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पुराने वाहनों के निर्यात से वायु गुणवत्ता और सड़क सुरक्षा को ख़तरा

विकसित देशों में इस्तेमाल किये हुए पुराने वाहनों की माँग विकासशील देशों ख़ासी बढ़ी है.
Unsplash/Steve Harvey
विकसित देशों में इस्तेमाल किये हुए पुराने वाहनों की माँग विकासशील देशों ख़ासी बढ़ी है.

पुराने वाहनों के निर्यात से वायु गुणवत्ता और सड़क सुरक्षा को ख़तरा

एसडीजी

अमेरिका, योरोप और जापान में अनेक वर्षों तक इस्तेमाल की जा चुकी लाखों कारों, वैन और मिनी बसों का निर्यात विकासशील देशों को किया जाता है, लेकिन ख़राब गुणवत्ता होने के कारण उनसे वायु प्रदूषण फैलता है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रयासों में बाधाएँ पैदा होती हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक नई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है जो सोमवार को जारी की गई.

'Used Vehicles and the Environment - A Global Overview of Used Light Duty Vehicles: Flow, Scale and Regulation', अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है जिसमें पुराने वाहनों को फिर इस्तेमाल करने के लिये न्यूनतम गुणवत्ता मानक निर्धारित किये जाने का आग्रह किया गया है.

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इससे इस्तेमाल किये जा चुके वाहनों को आयात करने वाले देशों में भी स्वच्छ हवा और सुरक्षित सड़कें सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी. 

यह रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2015 से 2018 के बीच इस्तेमाल किये जा चुके एक करोड़ 40 लाख हल्के वाहन दुनिया भर में निर्यात किये गए.

इनमें से 80 फ़ीसदी वाहन निम्न और मध्य आय वाले देशों को भेजे गए, और उनकी भी आधी से ज़्यादा संख्या अफ़्रीकी देशों को निर्यात की गई. 

यूएन पर्यावरण एजेंसी की कार्यकारी निदेशक इन्गेर एण्डरसन ने कहा, “दुनिया में वाहनों के बेड़े को साफ़-सुथरा बनाना वैश्विक और स्थानीय वायु गुणवत्ता व जलवायु लक्ष्यों को पाने के लिये एक प्राथमिकता है.” 

“विकसित देशों को उन वाहनों का निर्यात रोकना होगा जोकि पर्यावरण और सुरक्षा निरीक्षण में विफल रहते हैं और ख़ुद निर्यातक देशों में सड़कों पर चलाने लायक नहीं समझे जाते, जबकि आयातक देशों को मज़बूत गुणवत्ता मानक अपनाने होंगे.”

प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार

वैश्विक स्तर पर वाहनों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है जिससे वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की समस्या का आकार भी बढ़ रहा है.

ग़ौरतलब है कि ऊर्जा सम्बन्धी कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 25 फ़ीसदी उत्सर्जन के लिये परिवहन सैक्टर ज़िम्मेदार है. वाहनों से होने वाला उत्सर्जन बारीक कणीय पदार्थों ‘Fine particulate matter’ और नाइट्रोजन ऑक्साइड का एक अहम स्रोत है जिससे किसी भी स्थान की आबोहवा प्रदूषित होती है. 

इस रिपोर्ट में 146 देशों से मिले आँकड़ों का विश्लेषण किया गया है – लगभग दो-तिहाई देशों में पुराने वाहनों की आयात सम्बन्धी नीतियाँ ‘कमज़ोर’ या ‘बेहद कमज़ोर’ पाई गईं. 

लेकिन रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि जब देशों ने इस्तेमाल किये हुए वाहनों के आयात के सिलसिले में, उत्सर्जन मानक या वाहनों की आयु सीमा सम्बन्धी नीतियाँ लागू की हैं, तो उससे उच्च-गुणवत्ता वाले पुराने वाहनों तक पहुँच सम्भव हुई है, जिनमें किफ़ायती दामों पर बिजली चालित और हाइब्रिड वाहन शामिल हैं.

अफ़्रीकी देशों में सबसे बड़ी संख्या में पुराने वाहनों (40 फ़ीसदी) का आयात होता है, जिसके बाद पूर्वी योरोप (24 फ़ीसदी), एशिया-प्रशान्त (15 फ़ीसदी), मध्य पूर्व (12 फ़ीसदी) और लातिन अमेरिका (9 फ़ीसदी) हैं. 

योरोपीय देश नीदरलैण्ड्स पुराने वाहनों का एक मुख्य निर्यातक देश है जहाँ हाल ही में निर्यात पर आधारिक एक समीक्षा में पाया गया कि निर्यात किये जाने वाले अधिकाँश वाहनों के पास सड़कों पर फिर इस्तेमाल किये जाने सम्बन्धी सर्टिफ़िकेट नहीं थे. 

अधिकाँश वाहन 16 से 20 वर्ष पुराने थे और योरोपीय संघ के वाहन उत्सर्जन मानकों पर खरे नहीं उतरते थे. 

असुरक्षित सड़कें

ख़राब गुणवत्ता वाले पुराने वाहनों से सड़क दुर्घटनाओं का जोखिम भी बढ़ जाता है.

रिपोर्ट के मुताबिक वाहन नियामकों के मामले में कमज़ोर नीतियों वाले देशों, जैसेकि मलावी, नाइजीरिया, ज़िम्बाब्वे और बुरुण्डी में बड़ी संख्या में सड़क दुर्घटनाओं के कारण मौतें होती हैं. 

इसके विपरीत, जिन देशों ने इस्तेमाल किये जा चुके वाहनों के आयात के सम्बन्ध में नियम व क़ानून लागू किये हैं वहाँ इन दुर्घटनाओं को रोकने में सफलता मिली है. 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, यूएन सड़क सुरक्षा ट्रस्ट कोष और अन्य साझीदारों के सहयोग से एक ऐसी नई पहल का समर्थन कर रहा है जिसके ज़रिये पुराने वाहनों के लिये न्यूनतम मानक स्थापित किये जाएँगे.

इस पहल के तहत आरम्भ में अफ़्रीकी देशों पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है जबकि बहुत से देशों ने अपने यहाँ न्यूनतम गुणवत्ता मानक पहले से ही लागू कर दिये हैं.

इनमें मोरक्को, अल्जीरिया, आइवरी कोस्ट, घाना व मॉरीशस शामिल हैं और अन्य देशों ने इस पहल में शामिल होने की इच्छा ज़ाहिर की है.