रैफ़्यूजी फ़ोरम: शरणार्थियों व मेज़बान देशों के लिए निडर व नवीन उपायों पर ज़ोर
विश्व में शरणार्थियों की संख्या दो करोड़ 60 लाख के आंकड़े पर पहुंच गई है और इस चुनौती की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ राजनयिक, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज की बड़ी हस्तियां सोमवार को जिनीवा में शुरू हुए विश्व शरणार्थी फ़ोरम (Global Refugee Forum) में हिस्सा ले रहे हैं. पहली बार आयोजित हो रही इस बैठक के ज़रिए शरणार्थियों व उन्हें शरण देने वाले समुदायों के हितों को ध्यान में रखते हुए समाधानों की तलाश करने पर विचार-विमर्श होगा.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश की मौजूदगी के साथ-साथ इस बैठक में तुर्की के राष्ट्रपति रैचप तैयप एर्दोआन भी हिस्सा लेंगे. ग़ौरतलब है कि तुर्की में लाखों सीरियाई शरणार्थियों ने वर्षों से शरण ली हुई है.
16 से 18 दिसंबर तक चलने वाली इस बैठक से पहले यूएन शरणार्थी एजेंसी के उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैन्डी ने बताया, “मेज़बान देशों पर बोझ कम करने, शरणार्थियों की आत्मनिर्भरता बढ़ाने और युद्धों व यातनाओं के कारण घरों से विस्थापित होने वाले लोगों के लिए स्थाई समाधान ढूंढने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय निडर और नए क़दमों की घोषणा करने के लिए एक साथ आ रहा है.”
सीरिया में लगभग नौ वर्षों से चले आ रहे गृहयुद्ध के कारण बड़ी संख्या में लोग अन्य देशों में शरण लेने के लिए मजबूर हुए हैं और तुर्की ने इस चुनौती से निपटने में सकारात्मक सहयोग दिया है.
शरणार्थियों की सहायता के लिए बैठक में तुर्की के प्रयासों को रेखांकित किया जाएगा - जैसेकि औपचारिक शिक्षा हासिल करने वाले बच्चों की संख्या वर्ष 2016 से इस साल बढ़कर दोगुनी यानी लगभग साढ़े छह लाख हो गई है.
अभिभावकों के बिमना अकेले रह रहे नाबालिग़ों को सुरक्षा और देखभाल प्रदान करने में असरदार साबित हुई इटली की स्वैच्छिक संरक्षक प्रणाली और इथियोपिया में सार्वजनिक जल संबंधी कार्यों में निवेश से शरणार्थियों और मेज़बान समुदायों को मिलने वाले फ़ायदे भी चर्चा के केंद्र में रहेंगे.
पीड़ा हरने का प्रयास
कोस्टारिका, जर्मनी, इथियोपिया और पाकिस्तान से भी महत्वपूर्ण हस्तियां इस बैठक में हिस्सा लेंगी. अंतरराष्ट्रीय संरक्षण की तलाश कर रहे लोगों की बढ़ती संख्या और उनकी पीड़ाओं के मद्देनज़र इन देशों ने समाधानों का हिस्सा बनने की मंशा ज़ाहिर की है.
क़रीब एक वर्ष पहले न्यूयॉर्क में ‘ग्लोबल कॉम्पैक्ट ऑन रैफ्यूजीज़’ पर सरकारों में सहमति हुई थी. इसी संदर्भ में जिनीवा में हो रही बैठक को एक ऐसा अवसर बताया गया है जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दायित्व बांटने के सिद्धांत से ठोस कार्रवाई का रास्ता आगे निकले.
फ़ोरम के दौरान सरकारों और अन्य पक्षकारों की ओर से संकल्पों और योगदानों की घोषणा की आशा की जा रही है जिनसे शरणार्थियों व मेज़बान समुदायों के लिए हालात बेहतर बनाने में मदद मिलेगी.
इस बैठक के लिए सोशल मीडिया पर #EveryoneCounts नाम से मुहिम भी चलाई जा रही है जिसके केंद्र में शरणार्थियों में शिक्षा के ज़रिए ज़रूरी कौशल विकसित करने की अहमियत रेखांकित की जा रही है.
बैठक से पहले संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने सचेत किया है कि आपात हालात में विस्थापन का सबसे ज़्यादा असर युवाओं पर होता है – युवा शरणार्थी कुल शरणार्थियों की संख्या का लगभग पचास फ़ीसदी यानी लगभग एक करोड़ 30 लाख हैं.
स्कूल जाने की उम्र वाले आधे से ज़्यादा शरणार्थी बच्चे कक्षाओं में नहीं हैं और वर्ष 2018 के अंत तक एक लाख 38 हज़ार अकेले या अभिभावकों से अलग हो गए बच्चे यात्रा कर रहे थे.
समाज के सभी क्षेत्रों से मेज़बान समुदायों व शरणार्थियों के लिए समर्थन जुटाने के प्रयासों के तहत यूएन शरणार्थी एजेंसी ने निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों से भी बैठक में हिस्सा लेने की अपील की है.
इनमें लेगो फ़ाउंडेशन और वोडाफ़ोन सहित अन्य कंपनियां शामिल हैं.
इस बैठक में ग़ैरसरकारी संगठन ‘टैंट पार्टनरशिप फ़ॉर रैफ्यूजीज़’ भी शिरक़त कर रहा है. इस संगठन की वेबसाइट बताती है कि स्टारबक्स और मैक्केन फ़ूड्स जैसे साझेदार संगठनों के साथ काम करते हुए टैंट ने अब तक 34 देशों में दो लाख शरणार्थियों की मदद की है.
शरणार्थियों की मदद के लिए निजी क्षेत्र का समर्थन जुटाया जाता है और शरणार्थियों को कामकाज देकर, सप्लाई चेन का हिस्सा बनाकर और शरणार्थी उद्यमियों को सहारा देकर नए जीवन के लिए तैयार किया जाता है.