टैक्नॉलॉजी क्रान्ति के अनेक लाभ, मगर विषमताओं की रोकथाम ज़रूरी

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने कहा है कि विकासशील देशों को, कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने में अहम औज़ार साबित होने वाली अभूतपूर्व टैक्नॉलॉजी को अपनाना होगा, लेकिन इसके अभाव में, डिजिटलीकरण के दौर में उन्हें पहले से कहीं व्यापक स्तर पर विषमताओं का सामना करना पड़ेगा. व्यापार एवँ विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन (UNCTAD) द्वारा गुरुवार को जारी एक नई रिपोर्ट में डिजिटल समाधानों के बढ़ते इस्तेमाल और उनके प्रभाव की पड़ताल की गई है.
यूएन एजेंसी अंकटाड में टैक्नॉलॉजी एण्ड लॉजिस्टिक्स विभाग की प्रमुख शमिका सिरीमाने ने बताया कि इस क्रान्ति को आगे बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी का सृजन बेहद कम देश करते हैं, और इनमें अधिकाँश अमेरिका व चीन में विकसित हुई हैं.
#Breaking: @UNCTAD's Technology and Innovation Report 2021 examines the crucial issue of technological change and inequality.It warns of serious implications for developing countries if the new technological wave overwhelms poorer communities. https://t.co/BI2zPLlU0P #UNCTADTIR pic.twitter.com/11xcRkeouP
UNCTAD
लेकिन इसका असर सभी देशों पर होगा. उन्होंने कहा कि जिन विकासशील देशों का अध्ययन किया गया, उनमें से कोई भी देश, इसके नतीजों के लिये तैयार नहीं है.
अंकटाड द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट में प्रौद्योगिकी को अपनाए जाने की अपील को रेखांकित किया गया है, जोकि डिजिटल और जोड़ने वाली तकनीकों पर आधारित है.
इसे “उद्योग 4.0” (Industry 4.0) या “फ़्रण्टियर टैक्नॉलॉजी” “(frontier technologies) नाम दिया गया है.
इनमें आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस, बिग डेटा, ब्लॉकचेन, 5जी, 3डी प्रिन्टिंग, रोबोटिक्स, ड्रोन्स, नैनो-टैक्नॉलॉजी और सौर ऊर्जा शामिल हैं.
‘जीन एडिटिंग’ क्षेत्र में भी तेज़ प्रगति हो रही है, और वर्ष 2020 में कोरोनावायरस वैक्सीन, त्वरित गति से विकसित करने में इसकी भूमिका और महत्व को दर्शाया है.
यूएन एजेंसी अधिकारी ने बताया कि विकासशील देशों में, डिजिटल औज़ारों का इस्तेमाल भूमिगत जल प्रदूषण की निगरानी करने, दूरदराज़ के समुदायों में ड्रोन के ज़रिये चिकित्सा सामग्री की आपूर्ति करने और बिग डेटा के माध्यम से बीमारियों पर नज़र रखने में किया जा सकता है.
लेकिन इनमें से अधिकाँश उदाहरण अभी शुरुआती चरण (Pilot level) में हैं, और अभी सबसे ज़रूरतमन्द और निर्धन लोग, इनके दायरे से बाहर हैं.
बताया गया है कि सफलता के लिये टैक्नॉलॉजी का सहारा लेने में पाँच अहम बातों का ख़याल रखा जाना होगा:
उपलब्धता, कम लागत, जागरूकता, सुलभता और असरदार इस्तेमाल की क्षमता.
फ़िलहाल, बाज़ार में, विविध प्रकार के उभरते डिजिटल समाधानों की क़ीमत, 350 अरब डॉलर आँकी गई है, लेकिन कोविड-19 के गुज़र जाने के बाद की दुनिया में यह वर्ष 2025 तक तीन ट्रिलियन डॉलर हो जाने की सम्भावना है.
इसके मद्देनज़र, विकासशील देशों को प्रशिक्षण व बुनियादी ढाँचे में निवेश करना होगा ताकि वे भी इसका लाभ उठा सकें.
यूएन एजेंसी अधिकारी के अनुसार, एमेज़ोन, ऐप्पल और टैनसैन्ट कम्पनियों को सबसे ज़्यादा लाभ पहुँचा है.
उन्होंने कहा कि यह हैरत की बात नहीं है, चूँकि बेहद कम संख्या में बहुत बड़ी कम्पनियों ने अधिकाँश डिजिटल समाधान प्रदान किये हैं, जिनका दुनिया ने, आवाजाही की पाबन्दियों व तालाबन्दी के दौरान इस्तेमाल किया है.
यूएन एजेंसी ने आशा व्यक्त की है कि विकासशील देश, डिजिटलीकरण की नई लहर में फँस जाने के बजाय, अपना रास्ता तलाश लेंगे.
साथ ही स्वचालन (Automation) के बढ़ते इस्तेमाल के कारण, निर्धन देशों में रोज़गारों पर मंडराते संकट के सम्बन्ध में चिन्ताएँ दरकिनार की गई हैं.
शमिका सिरिमाने ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि सभी रोज़गारों और कामकाज को स्वचालन पर नहीं छोड़ा जा सकता, और सबसे अहम बात यह है कि नए उत्पादों, पेशों, ज़िम्मेदारियों, और आर्थिक गतिविधियों का सृजन होगा.
यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि नए डिजिटल जगत में विषमता बढ़ने की रफ़्तार धीमी होने के संकेत अभी कम ही हैं.
विकासशील और विकसित देशों में आय की खाई अब बढ़कर 40 हज़ार डॉलर से ज़्यादा हो गई है जबकि वर्ष 1970 में यह 17 हज़ार डॉलर थी.