दक्षिण एशिया के देशों में भारी बारिश और बाढ़ का क़हर

दक्षिण एशिया के कई देशों में मॉनसून की मूसलाधार बारिश बाढ़ और मुश्किलों को साथ लाई है जिससे ढाई करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं और 600 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. संयुक्त राष्ट्र मानवीय राहत एजेंसियों के अनुसार इस क्षेत्र में लगातार बारिश से भारत, बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार में पांच लाख से ज़्यादा लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर होना पड़ा है.
बांग्लादेश में भारी बारिश से 40 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं जिनकी मदद के लिए संयुक्त राष्ट्र की टीम हालात की समीक्षा कर रही है.
राहत प्रयासों के तहत कार्रवाई के दायरे का आंकलन किया जा रहा है और जल और साफ़-सफ़ाई व स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों में सरकार को हरसंभव सहायता मुहैया कराई जा रही है.
UNHCR's donation of 3,550 tents will help Bangladeshi families displaced by #monsoon rains The Ministry of Disaster Management and Relief reported that 2.3 million people were affected in 20 of Bangladesh’s 64 districts due to torrential monsoon rains. https://t.co/ROD9dkvnDi
UNHCR_BGD
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने विस्थापित परिवारों की मदद के लिए 20 लाख डॉलर मूल्य के साढ़े तीन हज़ार से ज़्यादा टेंट बांग्लादेश की रेड क्रेसेंट सोसाइटी को दान किए हैं.
म्यांमार के कुछ इलाक़ों में जल उफान स्तर कम होना शुरू हुआ है जिससे विस्थापित लोगों के लिए घर लौटना संभव हो रहा है लेकिन 40 हज़ार से ज़्यादा लोग अब भी विस्थापित हैं.
चारों देशों की सरकारें संयुक्त राष्ट्र, मानवीय सहायता एजेंसियों और निजी क्षेत्र के समर्थन से राहत अभियान में जुटी हैं.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने पिछले सप्ताह भी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा था कि तेज़ बारिश, भीषण बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं में अब तक कम से कम 90 से ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है और लाखों लोगों की ज़िंदगियों पर जोखिम मंडरा रहा है.
अनेक इलाक़ों में सड़कों, पुलों और रेलवे लाइन को नुक़सान पहुंचा है जिस वजह से वहां पहुंचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
भारत के कुछ हिस्सों में तेज़ बारिश और बाढ़ से विकट परिस्थितियां बनी हुई हैं, जबकि अन्य हिस्सों में लोगों को भयंकर गर्मी और पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है.
प्रभावित लोगों को तत्काल साफ़ पानी, भोजन और रहने के लिए सुरक्षित स्थानों की आवश्यकता है.
इस स्थिति से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां सरकारों और साझेदार मानवीय संगठनों के साथ मिलकर काम कर रही हैं ताकि प्रभावित बच्चों और उनके परिवारों तक ज़रूरी मदद पहुंचाई जा सके.
यूनीसेफ़ का कहना है कि चरम मौसम की घटनाओं को हमेशा जलवायु परिवर्तन से नहीं जोड़ा जा सकता है लेकिन उनकी तीव्रता और बारंबरता इशारा करती है कि मानवीय गतिविधियां वैश्विक जलवायु को प्रभावित कर रही हैं.
ऐसी आपदाओं से लोगों की मौत होने और बर्बादी के अलावा कुपोषण, मलेरिया और हैज़ा जैसी बीमारियां सिर उठाती हैं.