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ऑनलाइन माध्यमों पर बच्चों को डराना-धमकाना बना बड़ी समस्या

सर्वे में हिस्सा लेने वाले 32 फ़ीसदी का मानना है कि सरकारों को ‘साइबर बुलींग’ पर रोक लगानी चाहिए.
UNICEF/Naftalin
सर्वे में हिस्सा लेने वाले 32 फ़ीसदी का मानना है कि सरकारों को ‘साइबर बुलींग’ पर रोक लगानी चाहिए.

ऑनलाइन माध्यमों पर बच्चों को डराना-धमकाना बना बड़ी समस्या

मानवाधिकार

साइबर जगत में बच्चों और किशोरों को डराए-धमकाए जाने के बढ़ते मामलों पर गहराती चिंता के बीच एक नया सर्वेक्षण दर्शाता है कि 30 देशों में हर तीन में से एक युवा को ऑनलाइन माध्यमों पर डराया-धमकाया (Bullying) गया है.  संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) और बच्चों के विरुद्ध हिंसा पर यूएन के विशेष प्रतिनिधि के कार्यालय की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार इससे तंग आकर हर पांच से में एक बच्चे ने स्कूल जाना भी छोड़ दिया. 

एक यूथ इन्गेंजमेंट टूल ‘यू-रिपोर्ट’ के ज़रिए युवाओं और बच्चों ने इस पोल में हिस्सा लिया जिसमें उनकी पहचान गुप्त रखी गई. क़रीब तीन-चौथाई युवाओं ने कहा कि सोशल नेटवर्क – फ़ेसबुक, इंस्टैग्राम, स्नैपचैट और ट्विटर – पर आम तौर पर ‘online bullying’ झेलनी पड़ती है.

यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर ने कहा कि ऑनलाइन सुविधा की वजह से बच्चों के स्कूल से घर जाने के बावजूद कक्षाएं ख़त्म नहीं होती. यही बात स्कूल के मैदान में होने वाली डराने-धमकाने वाली घटनाओं के बारे में कही जा सकती है. युवाओं के लिए उनके शिक्षा अनुभव को बेहतर बनाने का अर्थ उस माहौल से है जिसका सामना वह ऑनलाइन और ऑफ़लाइन करते हैं.

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एसएमएस और इंस्टेंट मैसेज़िंग के ज़रिए युवाओं से सिलसिलेवार सवाल पूछे गए और उनसे ऑनलाइन डराए-धमकाए जाने व हिंसा के अनुभव से जुड़ी जानकारी ली गई. उनसे पूछा गया कि उनके विचार में इस पर कैसे रोक लग सकती है.

सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 32 फ़ीसदी युवाओं का मानना है कि सरकारों को ‘साइबर बुलींग’ पर रोक लगानी चाहिए, 31 फ़ीसदी के मुताबिक़ उत्पीड़न रोकने की ज़िम्मेदारी युवाओं की है जबकि 29 प्रतिशत इंटरनेट कंपनियों को मुख्य रूप से ज़िम्मेदार मानते हैं.

बच्चों के विरुद्ध हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव की विशेष प्रतिनिधि नजत माल्ला माजिद ने बताया कि, “एक मुख्य संदेश यह है कि हमें बच्चों और युवाओं को साझेदारी में शामिल करने की ज़रूरत है. हम इसमें एक साथ हैं और साझेदारी में अपनी ज़िम्मेदारी साझा करनी चाहिए.”

माना जाता है कि ऑनलाइन माध्यमों पर सहपाठियों को डराया-धमकाना जाना अमीर स्कूलों में ही होता है लेकिन पोल के नतीजे इस धारणा को चुनौती देते हैं.

उदाहरण के तौर पर, सब-सहारा अफ़्रीका में 24 फ़ीसदी बच्चों ने कहा कि वह ‘ऑनलाइन बुलींग’ का शिकार रहे हैं. 39 प्रतिशत बच्चों का कहना है कि स्कूलों में ऐसे निजी ऑनलाइन ग्रुप भी हैं जहां बच्चे अपने साथी छात्रों के बारे में ऐसी जानकारियां साझा करते हैं जिसका इस्तेमाल उन्हें डराने-धमकाने में होता है.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने #EndViolence नाम से एक मुहिम चलाई है जिसका उद्देश्य स्कूलों और उसके आसपास हिंसा पर रोक लगाना है.

विश्व भर में बच्चों और युवाओं ने वर्ष 2018 में ‘यूथ मैनिफ़ेस्टो’ का मसौदा तैयार किया था जिसमें सरकारों, शिक्षकों, अभिभावकों और एक दूसरे से हिंसा का अंत करने की अपील की गई है.

साथ ही ऐसे क़दम उठाने का अनुरोध किया गया है कि छात्र स्कूलों में सुरक्षित महसूस करें. ऑनलाइन माध्यमों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया गया है.

यूनीसेफ़ प्रमुख हेनरीएटा फ़ोर ने बताया, “विश्व भर में उच्च और निम्न आय वाले देशों में युवा हमें बता रहे हैं कि उन्हें ऑनलाइन डराया-धमकाया जा रहा है जिससे उनकी शिक्षा प्रभावित हो रही है और वे इसके अंत को देखना चाहते हैं.”

“बाल अधिकारों पर संधि की 30वीं वर्षगांठ पर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि डिजिटल सुरक्षा और संरक्षण नीतियों में बच्चों के अधिकारों का प्रमुखता से ध्यान रखा जाए.”

इस पोल में 13-24 वर्ष की उम्र के एक लाख 70 हज़ार बच्चों ने ‘यू-रिपोर्ट’ के ज़रिए हिस्सा लिया. इनमें अल्बानिया, बांग्लादेश, बोलीविया, ब्राज़ील, बुर्किना फ़ासो, इक्वाडोर, फ़्रांस, गाम्बिया, घाना, भारत, इंडोनेशिया, इराक़, कोसोवो, लाइबेरिया, मलावी, मलेशिया, माली, मोल्दोवा, म्यांमार, नाइजीरिया, यूक्रेन और वियतनाम सहित अन्य देशों के युवा और बच्चे शामिल हैं.

ऑनलाइन डराए-धमकाए जाने और हिंसा पर रोक लगाने के लिए यूनीसेफ़ ने निम्न दिशानिर्देश साझा किए हैं:

  • डराने-धमकाने पर रोक के लिए नीतियाँ लागू की जाएँ
  • बच्चों और युवाओं के लिए राष्ट्रीय हेल्पलाइन स्थापित की जाए
  • सोशल नेटवर्क सेवाप्रदाता कंपनियों में आचार-नीति और प्रथाएँ बढ़ाई जाएँ
  • युवाओं और बच्चों के ऑनलाइन व्यवहार पर नीतियों के लिए बेहतर ढंग से तथ्य एकत्र किए जाएँ
  • शिक्षकों और अभिभावकों को संबंधित विषयों पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाए