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एचआईवी ग्रस्त लोगों को सशक्त बनाने से ख़त्म होगी ये बीमारी

चाड में एक एचआईवी एड्स जागरूकता केंद्र में एक 19 वर्षीय कार्यकर्ता कॉन्डोम्स का प्रदर्शन करते हए. (मार्च 2019)
© UNICEF/Frank Dejong
चाड में एक एचआईवी एड्स जागरूकता केंद्र में एक 19 वर्षीय कार्यकर्ता कॉन्डोम्स का प्रदर्शन करते हए. (मार्च 2019)

एचआईवी ग्रस्त लोगों को सशक्त बनाने से ख़त्म होगी ये बीमारी

स्वास्थ्य

एचआईवी - एड्स के ख़िलाफ़ लड़ाई में संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों की अगुवाई कर रही एजेंसी यूएनएड्स ने कहा है कि एचआईवी के संक्रमित लोगों को जब उनकी ख़ुद की देखभाल करने के प्रयासों में सक्रिय भागीदारी करने का मौक़ा मिलता है तो संक्रमण के नए मामले कम होते हैं और ऐसी स्थिति में ज़्यादा संख्या में संक्रमित लोगों को इलाज की सुविधा हासिल होती है.

यूएन एड्स की कार्यकारी निदेशक विनी ब्यानयीमा का कहना है कि एचआईवी संक्रमण के साथ जीवन जीने वाले लोगों को सशक्त बनाने से इस महामारी का ख़ात्मा करने में मदद मिलेगी.

हर साल एक दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है. इसी मौक़े पर यूएन एड्स ने एक रिपोर्ट जारी की जिसका नाम है - पॉवर टू पीपुल यानी लोगों को सशक्त बनाना.

रिपोर्ट कहती है कि जब लोगों को अपनी पसंद निर्धारित करने और साथ मिलजुलकर काम करने का मौक़ा मिलता है तो ज़िंदगियाँ बचाई जा सकती हैं, अन्याय होने से रोका जाता है और लोगों का सम्मान व प्रतिष्ठा बहाल की जाती है.

यूएन एड्स की कार्यकारी निदेशक विनी ब्यानयीमा का इस मौक़े पर कहना था, "जब लोगों और समुदायों के पास शक्ति व एजेंसी होती है तो बदलाव आता है." 

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"महिलाओं, युवा लोगों, पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाने वाले पुरुषों, यौनकर्मियों, ट्रांसजेंडरों, मादक पदार्थों का सेवन करने वालों के बीच एकजुटता ने एड्स नामक महामारी का रूप बदल दिया है - इन सभी को सशक्त बनाने से ये महामारी ख़त्म भी हो सकती है."

अब स्थिति क्या है?

रिपोर्ट कहती है कि एड्स के ख़िलाफ़ लड़ाई में ख़ासी कामयाबी हासिल हुई है, ख़ासतौर से इलाज तक पहुँच बढ़ाने में.

वर्ष 2019 के मध्य तक लगभग तीन करोड़ 79 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित थे, उनमें से लगभग दो करोड़ 45 लाख लोगों को इलाज की सुविधाओं तक पहुँच हो गई थी.

इससे भी ज़्यादा इलाज की सुविधाओं का दायरा  और भी ज़्यादा बढ़ाया जा रहा है, इसलिए एड्स से संबंधित बीमारियों की वजह से अब कम लोगों की मौत हो रही है.

इसके बावजूद, वर्ष 2010 के बाद से संक्रमण के ने मामलों में मामूली सी ही गिरावट आई है. इसके उलट, कुछ क्षेत्रों में संक्रमण के नए मामले बढ़ने की वजह से चिंता बढ़ रही है.

विश्व एड्स दिवस के मौक़े पर संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यूनीसेफ़ ने भी एक रिपोर्ट जारी करके कहा है कि एड्स संबंधी बीमारियों से हर दिन तकरीबन 320, यानी हर घंटा लगभग 13 लोगों की मौत हो जाती है. 

(एड्स का दैत्य निगल जाता है हर दिन 320 बच्चों व किशोरों को)

अफ्रीकी महिलाएँ

एचआईवी से सबसे ज़्यादा संक्रमित क्षेत्र पूर्वी व दक्षिणी अफ्रीका है. इस क्षेत्र में 15 से 24 वर्ष की लड़कियों और महिलाओं में एचआईवी संक्रमण के मामलों में 2010 व 2018 के दौरान कमी दर्ज की गई है.

इसके बावजूद सब सहारा अफ्रीका एचआईवी के संक्रमण के हर 5 नए मामलों में से 4 मामलों में लड़कियाँ होती हैं यानी उनकी संक्रमण के नए मामलों में 80 प्रतिशत संख्या किशोरियों की है.

इस क्षेत्र में 15 से 19 वर्ष की लड़कियों और महिलाओं की आधी संख्या गर्भ निरोधक उपाय अपनाने में नाकाम रही हैं. 

लैंगिक असमानता, पितृसत्तात्मक परंपराओं, हिंसा, भेदभाव और यौन स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच जैसे कारकों से किशोरियों और युवा महिलाओं में एचआईवी संक्रमण बढ़ता है, ख़ासतौर से इस क्षेत्र में.

यूएन एड्स प्रमुख का कहना था, "दुनिया के बहुत से इलाक़ों में एचआईवी संक्रमण के नए मामले कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है जिसके परिणामस्वरूप एड्स संबंधी मौतें रोकने और भेदभाव रोकने में मदद मिली है... लेकिन लैंगिक असमानता और मानवाधिकार उल्लंघन की वजह से बहुत से लोग अब भी पीछे रह गए हैं."

हर सप्ताह लगभग 6000 युवा महिलाएँ और लड़कियों के एचआईवी से संक्रमित होने के मामले सामने आते हैं. 

अन्य नाज़ुक समूह

एचआईवी संक्रमण के नए मामलों में पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाने वाले पुरुषों, ट्रांसजैंडरों और यौनकर्मियों की संख्या लगभग 75 फ़ीसदी है, और इन सबको इलाज मिलने की बहुत कम संभावना है. विडम्बना ये है कि इनमें से एक तिहाई से ज़्यादा को तो अपने एचआईवी संक्रमण से अनजान हैं.

यूएन एड्स प्रमुख विनी ब्यानयीमा का कहना था, "सामाजिक अन्याय, असमानता, नागरिक अधिकारों का खंडन और कलंक की मानसिकता व भेदभाव जैसे कारक एचआईवी के ख़िलाफ़ लड़ाई टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्रगति को बाधित कर रहे हैं."

यूएन एड्स ने तमाम देशों का आहवान किया है कि वो समुदायों के नेतृत्व वाले संगठनों को बढ़ावा दें जहाँ ना सिर्फ़ फ़ैसले लेने में सभी की भागीदारी हो बल्कि बाधाएं भी दूर की जाएँ.