वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

पर्यावरण के लिये ज़्यादा कार्रवाई हो, वरना पृथ्वी के 'मानव बलिदान का क्षेत्र' बन जाने का जोखिम

स्वीडन के स्टॉकहोम में Fridays for Future वैश्विक हड़ताल में, युवा जलवायु कार्यकर्ता शिरकत करते हुए.
© UNICEF/Christian Åslund
स्वीडन के स्टॉकहोम में Fridays for Future वैश्विक हड़ताल में, युवा जलवायु कार्यकर्ता शिरकत करते हुए.

पर्यावरण के लिये ज़्यादा कार्रवाई हो, वरना पृथ्वी के 'मानव बलिदान का क्षेत्र' बन जाने का जोखिम

जलवायु और पर्यावरण

मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि वातावरण को एक प्रमुख मुद्दा बनाने के लिये, विश्व का पहला सम्मेलन, पाँच दशक पहले स्वीडन में हुआ था, तब से ये समझ बढ़ी है कि अगर इनसानों ने पृथ्वी की देखभाल करने में कोताही बरती, तो ये ग्रह मानव बलिदान का क्षेत्र बनकर रह जाएगा. पृथ्वी की रक्षा के लिये आगे की कार्रवाई पपर चर्चा करने के लिये, इस सप्ताह स्टॉकहोम में ताज़ा विचार-विमर्श शुरू होने वाला है, उस सन्दर्भ में सोमवार को, विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि ऐसे कहीं ज़्यादा विशाल प्रयासों की आवश्यकता है जिनके ज़रिये हर साल लाखों ज़िन्दगियाँ बचाई जा सकें.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकर विशेषज्ञ डेविड बॉयड ने इन पुकारों की अगुवाई की है कि देशों को सकारात्मक बदलाव लाने के लिये संवैधानिक बदलाव लागू करने होंगे और मज़बूत पर्यावरणीय क़ानून बनाने होंगे. 

उन्होंने ये भी कहा है कि इस तरह के सभी विचार-विमर्श, इस समझ से निकलने चाहिये कि हर किसी को स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार है. 

अधिकारों की प्रेरणा

विषैले पदार्थों और मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टियर मार्कोस ऑरेलाना ने भी उन पुकारों को समर्थन देते हुए कहा है कि हमें ये नहीं भूलना चाहिये कि मानवाधिकारों ने किस तरह, 1972 के मूल स्टॉकहोम घोषणा-पत्र के प्रमुख तत्वों के लिये प्रेरणा दी थी.

उन्होंने कहा, “अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरणीय क़ानून को अपना रास्ता बदलने और पर्यावरण संरक्षण के लिये, एक मानवाधिकार आधारित रास्ता अपनाने के लिये, ये एक महत्वपूर्ण लम्हा है.”

अनेकानेक लाभ

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ज़ोर दिया है कि मानवाधिकारों को पर्यावरणीय कार्रवाई के केन्द्र में रखने से, वायु गुणवत्ता, स्वच्छ जल, स्वास्थ मिट्टी और टिकाऊ तरीक़े से उत्पादित खाद्य पदार्थों के लिये सकारात्मक प्रभाव होंगे.

उनका कहना है कि मानवाधिकार आधारित रवैया अपनाने से, हरित ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और विषैले पदार्थों के उन्मूलन और आदिवासी लोगों के अधिकारों के संरक्षण में भी मदद मिलेगी.

इन विशेषज्ञों ने कहा है कि पर्यावरणीय कार्रवाई में प्रगति के रास्ते में व्यवधान खड़े करने से अनेक चुनौतियाँ सामने हैं जिनमें जलवायु झटके, जैव विविधता का नुक़सान और प्रदूषण – इन सबका असर मानवाधिकारों का आनन्द उठाने पर लड़ता है.

स्मरणीय दिवस

जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद ने, अक्टूबर 2021 में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव में, स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण के अधिकार को पहली बार मान्यता दी थी.

ये प्रस्ताव, सिविल सोसायटी संगठनों, युवा समूहों, देशों के मानवाधिकार संस्थानों और आदिवासी जन के दशकों के प्रयासों का फल था.

अनेक मानवाधिकार विशेषज्ञों ने देशों को प्रोत्साहित किया है कि वो यूएन महासभा को, स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण के अधिकार को उसी तरह मान्यता देने के लिये प्रोत्साहित करें जिस तरह यूएन मानवाधिकार परिषद ने मान्यता दी है.

यूएन महासभागार

इन विशेष मानवाधिकार विशेषज्ञों ने एक वक्तव्य में कहा है, “स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार पर यूएन महासभा का प्रस्ताव पारित होने से अधिकारों पर कार्रवाइयों की तात्कालिकता मज़बूत होगी.”

“हम सभी इस अदभुत ग्रह पर बसने के लिये, असाधारण रूप से सौभाग्यशाली हैं, और हमें एक स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार का प्रयोग, ये सुनिश्चित करने के लिये करना चाहिये कि सरकारें, व्यवसाय और लोग, मानवता के इस साझा घर का ख़याल रखने में बेहतर काम करें.”

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किये जाते हैं और वो किसी विशिष्ट मानवाधिकार थीम या देश की स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करते हैं. वो किसी देश या सरकार से स्वतंत्र होते हैं; और उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.