हर जगह उपस्थित है माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण

माइक्रोप्लास्टिक कहे जाने वाले प्लास्टिक के छोटे कण हमारे पीने के पानी सहित हर जगह फैले हुए हैं और उनसे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले संभावित दुष्प्रभावों पर चिंता जताई जाती रही है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी (WHO) की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि यह ज़रूरी नहीं है कि माइक्रोप्लास्टिक के कण मानव स्वास्थ्य के लिए किसी ख़तरे का कारण हों.
प्लास्टिक के सूक्ष्म प्रदूषकों से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर पर शोध परिणाम विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गुरुवार को जारी किए. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि माइक्रोप्लास्टिक समुद्री जल, कचरे, व ताज़ा पानी, भोजन, हवा और पीने के पानी में पाए जाते हैं.
संगठन के अनुसार माइक्रोप्लास्टिक कणों की लंबाई पांच मिलीमीटर से भी कम होती है. रिपोर्ट बताती है कि पीने के पानी में पाए जाने वाले कण आम तौर पर प्लास्टिक की बोतल के अंश होते हैं.
The potential hazards associated with microplastics come in three forms:-Physical particles-Chemicals-Microbial pathogens as part of biofilmsAvailable evidence states: chemicals & biofilms associated with microplastics in drinking-water pose a low concern for human health. pic.twitter.com/5o30oUVOce
WHO
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी में निदेशक डॉक्टर मारिया नाएरा ने बताया, “हमारी सीमित जानकारी के आधार पर कहा जा सकता है कि पीने के पानी में माइक्रोप्लास्टिक का मौजूदा स्तर स्वास्थ्य के लिए ख़तरा प्रतीत नहीं होता है. लेकिन हमें और ज़्यादा जानकारी हासिल की आवश्यकता है. हमें तत्काल जानना होगा कि माइक्रोप्लास्टिक का स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है क्योंकि वे हर जगह हैं – हमारे पीने के पानी में भी.”
यूएन एजेंसी के शोध के मुताबिक़ 150 माइक्रोमीटर से बड़े माइक्रोप्लास्टिक अंशों के मानव शरीर में अवशोषित होने की संभावना कम होती है जबकि इससे छोटे कणों के शरीर में प्रवेश करने की संभावना सीमित होती है.
एक मीटर के दस लाखवें हिस्से से एक माइक्रोमीटर बनता है.
रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों का अवशोषण नैनोमीटर की रेंज (मीटर का 1 अरबवां हिस्सा) में ज़्यादा हो सकता है लेकिन इस संबंध में आँकड़े बहुत सीमित है.
पत्रकारों ने जब टंकी के पानी और बोतलबंद पानी में प्लास्टिक प्रदूषकों के स्तर में अंतर के बारे में जब पूछा तो यूएन एजेंसी की जेनिफ़र डे फ़्रांस ने बताया कि बोतलबंद पानी में आम तौर पर कणों की संख्या ज़्यादा होती है.
हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि जल्दबाज़ी में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जाना चाहिए क्योंकि उपलब्ध आँकड़ों की कमी है.
“पीने के पानी में अक्सर पाए जाने वाले दो पॉलिमर पॉलिइथाइलीन टेरीफ़ेथेलेट (पीईटी) और पॉलीप्रोपायलीन हैं. इन पॉलीमर का इस्तेमाल पानी की बोतल बनाने और उनका ढक्कन बनाने में किया जाता है. लेकिन कुछ अन्य पॉलीमर भी पाए गए हैं इसलिए अधिक शोध की आवश्यकता है ताकि उनके स्रोत के बारे में भी किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके.”
चूहों में माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक के अवशोषण पर आधारित कुछ अध्ययन दर्शाते हैं कि इन कणों से लिवर में सूजन और जलन जैसे लक्षण हो सकते हैं.
लेकिन स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में ज़ोर देकर कहा गया कि लोगों के शरीर में प्रदूषकों का इस स्तर पर पहुंचने की संभावना कम ही है.
इस समस्या से पार पाने के लिए सरकारों को जल शोधन के लिए बेहतर तंत्र विकसित करने का सुझाव दिया गया है जिससे माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को 90 फ़ीसदी तक कम किया जा सकता है.
इस रिपोर्ट में व्यापक रूप से इन चिंताओं पर भी प्रकाश डाला गया है कि लोग किस तरह चीज़ों की कम बर्बादी सुनिश्चित करके ज़्यादा टिकाऊ ढंग से जीवन जी सकते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉक्टर ब्रूस गॉर्डन का कहना है कि उपभोक्ताओं को अधिक चिंतित नहीं होना चाहिए.
“इस कहानी में स्वास्थ्य से आगे भी आयाम हैं. इससे मेरा मंतव्य है कि अगर आप एक जागरूक नागरिक के तौर पर प्लास्टिक प्रदूषण के प्रति चिंतित हैं और आपके पास बेहतर प्रबंधन से आने वाली जल आपूर्ति तक पहुंच है तो पीने के लिए उसका इस्तेमाल क्यों न किया जाए? क्यों न प्रदूषण कम किया जाए…यह सही है कि जब आप भ्रमण कर रहे होंगे तो आपको पानी की बोतल की ज़रूरत होगी लेकिन कृपया उसका फिर से इस्तेमाल करें.”