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शरणार्थी सुरक्षा पर ऐतिहासिक सन्धि को हुए 70 वर्ष

कोसोवो के शरणार्थी, 1999 में मैसीडोनिया के उत्तरी इलाक़े ब्लेस में पहुँचते हुए. (फ़ाइल फ़ोटो)
© UNHCR/Roger LeMoyne
कोसोवो के शरणार्थी, 1999 में मैसीडोनिया के उत्तरी इलाक़े ब्लेस में पहुँचते हुए. (फ़ाइल फ़ोटो)

शरणार्थी सुरक्षा पर ऐतिहासिक सन्धि को हुए 70 वर्ष

प्रवासी और शरणार्थी

संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने कहा है कि 1951 में वजूद में आई शरणार्थी कन्वेन्शन के बुनियादी सिद्धान्तों और भावना के लिये, ये समय, एक बार फिर नवीन संकल्प दोहराने का एक बेहतरीन मौक़ा है. एजेंसी ने इस अन्तरराष्ट्रीय सन्धि की 70वीं वर्षगाँठ के मौक़े पर बुधवार को ये बात कही है.  

संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैण्डी ने कहा है, “यह कन्वेन्शन, दुनिया भर में, शरणार्थियों के अधिकारों की हिफ़ाज़त कर रही है. इस कन्वेन्शन की बदौलत, लाखों लोगों की ज़िन्दगियाँ बचाई जा सकी हैं.”

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कन्वेन्शन 1951 की तरह प्रासंगिक

शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैण्डी ने, अलबत्ता, कुछ देशों की सरकारों द्वारा हाल के समय में, इस कन्वेन्शन के सिद्धान्तों को उपयुक्त महत्व नहीं देने या उन्हें नज़रअन्दाज़ करने के प्रयासों पर चिन्ता भी व्यक्त की है. 

इन प्रयासों में शरणार्थियों व शरण मांगने वालों को अलग-थलग करना या उन्हें भूमि या समुद्र की सीमाओं में धकेल देने से लेकर, उनके काग़ज़ात पर विचार करने की प्रक्रिया के लिये, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित किये बिना ही, किसी तीसरे देश को हस्तान्तरित कर देने जैसे प्रस्ताव शामिल रहे हैं. 

उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा शरणार्थियों की सुरक्षा के महत्वपूर्ण सिद्धान्तों को बरक़रार रखने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया, जैसाकि कन्वेन्शन में प्रावधान किया गया है.

इनमें, उन लोगों का, उत्पीड़न व प्रताड़ना से बचने का अधिकार भी शामिल है जिन्हें फिर से हानि या ख़तरे के उसी रास्ते की तरफ़ नहीं भेजा जा सकता.

शरणार्थी उच्चायुक्त ने, शरणार्थियों  की स्थिति पर वजूद में आई 1951 की इस कन्वेन्शन के 70 वर्ष पूरे होने के अवसर पर कहा कि ये सन्धि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और ये आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी, 70 वर्ष पहले वजूद में आने के समय थी.

अन्तरराष्ट्रीय सहयोग ज़रूरी

1951 की शरणार्थी कन्वेन्शन, दूसरे विश्व युद्ध के बाद के हालात में वजूद में आई थी.

संयुक्त राष्ट्र ने 14 दिसम्बर 1950 को यह सन्धि प्रकाशित की थी, और जुलाई 1951 में, 26 देशों के प्रतिनिधियों ने, इस सन्धि के मसौदे को अन्तिम रूप देने के लिये, जिनीवा में बैठक की थी.

1967 में एक प्रोटोकॉल के ज़रिये, उन लोगों के लिये संरक्षा व सुरक्षा का दायरा बढ़ाया गया था जिन्हें अन्तरराष्ट्रीय सहायता व सुरक्षा की ज़रूरत होती है. 
यह सन्धि ही ये परिभाषित करती है कि कौन लोग शरणार्थी हैं और उन्हें कि तरह की सुरक्षा, सहायता और अधिकार मिलने चाहिये.

ये सन्धि और प्रोटोकॉल, शरणार्थियों की हिफ़ाज़त के लिये आज भी बुनियाद का काम करते हैं और इन्होंने अनगिनत क्षेत्रीय सन्धियों व क़ानूनों के लिये प्रेरणास्रोत का काम किया है.

इनमें 1969 में, अफ़्रीका में हुई शरणार्थी कन्वेन्शन, 1984 में लातीन अमेरिका में हुआ कार्टाजेना घोषणा-पत्र और योरोपीय संघ की साझा शरणार्थी प्रणाली प्रमुख हैं.

1951 की शरणार्थी कन्वेन्शन पर, जिनीवा में, 1 अगस्त 1951 को हस्ताक्षर किये जाते हुए.
© Arni/UN Archives
1951 की शरणार्थी कन्वेन्शन पर, जिनीवा में, 1 अगस्त 1951 को हस्ताक्षर किये जाते हुए.

इस कन्वेन्शन के सिद्धान्तों के लिये, दिसम्बर 2018 में हुए – शरणार्थियों पर ग्लोबल कॉम्पैक्ट के ज़रिये फिर से संकल्प व्यक्त किये गए. 

इन दोनों वैधानिक दस्तावेज़ों में कहा गया है कि अन्तरराष्ट्रीय सहयोग के बिना, शरणार्थियों की समस्याओं व स्थितियों का कोई टिकाऊ समाधान नहीं हो सकता.

शरणार्थी क़ानून के लिये समर्थन

संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय ने तमाम देशों से, शरणार्थी क़ानून के सिद्धान्तों को अपनाने का आग्रह किया है, इनमें 1951 की कन्वेन्शन भी शामिल है. 

इन उपायों में, इस सन्धि के प्रावधानों को परिलक्षित करने वाले क़ानून बनाना, संस्थान स्थापित करना, नीतियाँ बनाना व उन्हें लागू करना शामिल हैं.
शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय ने उन देशों से भी इस कन्वेन्शन पर सहमत होने का आग्रह किया है जिन्होंने अभी ऐसा नहीं किया है.