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भोजन बर्बादी है एक वैश्विक त्रासदी, 78 करोड़ लोगों को नहीं मिलता भरपेट भोजन

युगांडा में भोजन की बर्बादी का एक दृश्य. दुनिया भर में हर साल इतना भोजन बर्बाद होता है जिससे करोड़ों लोगों को भेरपेट भोजन मिल सकता है.
© FAO/Sumy Sadurni
युगांडा में भोजन की बर्बादी का एक दृश्य. दुनिया भर में हर साल इतना भोजन बर्बाद होता है जिससे करोड़ों लोगों को भेरपेट भोजन मिल सकता है.

भोजन बर्बादी है एक वैश्विक त्रासदी, 78 करोड़ लोगों को नहीं मिलता भरपेट भोजन

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि एक तरफ़, एक-तिहाई मानव आबादी, खाद्य असुरक्षा से जूझ रही है, वहीं हर दिन, एक अरब आहार ख़ुराकों के समतुल्य खाद्य सामग्री बर्बाद हो जाती है.

यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इंगेर ऐंडरसन ने कहा कि खाद्य बर्बादी एक वैश्विक त्रासदी है. दुनिया भर में भोजन ऐसे समय में बर्बाद हो रहा है जब लाखों-करोड़ों लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा है. 

उन्होंने बताया कि इस वजह से ना केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता हानि और प्रदूषण की चुनौतियाँ भी गहरी हो जाती हैं.

यूएन एजेंसी की ‘Food Waste Index Report 2024’ रिपोर्ट बताती है कि 2022 में लगभग एक अरब टन भोजन बर्बाद हो गया. क़रीब 20 फ़ीसदी भोजन कूड़े में फेंक दिया जाता है. 

उपभोक्ताओं के लिए कुल उपलब्ध भोजन में से लगभग 19 फ़ीसदी खाद्य सामग्री की हानि, फुटकर दुकानों, खाद्य सेवाओं और घर-परिवारों में हुई है.

यह भोजन बर्बादी, सप्लाई चेन यानि खेत में उपज से लेकर दुकान में बिक्री तक - में होने वाली भोजन हानि से अलग है, जोकि यूएन खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार क़रीब 13 प्रतिशत है.

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रिपोर्ट दर्शाती है कि खाद्य सामग्री की अधिकाँश बर्बादी घर-परिवारों में होती है, जिसे क़रीब 63.1 करोड़ टन आँका गया है. यह कुल भोजन बर्बादी का 60 प्रतिशत हिस्सा है.

भोजन बर्बादी की मात्रा, खाद्य सेवा क्षेत्र में 29 करोड़ टन और फुटकर सैक्टर में 13.1 करोड़ टन है.

औसतन, हर व्यक्ति एक वर्ष में 79 किलोग्राम भोजन की बर्बादी के लिए ज़िम्मेदार है. यह विश्व में भूख से प्रभावित हर व्यक्ति के लिए हर दिन 1.3 आहार ख़ुराकों के समतुल्य है.

केवल धनी देशों की समस्या नहीं

भोजन बर्बादी की चुनौती महज़ सम्पन्न देशों तक सीमित नहीं है, और इस विषय में धनी व निर्धन देशों के बीच की दूरी कम हो रही है. 

उच्च-आय, ऊपरी-मध्य आय, और निम्नतर-मध्य आय वाले देशों में घर-परिवारों में होने वाली औसत खाद्य बर्बादी में, प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष सात किलोग्राम का अन्तर है.

मगर, शहरी और ग्रामीण आबादियों में यह तस्वीर अलग है. मध्य-आय वाले देशों में ग्रामीण इलाक़ों में भोजन की बर्बादी कम होती है. इसकी एक वजह, बची-खुची हुई खाद्य सामग्री को फिर से इस्तेमाल में लाया जाना हो सकती है, जैसेकि पालतु पशुओं के खाने और खाद या चारे के लिए.

रिपोर्ट में सिफ़ारिश की गई है कि खाद्य बर्बादी में कमी लाने के प्रयासों को मज़बूत करना होगा और शहरों में भी सड़े हुए भोजन को खाद के रूप में इस्तेमाल करना होगा.

खाद्य बर्बादी व जलवायु परिवर्तन

रिपोर्ट बताती है कि खाद्य बर्बादी के स्तर और औसत तापमान में सीधा सम्बन्ध है. गर्म जलवायु वाले देशों में घर-परिवारों में प्रति व्यक्ति ज़्यादा मात्रा में भोजन बर्बाद होती है, चूँकि वहाँ ताज़ा भोजन खाने की प्रवृत्ति है और खाद्य संरक्षण के लिए शीतलन उपकरण (रेफ़्रिजरेटर) का अभाव हो सकता है.

ऊँचे तापमान, ताप लहरों या सूखे के कारण भोजन का सुरक्षित ढंग से भंडारण, परिवहन, प्रसंस्करण चुनौतीपूर्ण हो जाता है, जिससे बड़ी मात्रा में भोजन की बर्बादी या हानि होती है.

भोजन हानि और बर्बादी, 10 प्रतिशत वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है, जोकि विमानन सैक्टर में कुल उत्सर्जन का पाँच गुना है. इसके मद्देनज़र, यूएन विशेषज्ञों ने भोजन बर्बादी से होने वाले उत्सर्जन में कटौती लाने पर बल दिया है.