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साइबर अपराध निरोधक सन्धि: सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच सन्तुलन ज़रूरी

साइबर अपराध ख़रबों का अवैध उद्योग बन चुका है.
Unsplash/Jefferson Santos
साइबर अपराध ख़रबों का अवैध उद्योग बन चुका है.

साइबर अपराध निरोधक सन्धि: सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच सन्तुलन ज़रूरी

मानवाधिकार

साइबर अपराध कई ख़रब डॉलर का कारोबार है. नशीले पदार्थ व हथियार "डार्क वेब" पर ख़रीदे जा रहे हैंअसामाजिक तत्व, व्यापक ऑनलाइन घोटालों के ज़रिए जनता को लूट रहे हैंआतंकवाद समर्थक तैयार कर रहे हैं और लड़ाकों की भर्ती कर रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र साइबर अपराध के बढ़ते ख़तरों को से निपटने के लिए, क़ानूनी रूप से बाध्यकारी अन्तरराष्ट्रीय सन्धि का मसौदा तैयार करने के प्रयासों में लगा है. पाँच साल बाद भी बातचीत अभी जारी है, सभी पक्ष, सहमति बनाने में नाकाम रहे हैं. 

फ़रवरी 2024 में समिति के सदस्यों की नवीनतम बैठक में, अन्तिम मसौदे पर सहमति नहीं बन सकी. मानवाधिकार सुरक्षा उपायों के तहत सुरक्षा चिन्ताओं से निपटने के मसौदे पर शब्दावली पर देशों के विभिन्न मत रहे. 

वार्ता में भाग लेने वाले ग़ैर सरकारी संगठनों में से एक है Access Now, जो दुनिया भर में संवेदनशील लोगों व समुदायों के डिजिटल अधिकारों का बचाव और विस्तार करता है. संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में फ़रवरी के दौरान, यूएन न्यूज़ के कॉनर लेनन ने वरिष्ठ अन्तरराष्ट्रीय अधिवक्ता और ‘Access Now’ के एशिया प्रशान्त नीति निदेशक, रमन जीत सिंह चीमा से बातचीत करके, इस बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की.

रमन जीत सिंह चीमा: इस सन्धि के तहत "साइबर अपराध के मूल" पर ध्यान देने की आवश्यकता है, अर्थात वे अपराध जो केवल कम्प्यूटर के ज़रिए सम्भव हैं, जिन्हें कभी-कभी "साइबर निर्भर" अपराध भी कहा जाता है. जैसेकि कम्प्यूटर प्रणाली में हैकिंग और नैटवर्क की सुरक्षा को कमज़ोर करना आदि. देशों को इन्हें अपराध घोषित करना चाहिए, जिसमें स्पष्ट रूप से ऐसे प्रावधान लागू किए जा सकें, जिससे दुनिया भर की सरकारें एक-दूसरे के साथ सहयोग कर सकें.

अगर आप सन्धि का दायरा बहुत व्यापक कर देते हैं, तो इसमें राजनैतिक अपराध भी शामिल हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति सरकार के प्रमुख या देश के प्रमुख के बारे में कोई टिप्पणी करता है, तो उसे साइबर अपराध क़ानून के तहत दंडित किया जा सकता है. 

जब इस सन्धि पर सहयोग करने वाली क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों की बात आती है, तो हमें मज़बूत मानवाधिकार मानक लागू करने होंगे, क्योंकि इससे प्रक्रिया में भरोसा पैदा होता है. साथ ही, अगर सुरक्षा उपायों के बिना व्यापक सन्धि हो जाती है, तो सहयोग के प्रत्येक अनुरोध को, मानवाधिकार पैरोकारों और प्रभावित समुदायों तथा स्वयं सरकारों की तरफ़ से चुनौती दी जा सकती है.

हर दिन साइबर अपराध के नए जोखिम नज़र आ रहे हैं.
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यूएन न्यूज़: वार्ता कक्ष में कैसा माहौल है?

रमन जीत सिंह चीमा: बेहद गम्भीर. यह स्पष्ट था कि प्रक्रिया इस सत्र के अन्त तक पूरी नहीं होगी, इसलिए वार्ता आयोजित करने वाले सचिवालय [ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय - UNODC] ने एक प्रस्ताव प्रसारित किया है, जिसमें संकेत दिया गया कि प्रक्रिया निलम्बित हो सकती है. इसके मद्देनज़र, इस वर्ष के अन्त में बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए महासचिव से समर्थन का आग्रह किया गया है.

दरअसल, कभी-कभी हमारा सबसे बड़ा डर यह होता है कि किसी प्रावधान पर अधिक सहमति बनने से वार्ताएँ तेज़ी से आगे बढ़ती हैं, जिससे किसी प्रकार के समझौते पर पहुँचने की इच्छा ज़ोर पकड़ लेती है, भले ही उसकी भाषा उचित न हो, और भले ही यह मानवाधिकारों का उल्लंघन करता हो.

कभी-कभी, जैसाकि स्वाभाविक भी है, जब न्याय मंत्रालय के अधिकारी और अभियोजक एक कमरे में एक साथ होते हैं, तो मुद्दे पर सहमत हो जाते हैं, क्योंकि वे सभी न्यूनतम सुरक्षा उपायों के साथ अधिकाधिक शक्तियाँ चाहते हैं. इसीलिए हमें भी इस वार्ता में शामिल किया गया है, इसलिए नहीं कि हम परस्पर प्रतिस्पर्धा व राजनीति को लेकर चिन्तित हैं, जो महत्वपूर्ण तो है, बल्कि इसलिए क्योंकि हमें फ़िक्र है कि मानवाधिकारों तथा उचित प्रक्रिया मानकों को दरकिनार करने पर अधिक सहमति बनेगी.

यूएन न्यूज़: क्या हम इस साल किसी सन्धि की उम्मीद कर सकते हैं?

रमन जीत सिंह चीमा: मुझे लगता है कि सभी देश किसी प्रकार के परिणाम पर पहुँचने को उत्सुक हैं, या कम से कम इस प्रक्रिया को तेज़ करने या इसे नुक़सान पहुँचाना तो क़तई नहीं चाहते. लेकिन यदि परिणाम दस्तावेज़ सही नहीं है, तो वे उस पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते हैं. 

असल में, नागरिक समाज, उद्योग और तकनीकी विशेषज्ञों की तरफ़ से एक संयुक्त बयान दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि इस सन्धि का वर्तमान मसौदा, इसके उद्देश्यों पर खरा नहीं उतरता. इसलिए, अगर वो वर्तमान संस्करण के साथ आगे बढ़ते हैं तो देशों को इस पर न तो हस्ताक्षर करना चाहिए, न ही तदर्थ समिति से इस परिणाम दस्तावेज़ को स्वीकार करने का आग्रह करना चाहिए.