मलेरिया: बच्चों व गर्भवती महिलाओं की देखभाल पर ज़्यादा ज़ोर
संयुक्त राष्ट्र की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले के मक़ाबले अब कहीं ज़्यादा संख्या में महिलाएँ और बच्चे मलेरिया से बचाए जा रहे हैं लेकिन मलेरिया के ख़िलाफ़ त्वरित कार्रवाई और इसके लिए अंतरराष्ट्रीय एकजुटता सुनिश्चित करने के वास्ते और ज़्यादा धन की ज़रूरत है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बुधवार को विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2019 जारी करते हुए कहा है, "हम प्रोत्साहित करने वाले संकेत देख रहे हैं मगर मलेरिया की वजह से मौतें और तकलीफ़ों के बोझ को स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि आमतौर पर मलेरिया की वजह से होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है.
WHO World Malaria Report 2019🦟: The number of pregnant women 🤰 & children 👶 in sub-Saharan Africa sleeping under insecticide-treated bed nets & benefiting from preventive medicine for #malaria has increased significantly in recent years👉https://t.co/3PKJYcuL3R #EndMalaria pic.twitter.com/6WRj3iEfJ2
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रिपोर्ट में बताया गया है कि सब सहारा अफ्रीका क्षेत्र में अब और भी ज़्यादा संख्या में बच्चों व गर्भवती महिलाओं को मच्छरदानियाँ और मच्छरों को भगाने वाले मलहम व दवाइयाँ उपलब्ध हैं, मगर मलेरिया से सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में प्रगति रुक भी गई है.
वर्ष 2018 में सब सहारा अफ्रीका में लगभग एक करोड़ 10 लाख गर्भवती महिलाएँ मलेरिया से संक्रमित हुई थीं. इस वजह से लगभग 9 लाख बच्चे कम वज़न के साथ पैदा हुए.
विश्व स्वास्थ्य सगंठन के अनुसार गर्भवास्था की वजह से मलेरिया के लिए महिलाओं रोग प्रतिरोधी क्षमता कमज़ोर हो जाती है और इस कारण उन्हें मलेरिया का संक्रमण होना का ख़तरा बढ़ जाता है.
ज़ाहिर है कि इससे उनके बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है, रक्त की कमी हो जाती है और अंततः मौत भी हो जाती है.
गर्भवती महिलाओं को मलेरिया होने से उनके गर्भ में पलने वाले बच्चे के विकास पर भी प्रभाव पड़ता है, इससे समय से पहले ही बच्चे का जन्म होने और उसका वज़न कम होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं.
ध्यान रहे कि बच्चों की मौत का एक प्रमुख कारण उनका वज़न कम होना भी है.
इसके बावजूद कि एहतियाती उपायों के ज़रिए बच्चों व गर्भवती महिलाओं की ज़्यादा मदद हो पा रही है, फिर भी 2014 से 2018 तक मलेरिया से सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में मलेरिया का संक्रमण रोकने की वैश्विक दर में कोई बेहतरी नहीं देखी गई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस एडेनहॉम ग़ैबरेयेसस का कहना था, "बच्चे व गर्भवती महिलाएँ मलेरिया के लिए सबसे ज़्यादा कमज़ोर होते हैं, और हम इन दोनों समूहों पर ज़्यादा ध्यान दिए बिना मलेरिया का मुक़ाबला करने में अच्छी तरह से कामयाब नहीं हो सकते."
महिलाएँ प्राथमिकता पर
सब सहारा अफ्रीका में मलेरिया से महिलाओं महिलाओं और बच्चों की हिफ़ाज़त करने के प्रयासों में हुई प्रगति का ज़िक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि उनमें से लगभग 61 प्रतिशत महिलाएँ 2018 में मच्छरदानियाँ लगाकर सोए जो मच्छरों व कीड़ों से सुरक्षित होती हैं.
