एड्स का दैत्य निगल जाता है हर दिन 320 बच्चों व किशोरों को

दुनिया भर में हर साल हर दिन क़रीब 320 बच्चे और किशोर युवा एड्स से संबंधित बीमारियों का शिकार हो जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ ने एचआईवी और एड्स के बारे में एक वैश्विक संक्षिप्त रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार साल 2018 में हर घंटा लगभग 13 बच्चों और युवाओं की जान एड्स की वजह से चली गई.
एचआईवी एड्स के संक्रमण के इलाज के लिए समुचित चिकित्सा सेवाओं का अभाव और उसकी रोकथाम के सीमित प्रयासों की वजह से ज़्यादा मौतें होती हैं.
वर्ष 2018 में एचआईवी संक्रमण के साथ जीवन जीने वाले जन्म से 14 वर्ष की उम्र के 54% बच्चों को ही जीवन बचाने वाली चिकित्सा उपलब्ध हो पाई थी. इन बच्चों की संख्या लगभग सात लाख 90 हज़ार थी.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरिएटा फ़ोर का कहना है, “एचआईवी एड्स के ख़िलाफ़ लड़ाई में दुनिया अति महत्वपूर्ण सफलताएँ हासिल करने के कगार पर है, लेकिन हमें अभी तक हासिल की गई कामयाबियों से संतुष्ठ होकर नहीं बैठ जाना है.”
वैसे तो अभी बहुत काम किया जाना बाक़ी है, गर्भवती महिलाओं को ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में इलाज की सुविधाएँ देने से उनके बच्चों को ये संक्रमण स्थानांतरित होने से रोकने में लगभग 20 लाख नए एचआईवी संक्रमण रोकने में मदद मिली है. साथ ही पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 10 लाख बच्चों की मौत को टाला जा सका है, हैनरिएटा फ़ोर
“बच्चों और किशोरों के लिए प्रशिक्षण व इलाज के उपायों को नज़रअंदाज़ करने जीवन और मृत्यु का मामला है, और उन सबके लिए हम बेशक जीवन को चुनेंगे.”
ताज़ा आँकड़े दिखाते हैं कि एचआईवी संक्रमण के साथ जीने वाले बच्चों को इलाज की सुविधाएँ हासिल होने में क्षेत्रीय स्तर पर गहरी असमानता व्याप्त है.
दक्षिण एशियाई देशों में इलाज की सबसे ज़्यादा सुविधाएँ हासिल हैं जहाँ ये संख्या लगभग 91 प्रतिशत है.
उसके बाद मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका है जहाँ लगभग 73 फ़ीसदी मरीज़ों को इलाज की सेवाएँ मिलती हैं.
पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में 61 प्रतिशत, पूर्वी एशिया व प्रशांत में 61 फ़ीसदी, लीतीनी अमेरिका व कैरीबियाई क्षेत्र में 46 प्रतिशत और पश्चिम व मध्य अफ्रीका में ये संख्या 28 प्रतिशत है.
एचआईवी / एड्स के संक्रमण के साथ जीवन जीन वाली महिलाओं ये संक्रमण अपने बच्चों तक पहुँचने से रोकने के लिए चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता पूरे विश्व में बढ़ी है और ये संख्या लगभग 82 प्रतिशत है. रिपोर्ट के अनुसार लगभग दस साल पहले ये संख्या क़रीब 44 फ़ीसदी थी.
अलबत्ता इस मामले में भी क्षेत्रीय असमानता मौजूद है. पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में ऐसी चिकित्सा सुविधाएँ लगभग 92 प्रतिशत महिलाओं को मयस्सर हैं.
उसके बाद लातीनी अमेरिका और कैरीबियाई देशों में 79 फ़ीसदी, पश्चिमी व मध्य अफ्रीकी देशों में 59 प्रतिशत, दक्षिण एशिया में 56 प्रतिशत, पूर्वी एशिया और प्रशांत में 55 फ़ीसदी, और मध्य पूर्व व उत्तर अफ्रीका में 53 प्रतिशत है.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरीएटा फ़ोर का कहना था, “वैसे तो अभी बहुत काम किया जाना बाक़ी है, गर्भवती महिलाओं को ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में इलाज की सुविधाएँ देने से उनके बच्चों को ये संक्रमण स्थानांतरित होने से रोकने में लगभग 20 लाख नए एचआईवी संक्रमण रोकने में मदद मिली है.
साथ ही पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 10 लाख बच्चों की मौत को टाला जा सका है.”
उनका कहना था, “हमें ऐसी ही प्रगति बच्चों के इलाज में देखने की ज़रूरत है. बच्चों और उनकी माताओं के बीच के इस अंतर को कम करने से आयु अपेक्षता में महत्वपूर्ण बढ़ोत्तरी की जा सकती है. साथ ही एचआईवी से संक्रमित बच्चों के जीवन में गुणवत्ता सुधारी जा सकती है.”
इस रिपोर्ट में कुछ ये तथ्य भी महत्वपूर्ण हैं:
एचआईवी-एड्स के संक्रमण को भविष्य की पीढ़ियों के लिए दरपेश इस स्वास्थ्य ख़तरे को ख़त्म करने के लिए यूनीसेफ़ ने सरकारों और साझीदारों से अनुरोध किया है:
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरिएटा फ़ोर का कहना था, “एचआईवी के संक्रमण के ख़तरे का सामना करने वाले हर बच्चे के परीक्षण और इलाज में नाकाम रहने का नुक़सान हम बच्चों के जीवन व भविष्य को नज़र में रखकर मापते हैं – ये इतना बड़ा नुक़सान है जो कोई भी समाज वहन नहीं कर सकता.”
“एचआईवी संक्रमण को रोकने के तमाम प्रयासों में पर्याप्त धन निवेश व असरदार उपकरणों का उपलब्ध होना बहुत ज़रूरी है. इन प्रयासों के तहत पहले और दूसरे दशकों में बच्चों के जीवन स्तर में सुधार लाना भी शामिल है.”