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वैश्विक चुनौतियों से कारगर ढंग से निपटने में बहुपक्षवाद की ज़रूरत

दावोस में विश्व आर्थिक मंच की सालाना बैठक में हिस्सा लेते यूएन महासचिव.
World Economic Forum/Benedikt von Loebell
दावोस में विश्व आर्थिक मंच की सालाना बैठक में हिस्सा लेते यूएन महासचिव.

वैश्विक चुनौतियों से कारगर ढंग से निपटने में बहुपक्षवाद की ज़रूरत

यूएन मामले

वैश्विक चुनौतियां लगातार आपस में जुड़ती जा रही हैं लेकिन उनसे समग्रता में और कारगर ढंग से नहीं निपटा जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनिटो गुटेरेश ने विश्व आर्थिक मंच की सालाना बैठक में समकालीन चुनौतियों को रेखांकित करते हुए लोगों की पीड़ाओं पर ध्यान देने और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मज़बूती देने की पैरवी की है.

स्विट्ज़रलैंड के दावोस में दुनिया के वर्तमान हालात पर अपने संबोधन में महासचिव गुटेरेश ने चुनौतियों और ख़तरों की व्यापक रूप से समीक्षा की. साथ ही दक्षिण सूडान, यमन, सीरिया और केंद्रीय अफ़्रीकी गणराज्य में चले आ रहे संघर्षों के निपटारे में मिली सफलता से उपजती आशाओं का उल्लेख भी किया.

यूएन महासचिव ने कहा कि इतनी सारी चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें पहले से अधिक एकजुटता की आवश्यकता है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुछ मुद्दों पर बने गतिरोध का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा दुनिया की तीन महाशक्तियों - चीन, अमेरिका और रूस - में जिस तरह आज ख़राब रिश्ते हैं वैसे पहले कभी नहीं थे. 

ऐसी बहुध्रुवीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और सीरिया संघर्ष में ईरान, तुर्की और सऊदी अरब की दख़लअंदाज़ी को देखते हुए उन्होंने बहुपक्षवाद आधारित संगठनों में और सहभागिता की वकालत की है. उन्होंने कहा कि ऐसी व्यवस्था के अभाव में ही पहला विश्व युद्ध हुआ था. 

"अगर हम विश्व राजनीति और भूराजनैतिक तनाव, विश्व अर्थव्यवस्था और अन्य रूझानों जैसे जलवायु परिवर्तन, विस्थापन और डिजिटलीकरण को देखें तो सच्चाई ये है कि ये सब मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं लेकिन उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई पर्याप्त नहीं है.  अगर इस स्थिति को पलटा नहीं गया तो आपदा जैसे हालात बन जाएंगे."

जलवायु कार्रवाई में पिछड़ती दुनिया 

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर महासचिव गुटेरेश ने कहा कि वास्तविकता अनुमानों से कहीं ज़्यादा चुनौतीपूर्ण साबित हो रही है क्योंकि राजनीतिक इच्छाशक्ति सुस्त हो रही है. अगर सही कार्रवाई नहीं हुई तो जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार और तेज़ हो जाएगी.

जीवाश्म ईंधन के लिए अब भी सब्सिडी दी जा रही है, कार्बन टैक्स सीमित स्तर पर ही है और यह ऐसे समय में हो रहा है जब हमारे पास तकनीक है और व्यापार जगत सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए तैयार है. नागरिक समाज भी मदद के लिए आगे आया है. 

आर्थिक संकट की आशंका

अर्थव्यवस्था पर बात करते हुए गुटेरेश ने कहा, "वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर सम्मानजनक है और पिछले साल 3.1 फ़ीसदी की रफ़्तार से बढ़ी लेकिन अब यह सुस्त हो रही है. इसके बावजूद सभी मानते हैं कि क्षितिज पर ख़तरे के काले बादल मंडरा रहे हैं."

व्यापार विवाद, वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता का डर आमतौर पर एक राजनीतिक समस्या है.  बढ़ते कर्ज़ के चलते देशों की संकट से निपटने की क्षमता सीमित हो रही है और इससे टिकाऊ विकास लक्ष्यों के लिए ज़रूरी निवेश पर भी असर पड़ रहा है.

गुटेरेश ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वैश्वीकरण ने दुनिया को बेहतर बनाया है और तकनीकी प्रगति भी हुई है लेकिन इससे असमानता भी बढ़ी है, ख़ासकर देशों के भीतर. इससे लोगों में हताशा घर कर रही है और सरकारों, राजनीतिक व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में भरोसा कम हो रहा है.  

कूटनीति में यूएन का महत्व

गुटेरेश ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में संयुक्त राष्ट्र की अहम भूमिका और उसके महत्व को प्रदर्शित करना उनकी प्राथमिकता है. पोलैंड के कैटोविच शहर में जलवायु परिवर्तन पर 2015 पेरिस समझौते के प्रभावी अमलीकरण के लिए साझा रूपरेखा तैयार होने का ज़िक्र किया. 

"सबको लग रहा था कि कैटोविच विफल हो जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. हमने पेरिस समझौते को लागू करने की रूपरेखा के लिए मंज़ूरी पा ली. हमें और महत्वाकांक्षी होने की आवश्यकता है. लेकिन फिर भी आगे बढ़ने के लिए अलग अलग रुख़ वाले देशों को एक साथ लाना संभव हो पाया."

यमन में भी यूएन शांति के लिए कूटनीतिक प्रयासों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और स्वीडन में एक समझौते पर रज़ामंदी भी हुई है जिसके बाद यमन में हालात बेहतर होने की उम्मीद बंधी है. ऐसा ही दक्षिण सूडान और इथियोपिया में हुआ है.