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ऑनलाइन नफ़रत के ऑफ़लाइन दुष्परिणामों को रोकने में 'देश व कंपनियां नाकाम'

ऑनलाइन हेट स्पीच से निपटने में अब तक सरकारे सफल नहीं हो पाई हैं.
Unsplash/Priscilla du Preez
ऑनलाइन हेट स्पीच से निपटने में अब तक सरकारे सफल नहीं हो पाई हैं.

ऑनलाइन नफ़रत के ऑफ़लाइन दुष्परिणामों को रोकने में 'देश व कंपनियां नाकाम'

मानवाधिकार

अभिव्यक्ति की आज़ादी पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ (विशेष रैपोर्टेयर) डेविड काए ने कहा है कि ऑनलाइन माध्यमों पर फैल रही नफ़रत पर रोक लगाने में देश और कंपनियां विफल साबित हो रही हैं. सोमवार को एक रिपोर्ट भी जारी की गई है जिसमें इस विकराल चुनौती से निपटने के लिए इंटरनेट पर क़ानूनी मानकों का सहारा लेने की बात कही गई है.

विशेष रैपोर्टेयर ने सचेत किया कि ‘हेट स्पीच’ के विषय में एक सुसंगत नीति ना होने और सही ढंग से निगरानी किए जाने से डिजिटल युग उसके वास्तविक ख़तरे हैं जिसका शिकार सबसे पहले वंचित समुदाय  होता है. सोमवार को इस नई रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र महासभा में पेश किया गया है.

सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने इस मुद्दे पर एक खुला ख़त लिखकर हेट स्पीच के ख़तरों के बारे में सतर्क किया था. उनके मुताबिक़ ऑनलाइन और ऑफ़लाइन नफ़रत भरे भाषणों व संदेश के फैलने से सामाजिक और नस्लीय तनाव में बढोत्तरी हो रही है और इससे हमलों को उकसावा मिल रहा है जिसके दुनिया के लिए घातक परिणाम होंगे.

डेविड काए ने कहा कि ऑनलाइन नफ़रत के बढ़न से वंचितों को सबसे पहले चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और वही इसका सबसे पहले निशाना बनते हैं.

जून 2019 में यूएन प्रमुख ने विदेशियों के प्रति डर और नापसंदगी, नस्लवाद और यहूदीवाद-विरोध जैसी समस्याओं से निपटने के लिए अपनी एक नई योजना को सामने रखा था. उन्होंने आगाह किया था कि नफ़रत भरे और विध्वंसकारी विचारों को डिजिटल तकनीक से मदद मिल रही है.

संयुक्त राष्ट्र की रणनीति और कार्ययोजना में नफ़रत भरे संदेशों के मूल कारणों – हिंसा, हाशिएकरण, भेदभाव और ग़रीबी - पर ध्यान केंद्रित किया गया है. इसका मुक़ाबला करने के लिए कमज़ोर राष्ट्रीय संस्थाओं को मज़बूत बनाने पर भी ज़ोर दिया गया है.

यूएन प्रमुख से सहमति जताते हुए डेविड काए ने कहा कि ऑनलाइन नफ़रत को इसलिए कम करके आंका नहीं जा सकता क्योंकि यह ऑनलाइन है. इसके विपरीत ऑनलाइन नफ़रत जिस तेज़ी से फैलती है उसके ऑफ़लाइन गंभीर परिणाम हो सकते हैं. उनके मुताबिक़ यह सोचा जाना आवश्यक है कि इसकी रोकथाम करते समय सभी के अधिकारों का सम्मान भी किया जा सके.

मानवाधिकारों में समाहित

सोमवार को जारी रिपोर्ट में सदस्य देशों से मानवाधिकार संधियों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के तहत तय दायित्वों को निभाने का अनुरोध किया गया है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति और ‘2013 रबात प्लान ऑफ़ एक्शन’ में नफ़रत और भेदभाव को उकसावा दिए जाने से रोकने के लिए राज्यसत्ता के दायित्वों को स्पष्ट किया गया है.

डेविड काए ने कहा कि कंपनियां मानवाधिकारों का सम्मान करने में अपनी ज़िम्मेदारियों को सही ढंग से नहीं निभा रही हैं जबकि उन्हीं के प्लेटफ़ॉर्म पर नफ़रत प्रेरित संदेशों को बढ़ावा मिल रहा है.

ऑनलाइन हेट स्पीच से निपटने के लिए नए रोडमैप में रेखांकित किया गया है कि कंपनी की संस्कृति से मानवाधिकारों के पालन के श्रेष्ठ तरीक़ों को बाहर रखने के क्या प्रभाव हो सकते हैं.

“मानवाधिकार समुदाय ने सोशल मीडिया और इंटरनेट इकॉनॉमी की अन्य कंपनियों से लंबे समय से बातचीत की है. इसके बावजूद कंपनियां अड़ियल रुख़ अपनाकर ऐसी नीतियों को जारी रखे हैं जो बुनियादी मानवाधिकार क़ानून के तहत उनकी कार्रवाई को स्पष्ट रूप से सामने रखे.”

यह रिपोर्ट एक ऐसे समय में आई है जब सोशल मीडिया की बड़ी कंपनी फ़ेसबुक पर झूठी न्यूज़ रिपोर्टों व ग़लत सूचनाओं के अलावा फैल रही हिंसक सामग्री को रोकने का दबाव डाला जा रहा है.

“अपनी ताक़त और प्रभाव को ना आंक पाने की कंपनियों की विफलता और जनहित के बजाए शेयरधारकों का ध्यान रखने का अंत तत्काल होना चाहिए. इस रिपोर्ट ने कंपनियों को रास्ता बदलने का एक ज़रिया दिया है.”

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है.

स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.