जबकि वर्ष 2010 में ये संख्या सिर्फ़ 26 फ़ीसदी थी.
साथ ही जच्चा-बच्चा की देखभाल करने वाले चिकित्सा केंद्रों को मच्छर भगाने वाला मरहम व दवाइयाँ उपलब्ध कराने का दायरा भी बढ़ा है. साल 2017 में ऐसे चिकित्सा केंद्रों की संख्या 22 प्रतिशत थी जो साल 28 में बढ़कर 31 फ़ीसदी हो गई.
इसके बावजूद बड़ी संख्या में महिलाएँ ऐसी हैं जिन्हें अब भी मच्छर भगाने वाला मरहम या दवाई या तो कम मिल पाती है या बिल्कुल ही नहीं मिल पाती है.
रिपोर्ट में ये जानकारी भी सामने आई है कि कुछ महिलाएँ तो जच्चा-बच्चा देखभाल केंद्रों तक पहुँच ही नहीं पाती हैं, जो इन केंद्रों तक पहुँच भी पाती हैं तो उन्हें मच्छर भगाने वाली दवाइयों का लाभ नहीं मिल पाता है क्योंकि या तो ये दवाएँ उपलब्ध न हीं होती हैं या स्वास्थ्यकर्मी ये दवाएँ उन्हें लिखकर नहीं देते हैं.
बच्चों को सुरक्षित रखना
विश्व स्वास्थ्य संगठन सिफ़ारिश करता है कि मलेरिया होने से रोकने के प्रयासों के तहत बच्चों व गर्भवती महिलाओं मच्छरों व कीड़े-मकौड़ों तो दूर भगाने वाली मच्छरदानियां व मरहम वग़ैरा आसानी से मुहैया कराए जाएँ. साथ ही मुस्तैद स्वास्थ्य सेवाएँ भी उपलब्ध हों जो सही समय पर मलेरिया के संक्रमण का पता लगाकर उसकी जाँच व इलाज कर सकें.
संगठन का कहना है कि 2018 में योग्य बच्चों में से लगभग 72 प्रतिशत को एहतियाती मरहम या दवाई का फ़ायदा मिला. इसलिए अफ्रीका के सहेल उपक्षेत्र में ख़ासतौर से बारिश के मौसम में, जब मच्छर ज़्यादा पैदा होते हैं और उनसे मलेरिया का संक्रमण फैलने का ज़्यादा डर होता है, इसलिए इस तरह के मौसमी समय में ख़ासतौर से पाँच साल से कम उम्र वाले बच्चों को एहतियाती मरहम व दवाइयाँ मुहैया कराई जाएँ.
धनराशि की कमी
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि ऐसे समुदायों में मलेरिया, न्यूमोनिया और डायरिया की जाँच-पड़ताल व इलाज के लिए मौजूद अंतर को समुदायों के स्तर पर ज़्यादा घनिष्ठ प्रबंधन के ज़रिए दूर किया जा सकता है जहाँ तक चिकित्सा सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध नहीं हैं.
अब लगभग 30 देशों में ये तरीक़ा लागू किया जा रहा है, सब सहारा अफ्रीका देशों के बहुत से क्षेत्रों में स्वास्थ्य सैक्टर को धन की कमी की वजह से अड़चनें आ रही हैं.
साल 2018 में सब सहारा अफ्रीका क्षेत्र में लगभग 22 करोड़ 80 लाख लोगों को मलेरिया का संक्रमण हुआ और क़रीब 4 लाख 5 हज़ार लोगों की मौत हो गई. धन की कमी इस क्षेत्र में प्रगति करने के लिए एक मुख्य बाधा बनी हुई है.
मलेरिया नियंत्रण और उन्मूलन के प्रयासों के लिए साल 2018 में कुल धन क़रीब दो अरब 70 करोड़ डॉलर उपलब्ध था जोकि 5 अरब डॉलर के वैश्विक लक्ष्य से बहुत कम था.