योंकि अभी विशेषज्ञों को स्तनपान के दौरान संक्रमण के कोई सबूत नहीं मिले हैं.
यूएन एजेंसी ने महामारी के किशोरों और युवाओं पर पड़ने वाले असर पर भी चिन्ता जताई है.
शुरुआती तथ्य दर्शाते हैं कि किशोरों और युवाओं के मानसिक अवसाद, बेचैनी, ऑनलाइन उत्पीड़न, शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार बनने की आशंका ज़्यादा है.
यह सब ऐसे समय हो रहा है जब स्वास्थ्य देखभाल के लिए सेवाओं की उपलब्धता में कमी आई है.
स्कूल और विश्वविद्यालय बन्द होने से भी असर पड़ा है क्योंकि कुछ देशों में एक तिहाई से ज़्यादा छात्र मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए स्कूलों पर निर्भर हैं.
साथ ही स्कूलों में बच्चों को मिलने वाले भोजन की सुविधा रुकने से उनका पोषण प्रभावित हुआ है.
शारीरिक गतिविधियों के अवसर घटने, और तम्बाकू, एल्कॉहोल और नशीली दवाओं का इस्तेमाल बढ़ने से किशोरों और युवाओं के दीर्घकालीन मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ने की आशंका गहरा रही है.