वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

रवांडा: तुत्सी समुदाय के विरुद्ध अंजाम दिया गया जनसंहार, 'सामूहिक चेतना पर धब्बा'

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश (मध्य) और अन्य प्रतिभागी यूएन महासभा में आयोजित स्मरण कार्यक्रम में मोमबत्तियाँ जला रहे हैं.
UN Photo/Eskinder Debebe
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश (मध्य) और अन्य प्रतिभागी यूएन महासभा में आयोजित स्मरण कार्यक्रम में मोमबत्तियाँ जला रहे हैं.

रवांडा: तुत्सी समुदाय के विरुद्ध अंजाम दिया गया जनसंहार, 'सामूहिक चेतना पर धब्बा'

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1994 में रवांडा में तुत्सी समुदाय के विरुद्ध हुए जनसंहार को कभी ना भुलाने का संकल्प व्यक्त किया है. इस भयावह घटना के 30 वर्ष पूरे होने के अवसर पर शुक्रवार को यूएन महासभा में आयोजित एक कार्यक्रम में शीर्ष अधिकारियों ने शिरकत की.

इस कार्यक्रम में भुक्तभोगियों व पीड़ितों का मोमबत्ती जलाकर स्मरण किया गया और जीवित बच गए व्यक्तियों व उसे रोकने का प्रयास करने वाले लोगों को सम्मानित किया गया.

इस वर्ष वे युवजन ध्यान के केन्द्र में हैं, जो इस जनसंहार की छाया में बड़े हुए हैं. साथ ही, नफ़रत भरी बोली व सन्देशों (हेट स्पीच) की रोकथाम को अहम माना गया है, जिनके कारण जनसंहार को अंजाम दिया गया था, और जो अब विश्व भर में एक बड़ी चिन्ता के रूप में उभर रही है.

Tweet URL

दशकों से जारी अन्तर-सामुदायिक तनाव और झड़पें अप्रैल 1994 में, दुनिया के सामने तब एक जनसंहार में तब्दील हो गए, जब हूतू नेताओं ने तुत्सी समुदाय के विरुद्ध एक घातक मुहिम छेड़ी.

रवांडा के लिए संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन की मौजूदगी और वर्ष 1948 में महासभा द्वारा सर्वमत से जनसंहार सन्धि पारित किए जाने के बावजूद यह रक्तपात हुआ.

इस सन्धि में जनसंहार को अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अन्तर्गत एक अपराध माना गया है.

आतंक के 100 दिन

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने अपने सम्बोधन में तीन दशक पहले, रवांडा में तुत्सियों के विरुद्ध हुए जनसंहार को, हमारी सामूहिक चेतना पर धब्बा बताया.

उन्होंने कहा कि यह औपनिवेशवाद की विरासत और हेट स्पीच के दुष्परिणामों की क्रूरतापूर्वक ध्यान दिलाता है.

इस जनसंहार में 10 लाख से अधिक लोगों की जान गई थी, जिनमें अधिकाँश तुत्सी समुदाय के लोग थे. मगर, इसे रोकने की कोशिश करने वाले हूतू समुदाय के लोगों और अन्य को भी जान से मार दिया गया था.

यह जनसंहार 7 अप्रैल 1994 को शुरू हुआ और 100 दिनों तक चला. यूएन प्रमुख ने इसे एक ऐसा दौर बताया जब पड़ोसी अपने पड़ोसियों के विरुद्ध हो गए, लोग अपने मित्रों की हत्या करने वाले शत्रु बन गए और पूरे परिवारों का सफ़ाया कर दिया गया.

उन्होंने कहा कि इस संहार का मक़सद, केवल जातीय पहचान की वजह से एक पूरे समूह के सदस्यों का विनाश करना था.

‘फिर कभी नहीं’

संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रमुख डेनिस फ़्रांसिस ने ज़ोर देकर कहा कि रवांडा में 30 वर्ष पहले ऐसी भयावह घटनाओं व वैसी नफ़रत को फिर से मानव चेतना में अपना ज़हर घोलने से रोकना होगा.

उन्होंने कहा कि हेट स्पीच में निहित ख़तरों के बारे में हर किसी को समझना होगा, विशेष रूप से सोशल मीडिया के दौर में जब बिना सावधानीपूर्वक कहे गए शब्द, जंगल में आग की तरह फैल सकते हैं.

यूएन महासभा अध्यक्ष के अनुसार, तुत्सी समुदाय के विरुद्ध जनसंहार से पहले चेतावनी के ऐसे कई संकेत थे, जिन पर ध्यान नहीं दिया गया, जबकि यह वैश्विक समुदाय के समक्ष घटित हो रहा था.

उन्होंने क्षोभ व्यक्त किया कि विश्व समुदाय ने इस जनसंहार की रोकथाम करने या उसे रोकने में तेज़ी से क़दम नहीं उठाए और रवांडा के लोगों का साथ नहीं दिया.

डेनिस फ़्रांसिस ने कहा कि यह सदैव ध्यान रखना होगा कि शान्ति के लिए सक्रिय प्रयासों की ज़रूरत होती है और सबसे अहम उपाय, रोकथाम है.

रवांडा में जातीय जनसंहार के दौरान कुछ लोगों ने शवों के नीचे छिपकर अपनी जान बचाई.
UNICEF/UNI55086/Press
रवांडा में जातीय जनसंहार के दौरान कुछ लोगों ने शवों के नीचे छिपकर अपनी जान बचाई.