डिजिटल उपलब्धता को सार्वभौमिक बनाने की ज़रूरत
कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में लोगों के कामकाज करने, एक दूसरे के साथ मिलने-जुलने, स्कूल जाने और ज़रूरी सामान ख़रीदने के लिए दुकानों व स्टोरों पर जाने के तरीक़ों में अभूतपूर्व बदलाव ला दिए हैं, ऐसे में ये बेहद ज़रूरी हो गया है कि दुनिया भर में जो लगभग तीन अरब 60 करोड़ लोग ऑनलाइन सुविधाओं से वंचित हैं, उन्हें भी डिजिटल अभाव के अन्तर से उबारा जाए.
ये कहना है अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) के शीर्ष अधिकारी हॉलीन झाओ का जिन्होंने डिजिटल जीवन पर कोविड-19 महामारी केअसर के बारे में मंगलवार को जिनीवा में पत्रकारों बातचीत में ये बात कही.
आईटीयू के महासचिव हॉलीन झाओ का कहना है, “नया डिजिटल समाज पहले हमारे जीवन में जगह बना चुका था लेकिन हमने ये कभी कल्पना नहीं की थी कि हमें अपने घरों पर रहकर ही काम करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और एक दूसरे से संपर्क क़ायम करने के लिए केवल डिजिटल औज़ारों का सहारा लेना पड़ेगा, यहाँ तक कि कारोबार भी ऑनलाइन ही करना होगा.”
“इसलिए ये कुछ ऐसा है जो बिल्कुल नवीन है.”
उन्होंने महामारी के दौरान अत्यधिक माँग बढ़ने के बीच सूचना और संचार टैक्नॉलॉजी (आईसीटी) सैक्टर में काम करने वाले लोगों की विशेष सराहना की, जिन्हें आईटीयू के एक पदाधिकारी पहले ही महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में “अदृश्य नायक” क़रार दे चुके हैं.
इंटरनेट ट्रैफ़िक में उछाल
हॉलीन झाओ ने कहा कि हमें ये भी समझना होगा कि आईसीटी सेवाओं और आईसीटी नैटवर्कों को संभावना इतना आसान नहीं है, क्योंकि इस तरह के हालात में इंटरनैट ट्रैफ़िक की माँग तीन गुना तक बढ़ सकती है. उन्होंने ध्यान दिलाया कि स्वास्थ्य आपदा के कारण उत्पन्न हालात में वीडियो कान्फ्रेंसिंग और स्मार्ट फ़ोन पर कॉल करने की माँग में बहुत उछाल आया है.
शहरी इलाक़ों में स्थित दफ़्तरों की इमारतों में ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल कम होकर बाहरी शहरी इलाक़ों में तेज़ हुई माँग से चुनौती बहुत गहरी हुई है क्योंकि भारी संख्या में लोग अब वहाँ अपने घरों से काम कर रहे हैं.
आईटीयू के रेडियो संचार ब्यूरो के निदेशक मारियो मनीविश्ज ने कहा, “अतिरिक्त स्पैक्ट्रम की शिनाख़्त की गई है.” साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि देश इस तरह के अतिरिक्त संसाधनों का इस्तेमाल ऐसी नई टैक्नॉलॉजी विकसित करने के लिए कर सकते हैं जिनके ज़रिए वंचित समुदायों को ये सेवाएँ कम क़ीमतों पर मुहैया कराई जा सकती हैं.
इस टैक्नॉलोजी में सैटेलाइट और पृथ्वी पर स्थित तकनीकें शामिल हैं और इनके ज़रिए विशाल आबादी व क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड सेवाएँ दी जा सकती हैं जिनमें ग्रामीण व दूरदराज़ के क्षेत्र शामिल हैं.
ब्रॉडबैंड की जगतीय ज़रूरत
मारियो मनीविश्ज ने कहा कि नए स्पैक्ट्रम का आबंटन कर दिया गया है और सरकारों को ये नए अवसर दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को मुहैया कराना चाहिए ताकि वो ब्रॉडबैंड की ज़रूरत में आई तेज़ी की माँग को पूरा करने के लिए ठोस काम कर सकें.
आईटीयू के विकास ब्यूरो की निदेशक डोरीन बोगदान-मार्टिन ने कहा कि अब से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि डिजिटल संसाधनों की ज़रूरत इतनी तेज़ी से महसूस की गई हो.
“कोविड-19 महामारी पर क़ाबू पाने के बाद की दुनिया में सामान्य जन जीवन व कामकाजी दुनिया का माहौल समझने की कोशिशें भी की जा रही हैं. और मेरे लिए नए माहौल में विश्व भर में सभी के लिए ब्रॉडबैंड की आसान उपलब्धता भी शामिल होगी.”
दुनिया भर में इस समय लगभग एक अरब 50 करोड़ बच्चे स्कूलों से बाहर हैं, ऐसे में आईटीयू और यूनीसेफ़ के बीच हुई डिजिटल भागीदारी की ज़रूरत और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है. इसे गीगा पहल नाम दिया गया है जिसके ज़रिए हर जगह स्कूली शिक्षा ऑनलाइन माध्यमों से मुहैया कराई जा सके.
ऑनलाइन बाल संरक्षण गाइडलाइन्स
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि आईटीयू ने वैश्विक स्तर पर बच्चों को ऑनलाइन मंचों पर सुरक्षित रखने के लिए गाइडलाइन्स यानि दिशा-निर्देशों को मज़बूती से लागू करने की ज़रूरत महसूस की है. ये दिशा-निर्देश अगले एक पखवाड़े में जारी होने की उम्मीद है.
कोविड-19 संकट के वातावर में जैसे-जैसे डिजिटल दुनिया में कामकाज की ज़रूरत बढ़ी है, साथ ही साइबर अपराधों में भी विशाल तेज़ी आई है जो बेहद चिन्ताजनक है.
बोगदान-मार्टिन का कहना था, “कोविड-19 संकट के परिणामस्वरूप ऑनलाइन आपराधिक गतिविधियों में बहुत तेज़ उछाल आया है."
"आपराधिक तत्व डर व अनिश्चितता के माहौल का फ़ायदा उठा रहे हैं, और मेरी ख़ुद की साइबर सुरक्षा टीम ने नैटवर्कों और कारोबारों और इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनेक देशों की मदद करने के लिए एक ऑनलाइन सेवा शुरू की है. ज़ाहिर है कि इसमें बच्चों के लिए दरपेश ख़तरों का सामना करना भी शामिल है”