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बिजली से चलने वाले वाहनों के इस्तेमाल को प्रोत्साहन

बिजली से चलने वाली कारें.
UN Photo/JC McIlwaine
बिजली से चलने वाली कारें.

बिजली से चलने वाले वाहनों के इस्तेमाल को प्रोत्साहन

एसडीजी

एशिया के कई देशों में वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन की बढ़ती मात्रा एक बड़ी समस्या है. इन ख़तरों से निपटने में बिजली चालित वाहन एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं और इसी उद्देश्य से भारत सहित कई देशों में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने वाली नीतियां अपनाने की दिशा में काम किया जा रहा है.

हाल ही में भारत सरकार ने बिजली से चलने वाली कारों के ख़रीदारों और निर्माता कंपनियों को 1.4 अरब डॉलर की सहायता मुहैया कराने की घोषणा की. सरकार की ओर से प्रस्तावित 1.4 अरब डॉलर में से 1.2 अरब डॉलर की राशि सब्सिडी के तौर पर दी जानी है जबकि 14 करोड़ डॉलर से कारों को रिचार्ज करने का ढांचा तैयार करने पर ध्यान दिया जाएगा. बाक़ी बची राशि से प्रशासनिक और विज्ञापन संबंधी ज़रूरतों को पूरा किया जाने की योजना है.

भारत सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक सार्वजनिक परिवहन में बिजली से चलने वाले वाहनों की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत तक हो. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज़ोर देकर कहा है कि वह भारत को बैटरी उत्पादन से लेकर बिजली चालित वाहनों के उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाते देखना चाहते हैं. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस ढंग से नीतियां बनाने की बात कही गई है जिनका लाभ उन सभी को मिलेगा जो ऑटोमोबाइल सेक्टर में अवसरों की तलाश कर रहे हैं.

मौजूदा समय में भारत में इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली सिर्फ़ दो कंपनिया हैं, टाटा मोटर्स और महिंद्रा. इनके अलावा ह्यूंडई और किया मोटर्स जैसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनिया भारतीय बाज़ार की ज़रूरतों के अनुसार इलेक्ट्रिक कार विकिसत कर रही हैं. किया मोटर्स ने भारत में आंध्र प्रदेश राज्य की सरकार के साथ एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके तहत राज्य में बिजली चालित वाहनों को बढ़ावा देने में सहायता दी जाएगी.

हैदराबाद, चेन्नई और गुवाहाटी सहित भारत में कई बड़े शहर सार्वजनिक परिवहन के लिए बिजली से चलने वाली बसों के परीक्षण की योजना पर काम कर रहे हैं.

चालकरहित और बिजली से चलने वाली कार.
UN News/Yasmina Guerda
चालकरहित और बिजली से चलने वाली कार.

एशिया में वायु प्रदूषण के मुद्दे पर मार्च महीने में नैरोबी में हुई ‘यूएन साइंस बिज़नेस पॉलिसी फॉरम’ के दौरान भी चर्चा हुई. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) में एशिया-पैसेफ़िक के क्षेत्रीय निदेशक डेशेन त्सेरिंग ने कहा कि भारत के निजी क्षेत्र ने इलेक्ट्रिक कारों को बनाने में काफ़ी दिलचस्पी दिखाई है लेकिन बैटरी के महंगे दाम एक बड़ी समस्या हैं.

“हर चीज़ का आयात करने से वे बचना चाहते हैं और इसमें मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. वह यह जानने में जुटे हैं कि घरेलू बाज़ार में कितना कुछ उपलब्ध है.”

अक्षय ऊर्जा से चलने वालों वाहनों और उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले कलपुर्ज़ों की उपलब्धता निम्न-मध्य आय वाले देशों में अब भी एक चुनौती है. कई बार बेहद ज़रूरी पुर्ज़े जैसे सोलर पैनल या लिथियम बैटरियों का उत्पादन स्थानीय स्तर पर नहीं होता.

एशिया-प्रशांत क्षेत्र की कुल जनसंख्या का 92 फ़ीसदी हिस्सा – लगभग 4 अरब लोग – वायु प्रदूषण के ख़तरनाक स्तर का सामना कर रहे हैं जिससे उनके स्वास्थ्य को ख़तरा है.

वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए एक नई रिपोर्ट में नीतियों में बदलाव के 25 सुझाव दिए गए हैं और इनमें इलेक्ट्रिक कारों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना भी शामिल है. रिपोर्ट के मुताबिक़ अगर सरकारें इन सुझाव को मान लें तो प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए अन्य महंगे विकल्पों से बचा जा सकता है.

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डवेलपमेंट (ICIMOD) में क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधक, अर्निको कुमार पांडे का मानना है कि एशिया में टैक्स के ज़रिए इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना संभव है. उन्होंने नेपाल का उदाहरण देते हुए बताया कि जहां पेट्रोल या डीज़ल से चलने वाली कार ख़रीदते समय 220 प्रतिशत टैक्स देना पड़ता है लेकिन इलेक्ट्रिक कारों के लिए यह सिर्फ़ 10 फ़ीसदी है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण (UNEP) का ई-मोबिलिटी कार्यक्रम उभरती अर्थव्यवस्थाओं सहित सभी देशों को इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ाने में समर्थन देता है. इसके सरकारों को नीतियां विकसित करने, सर्वोत्तम कार्य प्रणाली का आदान प्रदान करने, उत्सर्जन की निगरानी करने जैसे कामों में मदद दी जाती है.

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