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रफ़ाह: 'बयाँ ना किए जा सकने वाले हालात', 10 लाख फ़लस्तीनी जबरन विस्थापित

इसराइली हवाई हमलो के बीच, हज़ारों ग़ाज़ावासी रफ़ाह शहर छोड़कर भाग रहे हैं.
© WFP/Ali Jadallah
इसराइली हवाई हमलो के बीच, हज़ारों ग़ाज़ावासी रफ़ाह शहर छोड़कर भाग रहे हैं.

रफ़ाह: 'बयाँ ना किए जा सकने वाले हालात', 10 लाख फ़लस्तीनी जबरन विस्थापित

शान्ति और सुरक्षा

फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) के अनुसार, भीषण लड़ाई के बीच दक्षिणी ग़ाज़ा में स्थित रफ़ाह शहर से अब तक 10 लाख लोग पलायन कर चुके हैं. बीती रात ग़ाज़ा के दक्षिणी, मध्य और उत्तरी इलाकों से इसराइली सैन्य बलों द्वारा हमले किए जाने की ख़बरें हैं.   

दक्षिणी ग़ाज़ा और मिस्र की सीमा पर स्थित रफ़ाह में कुछ हफ़्ते पहले तक 10 लाख से अधिक उन फ़लस्तीनियों ने शरण ली हुई थी, जो इसराइली सैन्य बलों की बमबारी के कारण अन्य इलाक़ों से जबरन विस्थापन का शिकार हुए हैं. 

7 अक्टूबर को इसराइल पर हमास व अन्य हथियारबन्द गुटों के आतंकी हमलों के बाद, इसराइली सेना की जवाबी सैन्य कार्रवाई शुरू हुए क़रीब आठ महीने हो चुके हैं.

इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने तीन दिन पहले युद्धविराम के एक प्रस्ताव को पेश किया था, जिसमें चरणबद्ध ढंग से लड़ाई का अन्त करने, इसराइली सैनिकों को वापिस बुलाने, और इसराइली बंधकों व फ़लस्तीनी क़ैदियों को रिहा करने के साथ-साथ, ग़ाज़ा में पुनर्निर्माण की बात कही गई है.

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UNRWA एजेंसी ने सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म, X, पर अपने सन्देश में लिखा है कि हज़ारों परिवारों ने ख़ान यूनिस में ध्वस्त और क्षतिग्रस्त केन्द्रों में शरण ली हुई है, जहाँ चुनौतियों के बावजूद यूएन एजेंसी द्वारा अब भी अति-आवश्यक सेवाएँ प्रदान की जा रही हैं.  

संगठन ने क्षोभ व्यक्त किया है कि फ़िलहाल वहाँ की स्थिति को शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता है. ख़ान यूनिस में क़रीब 17 लाख फ़लस्तीनियों द्वारा शरण लेने का अनुमान है, जबकि रफ़ाह में यूएन एजेंसी के 36 आश्रय स्थल पूर्ण रूप से ख़ाली हो चुके हैं.

बताया गया है कि क़रीब 6 लाख 90 हज़ार महिलाओं व लड़कियों के पास माहवारी स्वच्छता सम्बन्धी बुनियादी सामान, निजता और पेयजल उपलब्ध नहीं है.

बच्चों के लिए कोई जगह नहीं

UNRWA ने यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के लिए यूएन एजेंसी (UNFPA) का उल्लेख करते हुए बताया कि ग़ाज़ा में फ़लस्तीनियों को बेहद कठिन हालात से जूझना पड़ रहा है. 

साढ़े 18 हज़ार गर्भवती महिलाएँ रफ़ाह छोड़कर जाने के लिए मजबूर हुई हैं, जबकि 10 हज़ार अब भी वहाँ हताशा भरे हालात में रह रही हैं.

“स्वास्थ्य देखभाल की सुलभता और मातृत्व सामग्री की आपूर्ति बहुत कम है. बच्चों और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर जोखिम है.” 

विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने भी इन्हीं चिन्ताओं को दोहराते हुए कहा कि जो लोग अब भी रफ़ाह में मौजूद हैं, उनकी सहायता कर पाना बहुत मुश्किल हो गया है. सड़के असुरक्षित हैं, रास्ता सीमित है और WFP के अधिकाँश मानवीय सहायता साझेदार संगठन भी विस्थापित हुई हैं. 

रफ़ाह से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इसराइली सैन्य कार्रवाई के तेज़ होने के बाद से बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन हुआ है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य सम्बन्धी चिन्ताएँ, संकट स्तर को भी पार कर गई हैं. बमबारी की आवाज़, गंध, दैनिक जीवन भयावह और प्रलयकारी नज़र आ रही है.

फ़लस्तीन में WFP के देशीय निदेशक मैथ्यू हॉलिन्गवर्थ ने बताया कि फ़लस्तीनी लोगों ने उन इलाक़ों का रुख़ किया है, जहाँ स्वच्छ जल, मेडिकल आपूर्ति व समर्थन अपर्याप्त है, खाद्य सामग्री सीमित है और दूरसंचार सेवाएँ ठप हो चुकी हैं.

फ़लस्तीन को मान्यता का आग्रह

इस बीच, संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ग़ाज़ा में तत्काल युद्धविराम की मांग का समर्थन करते हुए सभी देशों से फ़लस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने का आग्रह किया है. संयुक्त राष्ट्र के 146 सदस्य देश पहले ही यह क़दम उठा चुके हैं.

विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने सोमवार को जारी अपने एक वक्तव्य में कहा कि यह मान्यता, फ़लस्तीनी लोगों के अधिकारों, उनके संघर्षों व पीड़ा की स्वीकृति है, और उन्हें आज़ादी व स्वतंत्रता की ओर ले जाती है.

यूएन विशेषज्ञों के अनुसार फ़लस्तीनी मुक्ति संगठन द्वारा औपचारिक रूप से फ़लस्तीन राष्ट्र की घोषणा 15 नवम्बर 1988 को की गई थी. इसमें ऐतिहासिक फ़लस्तीन के उन शेष हिस्सों पर सम्प्रभुता का दावा किया गया, जिन पर इसराइल ने 1967 में क़ब्ज़ा कर लिया था: पूर्वी येरूशेलम समेत पश्चिमी तट और ग़ाज़ा पट्टी.

28 मई 2024 तक, फ़लस्तीन राष्ट्र को संयुक्त राष्ट्र के अधिकाँश सदस्यों द्वारा मान्यता दी जा चुकी है. हाल के दिनों में आयरलैंड, नॉर्वे व स्पेन द्वारा यह क़दम उठाया गया है.

स्वतंत्र विशेषज्ञों ने ज़ोर देकर कहा है कि फ़लस्तीनियों को पूर्ण रूप से स्व-निर्धारण के अधिकार का इस्तेमाल करने में समर्थ होना चाहिए, और ये अधिकार फ़लस्तीन व पूरे मध्य पूर्व क्षेत्र में स्थाई शान्ति की पूर्व शर्त हैं.

उनके अनुसार, इसकी शुरुआत ग़ाज़ा में तुरन्त युद्धविराम लागू करके की जानी होगी और रफ़ाह में अब और सैन्य हमले को रोकना होगा. 

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं. उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है. ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.