सुरक्षा परिषद के पाँच नए अस्थाई सदस्य
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने शुक्रवार को सुरक्षा परिषद के पाँच नए अस्थाई सदस्यों का चुनाव कर लिया है. इन देशों के नाम हैं – सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनैडाइन्स, एस्तोनिया, निजेर, ट्यूनिशिया और वियतनाम. इनमें सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनैडाइन्स अभी तक का सबसे छोटा राष्ट्र है जिसे सुरक्षा परिषद की अस्थाई सदस्यता मिली है.
ये पाँच नव निर्वाचित देश जनवरी 2020 में दो साल के लिए सुरक्षा परिषद की सदस्यता ग्रहण करेंगे.
जिन पाँच देशों का जनवरी 2020 में दो साल का कार्यकाल समाप्त होगा उनके नाम हैं – कॉटे डलवायर, इक्वेटोरियल गिनी, कुवैत, पेरू और पोलैंड.
ध्यान दिला दें कि हर साल पाँच नए अस्थाई सदस्य सुरक्षा परिषद के लिए चुने जाते हैं. सुरक्षा परिषद के कुल सदस्यों की संख्या 15 जिनमें पाँच स्थाई सदस्य हैं.
अस्थाई सदस्यों के चुनाव में भौगोलिक प्रतिनिधित्व को नज़र में रखा जाता है. ये परंपरा 1963 में शुरू हुई थी.
इसके तहत पाँच देश अफ्रीका, एशिया और प्रशांत देशों से, एक पूर्वी योरोप से, दो लातीनी अमरीका से, दो पश्चिमी योरोप से और एक सदस्य किस अन्य देश से चुनाव जाता है.
शुक्रवार के चुनाव में निजेर, ट्यूनीशिया और वियतनाम का चुनाव निर्विरोध हुआ. पाँच में से दो सीटों पर मुक़ाबला हुआ.
लातीनी अमरीकी और कैरीबियाई क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए अल सल्वाडोर का मुक़ाबला सेंट विंसेंट और ग्रेनैडाइन्स से था.
पूर्वी योरोप क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के मुक़ाबले में रोमानिया एस्तोनिया से हार गया.
इस चुनाव के बाद प्रेस से बात करते हुए सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनैडाइन्स के प्रधानमंत्री राल्फ़ गोन्ज़ाल्वेज़ ने कहा कि उनके अनेक द्वीपों वाले देश के लिए ये एक ऐताहासिक अवसर है.
उस देश की आबादी सिर्फ़ क़रीब एक लाख 10 हज़ार है.
उन्होंने कहा कि उनका देश टिकाऊ विकास के सिद्धांतों के लिए प्रतिबद्ध है क्योंकि एक छोटा सा द्वीप देश होने के नाते उसके आसपास समुद्रों का जल स्तर बढ़ रहा है.
इस जलवायु परिवर्तन ने उनके देश के अस्तित्व के लिए चिंता पैदा कर दी है. इसलिए उनका देश इस चुनौती का सामना करने के लिए सुरक्षा परिषद के साथ मिलकर काम करने का इच्छुक है.
उन्होंने ये भी कहा कि अलबत्ता संयुक्त राष्ट्र की कुछ सीमाएँ हैं मगर इस विश्व संगठन के पास बहुत सकारात्मक ताक़तें भी हैं.
2014 में महासभा के एक प्रस्ताव के ज़रिए सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्यों के लिए चुनाव अक्तूबर से हटाकर जून महीने के लिए निर्धारित कर दिया गया था.
इससे नवनिर्वाचित सदस्यों के लिए अपना कार्यकाल शुरू करने से पहल तैयारियाँ करने के लिए समुचित समय मिल सके.