विश्व शरणार्थी फ़ोरम: मदद व्यवस्था में जान फूँकने की पुकार

विश्व को शरणार्थियों की परिस्थितियों का सामना करने के तरीक़ों में बदलाव लाने की ज़रूरत है और उन देशों की मदद करने के लिए ज़्यादा क़दम उठाने होंगे जो अपने यहाँ शरणार्थियों को पनाह देते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने जिनीवा में विश्व शरणार्थी मंच में मंगलवार को ये पुकार लगाई.
मंच में दुनिया भर में बड़ी संख्या में हुए विस्थापन के लगभग एक दशक की स्थिति पर विचार करने के लिए तीन दिन का ये सम्मेलन 16 दिसंबर से 18 दिसंबर तक हो रहा है. ये पहला मौक़ा है जब इस तरह का कोई सम्मेलन हुआ है.
महासचिव ने मंगलवार को उच्चस्तरीय सत्र में कहा कि Refugees यानी शरणार्थियों की सुरक्षा, उनके अधिकारों का सम्मान और उनके घर छोड़ने के कारण समझने के लिए ज़्यादा प्रयास किए जाने की ज़रूरत है.
“पहले से कहीं ज़्यादा, हमें अंतरराष्ट्रीय, असरदार और वास्तविक उपाय करने की ज़रूरत है. जिन लोगों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ता है उनके सवालों के बेहतर जवाबों की दरकार है, और जो समुदाय और देश उन शरणार्थियों को अपने यहाँ पनाह देते हैं उनकी बेहतर मदद करने की ज़रूरत है.”
दिसंबर 2018 में सदस्य देशों ने शरणार्थियों की मदद के लिए न्यूयॉर्क में Global Compact for Refugees पर हस्ताक्षर किए थे. इस ग्लोबल कॉम्पैक्ट को महासचिव ने शरणार्थियों के मानवाधिकार सुनिश्चित करने वाला ‘ब्लूप्रिंट’ क़रार दिया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक शरणार्थी मंच ऐसे समय में हो रहा है जब विश्व ने लगभग एक दशक विस्थापन का देखा है.
शरणार्थी मुद्दे पर कार्रवाई में शामिल होने की अपील करते हुए महासचिव ने ग्लोबल कॉम्पैक्ट ऑन रैफ़्यूजीज़ को “सभी की सामूहिक उपलब्धि और सभी की सामूहिक ज़िम्मेदारी” क़रार दिया. “ये लाखों-करोड़ों लोगों की तकलीफ़ों की बात करता है. और ये संयुक्त राष्ट्र के मिशन के दिल को छूता है.”
संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 7 करोड़ लोग जबरन विस्थापित हैं. ये संख्या 20 वर्ष पहले की तुलना में दो गुना ज़्यादा है. इनमें से भी सिर्फ़ एक साल में 23 लाख लोग विस्थापित होने के लिए मजबूर हुए हैं.
ढाई करोड़ से ज़्यादा शरणार्थी ऐसे हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के भी पार जाना पड़ा है और जो अपने घरों को वापिस लौटने के योग्य नहीं हैं.
महासचिव ने शरणार्थियों की मदद करने के लिए बनाए गए दशकों से मौजूद अंतरराष्ट्रीय समझौतों के संदर्भ में कहा कि शरणार्थियों की मदद के लिए बनाई गई व्यवस्थाओं की प्रासंगिकता को आज के दौर में फिर से स्थापित करने की ज़रूरत है, और ये कार्य 1951 की शरणार्थी संधि व 1967 के प्रोटोकॉल पर आधारित हो.
महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “ऐसे समय में जबकि शरण या पनाह लेने के अधिकार पर ही हमला किया जा रहा है, जब इतने सारे दरवाज़े और सीमाएँ शरणार्थियों के बन्द किए जा रहे हैं, जब शरणार्थी बच्चे तक बंदी बनाए जा रहे हैं और उनके परिवारों से अलग किए जा रहे हैं, हमें शरणार्थियों के मानवाधिकारों को फिर से पुष्ट व सुनिश्चित करना होगा.”
विश्व शरणार्थी मंच के सह आयोजक के तौर पर संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैन्डी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से ऐसे लोगों पर अपने रुख़ में फिर से जान फूँकने का आहवान किया है जिन्हें सुरक्षा की ज़रूरत है.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैन्डी ने कहा, “अन्याय, संघर्ष और हिंसा. इन कारणों की वजह से ही आज हम यहाँ एकत्र हुए हैं. हमारी दुनिया हिल रही है और लगभग ढाई करोड़ शरणार्थी समाधानों के लिए हम सब की तरफ़ टकटकी लगाए देख रहे हैं.”
फ़िलिपों ग्रैन्डी ने कहा कि आज जब शरणार्थियों की स्थिति पर वैश्विक कार्रवाई बिखरी हुई और असंतुलित है, और दुनिया भर में लगभग सात करोड़ 10 लाख लोग अपने देशों के भीतर और बाहर अपने घरों से विस्थापित हैं, तो ज़रूरत है कि हम अपने उपायों में नई जान फूँकें.
