आठ अरब आबादी, एक मानवता; 'स्वास्थ्य और विज्ञान में असाधारण प्रगति का परिचायक'

यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने इस अहम पड़ाव से पहले अपने एक सम्पादकीय में सचेत किया है कि जैसे-जैसे हमारा मानव परिवार बड़ा हो रहा है, यह और अधिक विभाजित भी हो रहा है.
उन्होंने कहा कि अरबों लोग दैनिक जीवन में संघर्ष कर रहे हैं, करोड़ों लोग भूख की मार झेल रहे हैं, और कर्ज़, कठिनाई भरी परिस्थितियों, युद्ध और जलवायु आपदाओं से बचने के लिये रिकॉर्ड संख्या में लोग अपना घर छोड़कर जाने के लिये मजबूर हो रहे हैं.
“अगर हमने वैश्विक स्तर पर साधन-सम्पन्न और वंचित लोगों के बीच लगातार बढ़ती इस खाई को नहीं पाटा, तो हम आठ अरब [आमजन] वाले एक ऐसे विश्व की ओर ताक रहे होंगे, जोकि तनाव, अविश्वास, संकट और हिंसक संघर्ष से भरा होगा.”
महासचिव ने सचेत किया कि विश्व में केवल चंद अरबपति के हाथों में इतनी सम्पदा है, जितनी विश्व में 50 फ़ीसदी सर्वाधिक निर्धन आबादी के पास है. शीर्ष एक फ़ीसदी के पास विश्व आय का क़रीब 20 प्रतिशत हिस्सा है.
सबसे धनी देशों के नागरिक, सर्वाधिक निर्धन देशों के नागरिकों की तुलना में 30 वर्ष अधिक लम्बी आयु की अपेक्षा है.
यूएन प्रमुख ने गहराते जलवायु संकट और कोविड-19 से विषमतापूर्ण पुनर्बहाली का उल्लेख करते हुए कहा कि, “जैसे-जैसे दुनिया हाल के दशकों में पहले से कहीं अधिक धनी और स्वस्थ हुई है, ये विषमताएँ भी बढ़ी हैं.”
“हम सीधे जलवायु विनाश की ओर बढ़ रहे हैं, जबकि उत्सर्जन और तापमान का बढ़ना लगातार जारी है. बाढ़, तूफ़ान और सूखे से वो देश भी बर्बाद हो रहे हैं, जिन्होंने वैश्विक तापमान वृद्धि में कुछ भी योगदान नहीं दिया.”
उन्होंने सचेत किया कि परमाणु निरस्त्रीकरण से लेकर आतंकवाद और वैश्विक स्वास्थ्य समेत अन्य मुद्दों पर, देरी और गतिरोध के कारण विकसित देशों के प्रति क्रोध और द्वेष चरम पर पहुँच रहा है.
“हमें इन हानिकारक रुझानों को रोकना होगा, रिश्तों को सुधारना होगा और हमारी साझा चुनौतियों के साझा समाधान ढूँढने होंगे.”
महासचिव गुटेरेश ने अपने लेख में ध्यान दिलाया की तेज़ी से बढ़ती असमानता एक चयन है.
उन्होंने कहा कि यह विकसित देशों का दायित्व है कि मिस्र में कॉप27 जलवायु सम्मेलन और इंडोनेशिया के बाली में अगले मंगलवार को जी20 शिखर बैठक का उपयोग बदलाव की ओर बढ़ने में किया जाए.
“मुझे आशा है कि कॉप27 में एक ऐतिहासिक जलवायु एकजुटता समझौता आकार लेगा, जिसके तहत विकसित और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ एक साझा रणनीति के इर्दगिर्द एकत्र होंगी, और मानवता की भलाई के लिये अपनी क्षमताओं व संसाधनों को जुटाएंगी.”
यूएन प्रमुख के अनुसार उनकी ‘एकमात्र उम्मीद’ सम्पन्न देशों द्वारा उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को वित्तीय व तकनीकी समर्थन मुहैया कराया जाना है, ताकि जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता दूर की जा सके.
उन्होंने विश्व नेताओं से एक रोडमैप और संस्थागत फ़्रेमवर्क पर सहमति बनाने का आग्रह किया, ताकि विकासशील देशों को जलवायु-सम्बन्धी हानि व क्षति के लिये मुआवज़ा दिया जा सके.
इसके साथ ही, यूएन प्रमुख ने एक पैकेज का भी सुझाव दिया, जिसे आगामी जी20 समूह बैठक के दौरान, ज़रूरतमंद देशों को कर्ज़ राहत देने के लिये पारित किया जा सकता है.
इस बीच, यूक्रेन में युद्ध के कारण खाद्य, ऊर्जा व वित्त संकट उपजा है, जिससे विकासशील देश सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं, और उन्हें बढ़ते कर्ज़, निर्धनता और भरपेट भोजन ना मिलने की चुनौती से जूझना पड़ रहा है.
जलवायु संकट इन सभी समस्याओं को अधिक गहरा कर रहा है.
यूएन प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों के फलस्वरूप, ‘काला सागर अनाज निर्यात पहल’ वैश्विक खाद्य संकट के दंश को कम करने और ज़िंदगियों की रक्षा करने के लिये अहम है.
उन्होंने भरोसा जताया कि विशाल चुनौतियों के बावजूद, आठ अरब की आबादी वाली दुनिया, विश्व के उन सर्वाधिक निर्धन देशों के लिये अपार अवसर मुहैया करा सकती है, जहाँ आबादी वृद्धि सबसे अधिक है.
यूएन प्रमुख के अनुसार स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, लैंगिक समानता और टिकाऊ आर्थिक विकास में अपेक्षाकृत कम निवेश से ही, मौजूदा दौर के निर्धनतम देश सतत, हरित प्रगति और समृद्धि का इंजन बन सकते हैं.