नस्लभेद रूपी विष को ख़त्म करने के लिये, सामूहिक संकल्प की दरकार
ऐसे समय में जबकि कोविड-19 महामारी ने, नस्लभेद और भेदभाव को अपना सिर उठाने के लिए उर्वरक भूमि मुहैया कराई है, संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक व सांस्कृतिक संगठन – यूनेस्को की प्रमुख ऑड्री अज़ूले ने सोमवार को तमाम देशों से “इस कठिन दौर में” एकजुटता दिखाने का आहवान किया है.
पेरिस स्थिति यूएन एजेंसी की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने, वैश्विक फ़ोरम को सम्बोधित करते हुए कहा कि नस्लभेद लोकलुभावन और नस्लभेद का सहारा लेने वाले समूहों का ‘कॉलिंग कार्ड’ है जबकि सोशल मीडिया पर, नफ़रत भरी भाषा लगातार अपना दायरा बढ़ा रही है.
To #FightRacism, we must be proactively anti-racist. Take action by joining today, 22 March, @UNESCO’s Global Forum against Racism.Let us build together a future free of hatred, racism & discrimination.Let's #FulfillTheDream!✊🏿✊✊🏾✊🏻✊🏽✊🏼➡️ https://t.co/phDf4jgmer pic.twitter.com/fUKIMLXULT
UNESCO
ऑड्री अज़ूले ने फ्रेंच भाषा में दिये अपने सम्बोधन में कहा, “यह विष कपटी है, इसका असर बहुत दूरगामी है; जैसाकि हमने पिछले महीनों के दौरान देखा है, ये अपना फन उठाने के लिये हमेशा तत्पर रहता है. इसी ज़हर के कारण, हम सभी का सामूहिक संकल्प ज़रूरी है.”
हनन की जड़ भेदभाव में है
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने ऑनलाइन फ़ोरम को अपने सम्बोधन में कहा कि महामारी ने ऐसी विषमताएँ उजागर कर दी हैं जिनकी जड़ें भेदभाव में, बहुत गहराई से समाई हुई हैं.
उन्होंने कहा कि दशकों तक असमान स्वास्थ्य सेवाओं और अपर्याप्त जीवन परिस्थितियों का परिणाम भी, अलग-अलग स्तर के प्रभाव के रूप में हुआ है.
इससे अफ्रीकी मूल के, नस्लीय अल्पसंख्यक, और हाशिये पर रहने को मजबूर अन्य समूह सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं और उनमें मौतें भी ज़्यादा देखने को मिली हैं.
मिशेल बाशेलेट ने कहा कि अगर सभी अधिकारों के हनन का नहीं भी है, तो 'बहुत से अधिकारों के उल्लंघन' की जड़, निसन्देह भेदभाव ही है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा, “इस तरह मेरे लिये ये स्पष्ट है कि – इस संकट से बेहतर तरीक़े से उबरने के लिये, नस्लीय भेदभाव, और इसमें बैठी सामाजिक व आर्थिक विषमता की चुनौती से निपटना बहुत अहम है."
"साथ ही, ऐसे समाजों का निर्माण किया जाए जो वास्तव में और टिकाऊ रूप में ज़्यादा समान, सहनशील और न्यायोचित हों.”
ख़ुद बदलाव बनें
ऑस्कर पुरस्कार विजेता अभिनेता और शान्ति व मेल-मिलाप के लिये यूनेस्को के विशेष दूत फ़ोरेस्ट व्हिटेकर ने, एक अफ्रीकी मूल के काले अमेरिकी व्यक्ति के रूप में अपने अनुभव बयान किये हैं.
उन्होंने ऐसे दौर में परवरिश पाई जब मनमाने तरीक़े से किसी को भी गिरफ़्तार किया जा सकता था, काले मूल के बच्चों के लिये स्कूल भी अलग होते थे, और अनेक अन्य तरह के अपमानजनक, अन्यायपूर्ण बर्ताव व चलन मौजूद थे.
उस सबके बावजूद, केवल आठ वर्ष पहले ही, उन्हें एक बाज़ार में, बिना किसी वजह के रोक लिया गया, और उनकी तलाशी ली गई.
उन्होंने कहा कि “देशों में, नस्लभेद और भेदभाव को रोकने के लिये क़ानून तो मौजूद हैं, मगर संस्थानों में, बदलाव होने में बहुत समय लगता है."
यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूली ने कहा कि ये संगठन इन बदलावों को एक वास्तविकता का रूप देने के लिये अथक काम कर रहा है.
उन्होंने रेखांकित करते हुए कहा कि नस्लभेद का मुक़ाबला करना, यूनेस्को के डीएनए और इतिहास का हिस्सा है.
यूएन एजेंसी मुख्य रूप से शिक्षा, और मीडिया व सूचना साक्षरता, लोगों को ऐसे आलोचनात्मक कौशल में निपुण बनाने के क्षेत्र में काम करती रही है, जिनके ज़रिये नफ़रत की भाषा का मुक़ाबला किया जा सके.
ऑड्री अज़ूले ने कहा कि यूनेस्को, आर्टिफ़िशिलय इंटैलीजेंस में इस्तेमाल होने वाले अल्गोरिदम में बैठे पूर्वाग्रहों जैसे ज़हरीले रूपों के बारे में जागरूकता फैलाने और नीतियाँ बनाने में मदद कर रही है.
इस बार, उन्होंने अंग्रेज़ी में बात करते हुए कहा, “हम जानते हैं कि हमें कौन सा रास्ता अपनाना है. अब हमें, नस्लभेद के वजूद को तितर-बितर करने के लिये, एकजुट कार्रवाई करनी होगी, नस्लभेद का मुक़ाबला करने वाली नीतियाँ बनानी होंगी, रूढ़िवादी विचारों का सामना करना होगा और विविधता को बढ़ावा देना होगा.”