इराक़: दाएश लड़ाकों के मुक़दमों की निष्पक्षता पर सवाल

संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि दाएश संगठन के पूर्व आतंकवादी लड़ाकों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए इराक़ी प्रशासन ने काफ़ी प्रयास किए हैं लेकिन अदालती प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर चिंताएँ बरक़रार हैं. इराक़ में यूएन मिशन (UNAMI) और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) द्वारा साझा रूप से तैयार इस रिपोर्ट के मुताबिक़ निष्पक्ष ढंग से मुक़दमे की कार्यवाही के लिए निर्धारित बुनियादी मानकों का पालन नहीं किया गया.
यूएन मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने कहा, “एक निष्पक्ष और न्यायोचित न्यायिक व्यवस्था लोकतांत्रिक जीवन का केंद्रीय अंग है, भरोसे व वैधानिकता के निर्माण में और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने व उनकी रक्षा करने के लिए अहम है.”
“इराक़ी लोगों पर व्यापक रूप से किए गए अत्याचारों के ज़िम्मेदार लोगों को उनके अपराध की सज़ा मिलनी चाहिए, और यह ज़रूरी है कि पीड़ितों को महसूस हो कि न्याय हुआ है. लेकिन साथ ही जिन पर आरोप लगे हैं उन्हें भी निष्पक्ष ढंग से अदालती कार्यवाही का अधिकार है और इन मानकों को सख़्ती से लागू किया जाना चाहिए.”
#Iraq: Trials of #ISIL fighters under Iraq’s anti-terrorism laws show serious efforts to ensure #accountability for atrocities – 🆕 report. It also raises serious concerns that unfair trials put defendants at a serious disadvantage. Learn more: https://t.co/fF8IVaseAn pic.twitter.com/TxmmtPWZQ6
UNHumanRights
आतंकवादी संगठन ‘इस्लामिक स्टेट’ को अरबी भाषा में दाएश के नाम से जाना जाता है.
जून 2014 से दिसंबर 2017 तक इराक़ के एक बड़े हिस्से और उत्तरी सीरिया पर उसका क़ब्ज़ा था और इस दौरान इराक़ी जनता के ख़िलाफ़ व्यापक पैमाने पर हिंसा की गई.
आतंकवादी लड़ाकों ने लोगों पर बहुत से अत्याचार किए – सामूहिक हत्याएँ हुईं, यौन दासता का शिकार बनाया गया, और इन अपराधों को युद्धापराधों और मानवता के विरुद्ध अपराधों के दायरे में रखा जा सकता है.
ये रिपोर्ट 794 मुक़दमों की कार्यवाही की स्वतंत्र रूप से निगरानी करने के बाद तैयार की गई है.
पूर्व दाएश लड़ाकों को इराक़ के आठ प्रांतों में रखा गया है और अदालती कार्यवाही मई 2018 से 31 अक्टूबर 2019 तक चली जिसमें अधिकांश अभियुक्तों पर आतंकवाद-विरोधी क़ानून के तहत आरोप तय हुए हैं.
यूएन अधिकारियों का कहना है कि अदालती प्रक्रिया आम तौर पर व्यवस्थित ढंग से हुई लेकिन अभियुक्तों को प्रभावी ढंग से अपना पक्ष रखने या क़ानूनी प्रतिनिधित्व का अवसर नहीं मिला.
मुख्य रूप से इस आतंकवादी संगठन के साथ संबंध होने या फिर उसका सदस्य होने के आधार पर लोगों को दोषी क़रार दिया गया. लेकिन यह भेद नहीं किया गया कि लोग अपनी मर्ज़ी से दाएश में शामिल हुए थे या फिर उन्हें दबाव में ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
उदाहरण के तौर पर, यूएन मिशन ने अरबिल में एक मुक़दमे की कार्यवाही में पाया कि दाएश के एक लड़ाके की पत्नी को तीन साल कारावास की सज़ा इस आधार पर सुनाई गई क्योंकि वह अपने पति और अन्य लड़ाकों के लिए भोजन पकाया करती थी.
एक अन्य मामले में 14-वर्षीय लड़के को 15 साल की सज़ा मिली क्योंकि उसने यह स्वीकार किया था कि दाएश लड़ाकों को हवाई बमबारी से बचाने के लिए उसके परिवार को मानव ढाल बनने के लिए मजबूर किया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक़ अभियुक्तों के इक़बालिया बयानों पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता देखी गई और अक्सर यातना दिए जाने के आरोपों पर कार्रवाई नहीं हुई.
संयुक्त राष्ट्र इराक़ में अपने मिशन के ज़रिए जवाबदेही, मानवाधिकारों की रक्षा, और न्यायिक व क़ानूनी सुधारों को सहारा प्रदान करता है.
साझा रिपोर्ट में दाएश द्वारा किए गए अपराधों की जवाबदेही तय करने के लिए इराक़ी प्रशासन के प्रयासों की प्रशंसा की गई है.
जनवरी 2018 से अक्टूबर 2019 तक आतंकवाद से जुड़े 20 हज़ार से ज़्यादा मामलों में कार्रवाई हुई है जबकि हज़ारों मामले अभी निलंबित हैं.
इराक़ में यूएन मिशन की प्रमुख जिनीन हैनिस-प्लाशर्ट ने कहा, “हिरासत के लिए मज़बूत सुरक्षा उपाय, यथोचित प्रक्रिया का पालन और निष्पक्ष मुक़दमे की कार्यवाही ना सिर्फ़ न्याय के प्रति संकल्प को प्रदर्शित करते हैं बल्कि सुदृढ व्यवस्था के निर्माण का अहम अंग है.”
विशेषज्ञों ने आपराधिक न्याय तंत्र को मज़बूत बनाने के उद्देश्य से अदालती कार्रवाई और सज़ा निर्धारित किए जाने की प्रक्रिया की विस्तृत समीक्षा की अपील की है.
रिपोर्ट की सिफ़ारिशों में आतंकवाद-विरोधी क़ानूनों की समीक्षा करने और उन्हें अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अनुरूप बनाने की बात कही गई है.
साथ ही अभियुक्तों को अपने बचाव के लिए पर्याप्त समय देने को भी ज़रूरी बताया गया है.