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भारत: स्कूली बच्चों को जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का सबक़

क्षमता निर्माण कार्यक्रम में, भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के 137 गाँवों के 162 स्कूलों से 27,000 छात्रों को शामिल किया गया.
UNOPS India
क्षमता निर्माण कार्यक्रम में, भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के 137 गाँवों के 162 स्कूलों से 27,000 छात्रों को शामिल किया गया.

भारत: स्कूली बच्चों को जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का सबक़

जलवायु और पर्यावरण

इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम सबसे अधिक भावी पीढ़ी को भुगतने पड़ेंगे. दुनिया भर के युवजन जलवायु कार्रवाई में सक्रिय हैं, और वे बदलाव लाने की मुहिम में जुटे हैं. उन्होंने दर्शाया है कि सूचना ही शक्ति है, और वे पर्यावरण सम्बन्धी नीतियों व कार्यों के लिए नेताओं की जवाबदेही तय कर रहे हैं. भारत में, यूएन परियोजना सेवा संगठन (UNOPS) युवजन को ज्ञान व जागरूकता से सशक्त करके, जलवायु परिवर्तन की रोकथाम व अनुकूलन के लिए उन्हें तैयार कर रहा है.

वैश्विक युवजन आंदोलन के एक हिस्से के रूप में, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में संयुक्त राष्ट्र का परियोजना सेवा कार्यालय (UNOPS) और ऊर्जा एवं संसाधन संस्था, TERI ने एक साथ मिलकर, राज्य के 11 ज़िलों में स्कूली बच्चों के लिए जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर क्षमता निर्माण अभियान" संचालित किया है, जो हाल ही में एक राष्ट्रीय कार्यक्रम के साथ सम्पन्न हुआ. 

इस अवसर पर UNOPS के देश प्रबंधक, विनोद मिश्रा ने कहा, “हम युवा मस्तिष्कों को सतत जीवन का पैरोकार बनाने के लिए सशक्त बना रहे हैं.”

सम्मेलन में उत्तर प्रदेश के बच्चों समेत, सभी हितधारकों ने अपनी सीख साझा की. साथ ही इस बात पर चर्चा की गई कि इस तरह की साझेदारियाँ, जलवायु कार्रवाई मज़बूत बनाने में किस तरह सहायक हो सकती हैं. 

इसमें संयुक्त राष्ट्र परिवार के साझेदारों, प्रमुख ग़ैर-सरकारी संगठनों और भारत सरकार के नीति निर्माताओं ने भाग लिया.

परियोजना का उद्देश्य

इस परियोजना के अन्तर्गत, भारत के उत्तर प्रदेश के 11 ज़िलों के स्कूलों की 17 हज़ार लड़कियों सहित 27 हज़ार से अधिक बच्चे, जलवायु परिवर्तन, जल संरक्षण, स्वास्थ्य व स्वच्छता एवं मासिक धर्म स्वास्थ्य पर केन्द्रित गतिविधियों में शामिल हुए. 

इस पहल में निम्न ज़िलों को शामिल किया गया: ललितपुर, जालौन, मिर्ज़ापुर, झाँसी, प्रयागराज, चित्रकूट, हमीरपुर, महो​बा, कौशाम्बी, बांदा और सोनभद्र.

यह परियोजना, तीन सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) पर आधारित है. एसडीजी 3 (सभी आयुवर्ग के लोगों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना), एसडीजी 6 (सर्वजन के लिए जल एवं स्वच्छता की उपलब्धता और टिकाऊ प्रबंधन सुनिश्चित करना) तथा एसडीजी 13 (जलवायु परिवर्तन की रोकथाम व अनुकूलन). 

यह विशेष रूप से किशोर लड़कियों पर केन्द्रित थी, जिसमें उन्हें जल स्रोतों के प्रभावी प्रबंधन व संरक्षण के लिए सशक्त बनाने के प्रयास किए गए.

राष्ट्रीय सम्मेलन में, जल और स्वच्छता से जुड़े सतत विकास लक्ष्यों की सफलताओं और भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डाला गया.
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परियोजना का कार्यान्वयन

छह महीने तक चली इस परियोजना में छात्रों को पानी की गुणवत्ता, संरक्षण, उपलब्धता व उचित उपयोग के बारे में सिखाया गया. वहीं लड़कियों में माहवारी से सम्बन्धित जागरूकता का प्रसार करके, महावारी के दौरान स्कूलों में अनुपस्थिति की समस्या से निपटने के प्रयास शुरु किए गए. 

बच्चों में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे की समझ बनाने व उससे निपटने के लिए रोज़मर्रा व दीर्घकालिक उपायों पर कार्यशालाएँ आयोजित की गईं.  

इस परियोजना ने छात्रों को जलवायु परिवर्तन के पीछे का विज्ञान समझने में मदद की और दिखाया कि कार्बन पदचिह्न को कम करने से लेकर पर्यावरण-अनुकूल पहलों का समर्थन करने तक, किस तरह अपने दैनिक जीवन में बेहतर विकल्प चुने जा सकते हैं. 

कार्यक्रम में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि जलवायु परिवर्तन केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा ही नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय का मुद्दा भी है - जो ख़ासतौर पर हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है.

छात्रों को बदलाव का कारक बनाने के लिए, उन्हें WASH (जल, स्वच्छता एवं साफ़-सफ़ाई), मासिक धर्म सम्बन्धित स्वास्थ्य, तथा जलवायु परिवर्तन के बारे में अपने समुदाय में जागरूकता फैलाने के पैरोकरों के रूप में नियुक्त किया गया.

जल ही जीवन

इस अवसर पर भारत सरकार के जल जीवन मिशन के संस्थापक निदेशक, व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के महासचिव, भरत लाल ने सरकारी पहल को बढ़ाने में संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की अहम भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने देश भर में स्वच्छ नल का पानी उपलब्ध कराने के जल जीवन मिशन के प्रयास में UNOPS की भागेदारी की सराहना की.

भारत में संयुक्त राष्ट्र के रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर, शॉम्बी शार्प ने कहा कि जलवायु अधिकार, बाल अधिकारों के साथ परस्पर जुड़े हैं. उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में जन्म लेने वाले बच्चों को तीन गुना अधिक सूखे व बाढ़ और सात गुना अधिक गर्मी का सामना करना पड़ेगा. 

उन्होंने सामुदायिक भागेदारी को बढ़ावा देने और जलवायु संकट के समाधान तैयार करने के लिए भारत की जन आंदोलन अवधारणा की सराहना की.

डेनमार्क के राजदूत, फ्रैडी स्वेन ने प्लास्टिक के युग से आगे बढ़ने और भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने के महत्व पर ज़ोर दिया. उन्होंने कहा कि क्षमता निर्माण की यह पहल छोटे बच्चों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है.

वहीं सूडान के राजदूत, डॉक्टर मुआविया अल्बुख़ारी ने कहा कि इस स्तर पर छात्रों को जल संरक्षण के बारे में शिक्षित करके, हम उन्हें अपने समुदायों के सच्चे नेता बनने के लिए तैयार कर रहे हैं.

6 महीने तक चली इस परियोजना में छात्रों को पानी की गुणवत्ता, संरक्षण, उपलब्धता व उचित उपयोग के बारे में सिखाया गया.
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