उन्होंने कहा कि ज़रूरतमंद लोगों की मदद के लिए एकजुटता दिखाने के बजाय, ज़्यादा संसाधनों वाले देशों ने ज़िम्मेदारी का बोझ ग़रीब देशों की तरफ़ धकेल दिया है.
फ़िलिपो ग्रैन्डी ने कहा कि इसका मतलब ये निकलता है कि “शरणार्थियों को किनारे धकेल दिया जाता है... अक्सर शिविरों में - जहाँ वो मेज़बान समुदायों से दूर होकर सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग पड़ जाते हैं.”
“बेशक मानवीय सहायता से कुछ सहारा मिलता है, और ये बहुत अहम भी है, मगर माहौल को मायूसी से उम्मीद में तब्दील करने के लिए सिर्फ़ ये सहायता ही काफ़ी और समुचित नहीं है.”
स्विटज़रलैंड के संघीय काउंसिलर इगनैज़ियो कैसिस ने सभी देशों द्वारा ज़्यादा ज़िम्मेदारी उठाए जाने का समर्थन करते हुए बताया कि उनके देश ने अगले चार वर्षों के दौरान शरणार्थियों की सुरक्षा के वास्ते साढ़े बारह करोड़ डॉलर की रक़म आबंटित की है.
वैश्विक शरणार्थी फ़ोरम के सह आयोजक इगनैज़ियो कैसिस ने कहा कि बेशक हर 10 में से लगभग 8 शरणार्थी विकासशील देशों में रहते हैं, स्विस क़स्बे और शहर शरणार्थियों को मेज़बान समुदायों में घुलने-मिलने और उनकी सुरक्षा में योगदान कर रहे हैं.
उन्होंने एलबर्ट आइंस्टीन की एक कथनी का उदाहरण देते हुए कहा, “जीवन एक सायकिल की तरह है; आपको चलते रहना है नहीं तो आपका संतुलन बिगड़ जाएगा... ये नियम हम सभी पर लागू होता है, हमें अपना संतुलन नहीं खोना है और हमेशा आगे देखते और बढ़ते रहना है.”
ध्यान रहे कि एलबर्ट आइंस्टीन भी स्विज़रलैंड में एक शरणार्थी रहे थे.
इगनैज़ियो कैसिस ने कहा कि शरणार्थियों की सुरक्षा और उनके घुलने-मिलने में धार्मिक साझेदार भी अहम भूमिका निभा सकते हैं. इस संदर्भ में उन्होंने स्विटज़रलैंड में ईसाई, यहूदी और मुसलमानों द्वारा एक लिखित व अपने आप में अनोखे समझौते का भी उदाहरण दिया जो नैतिकता और एकजुटता पर आधारित है.
जर्मनी के विदेश मंत्री हाईको माआस ने अपने देश की तरफ़ से आहवान किया कि शरणार्थियों संबंधी ज़िम्मेदारी और वज़न ज़्यादा संख्या में और ज़्यादा चौड़े कंधों पर लादा जाना चाहिए.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ऐसे विकासशील देशों के सामने दरपेश दबाव की तरफ़ ध्यान दिलाया जिन्होंने ऐसे लोगों के लिए अपने दरवाज़े खुले रखे हैं जिन्हें किन्हीं कारणों से अपने घर छोड़ने पड़े हैं.
उन्होंने कहा कि इस तरह भारी संख्या में लोगों के विस्थापन से “जिस तरह की समस्याएं पैदा होती हैं, उनका अंदाज़ा धनी देशों को नहीं हो सकता”.
इमरान ख़ान ने कहा कि शरणार्थियों की समस्या से योरोप अलग तरह से जूझ रहा है. ख़ासतौर से लोकलुभावन नारों और भाषणों का सहारा लेने वाले राजनैतिक नेताओं के उभरने से हालात भिन्न हैं जो आमजन की चिंताओं और नव आगंतुकों से उत्पन्न हुए कथित ख़तरे का फ़ायदा उठाना चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में लगभग 30 लाख शरणार्थी मौजूद हैं जबकि देश में भारी बेरोज़गारी भी है, मगर देश जानता है कि इस मुश्किल का सामना कैसे किया जाए.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने प्रतिभागियों में को संबोधित करते हुए कहा कि ये समय महत्वाकांक्षाएँ दिखाने का है. “ये समय ऐसा है जब सहायता के उस मॉडल को दरकिनार कर दिया जाए जिसके तहत दशकों तक शरणार्थियों की ज़िन्दगियों को बेसहारा छोड़ दिया गया था. वो शिविरों तक सीमित रह गए, जहाँ उनकी प्रगति रुक गई और वो ख़ुशहाल रहकर समाजों में योगदान करने के लायक़ ही नहीं बचे.”
“ये समय है जब हम शरणार्थी संकट का सामना करने के लिए ज़्यादा समानता पर आधारित कार्रवाई करें जिसमें सभी देश ज़िम्मेदारी निभाएँ.”
ध्यान रहे कि एंतोनियो गुटेरेश भी महासचिव निर्वाचित होने से पहले 2005 से 2015 तक संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायुक्त रह चुके हैं.
उन्होंने शरणार्थियों की हिफ़ाज़त को इस युग या किसी भी दौर के सबसे बड़े मुद्दों में से एक क़रार दिया.