अनेक देशों में निजता व डेटा सुरक्षा संबंधी क़ानूनों की कमी चिंताजनक

व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के आँकड़े दर्शाते हैं कि दुनिया में लगभग एक तिहाई देशों में नागरिकों के ऑनलाइन डेटा व निजता की सुरक्षा के लिए क़ानून मौजूद नहीं हैं. वर्ष 2015 से 2020 तक डेटा संरक्षण और निजता संबंधी क़ानूनों को अपनाने वाले देशों में 11 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन इसके बावजूद महज़ 66 फ़ीसदी देशों में ही महत्वपूर्ण साइबर उपाय लागू किए गए हैं.
यूएन एजेंसी ने दुनिया भर में साइबर क़ानून अपनाए जाने पर हुए ताज़ा सर्वेक्षण के नतीजों की जानकारी देते हुए कहा कि सबसे कम विकसित देशों में डेटा सुरक्षा संबंधी ख़ामियाँ सबसे अधिक (43 फ़ीसदी) नज़र आती हैं.
योरोप में 96 फ़ीसदी देशों में ज़रूरी क़ानून उपलब्ध हैं, जबकि अमेरिका क्षेत्र में यह 69 प्रतिशत, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 57 फ़ीसदी और अफ़्रीका में 50 फ़ीसदी है.
New @UNCTAD data shows that only 66% of countries have laws protecting people’s data and privacy. This is very worrying given the rise of cybercrime, scams and online fraud during the #coronavirus pandemic. https://t.co/FHomG57iju #UNCTADeWeek pic.twitter.com/Ok3Mg4Xdjq
UNCTAD
यूएन एजेंसी में टैक्नॉलॉजी और लॉजिस्टिक डिवीज़न की प्रमुख शमिका सिरिमाने ने बताया, “कोविड-19 के दौरान साइबर अपराधों, घोटालों और ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामलों में उभार को देखते हुए इस सर्वे के नतीजे बेहद चिंताजनक हैं.”
यूएन एजेंसी सीधे तौर पर साइबर अपराधों पर आँकड़ नहीं जुटाती है लेकिन एजेंसी ने यूएन न्यूज़ को बताया कि विश्व के अनेक देशों में तालाबंदी के दौरान ऐसी शिकायतों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई हैं.
लाखों लोग अब अपने घरों से काम कर रहे हैं, ऑनलाइन लेनदेन व ख़रीदारी बढ़ रही है और कंप्यूटर की सुरक्षा पर पहले से कहीं ज़्यादा जोखिम मंडरा रहा है.
आर्थिक विकास में ई-कॉमर्स यानी इंटरनेट के ज़रिए होने वाले कारोबार में ग्राहकों व व्यवसायों को सुरक्षा महसूस होनी चाहिए, ख़ास तौर पर एक ऐसे समय में जब सामान व सेवाओं की उपलब्धता डिजिटल साधनों के ज़रिए ही हो रही है.
ये सर्वे फ़रवरी 2020 में किया गया था और यह बताता है कि 10 फ़ीसदी देशों में डेटा संरक्षण व निजता संबंधी क़ानून के मसौदे पर काम हो रहा है और इस साल क़ानून बन जाने की संभावना है.
इनमें ब्राज़ील व थाईलैंड शामिल हैं और वे ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य व दक्षिण अफ़्रीका की तर्ज़ पर अपने क़ानूनों को योरोपीय संघ के डेटा संरक्षण अधिनियम के तहत तैयार कर रहे हैं जिसे दो साल पहले लागू किया गया था.
लेकिन यूएन एजेंसी के मुताबिक क़ानूनी प्रावधान असरदार ढंग से लागू किया जाना अहम है. बताया गया है कि विकासशील देशों में अक्सर इन्हें लागू करने के लिए संसाधनों का अभाव होता है.
साइबर अपराधों में लगातार बदलाव आ रहे हैं और उनसे निपटने के लिए ज़रूरी कौशल व ट्रेनिंग की कमी सुरक्षा एजेंसियों के लिए मुश्किल पैदा कर सकती हैं, ख़ासतौर पर जब ऐसे अपराधों को सीमापार से अंजाम दिया जाए.
यूएन एजेंसी के मुताबिक 81 प्रतिशत देशों में इंटरनेट पर कारोबार के लिए क़ानून हैं – इनमें योरोप व अमेरिकी क्षेत्र के देश अग्रणी हैं (क्रमश: 98 फ़ीसदी व 91 फ़ीसदी) जबकि अफ़्रीका में यह सबसे कम (61 प्रतिशत) है.
79 प्रतिशत देशों में साइबर अपराधों से निपटने के लिए क़ानून मौजूद हैं लेकिन दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में असमानता व्याप्त है. योरोप में यह 89 फ़ीसदी है जबकि अफ़्रीका में घटकर 72 प्रतिशत रह जाता है.
ऑनलाइन ग्राहकों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी क़ानूनी प्रावधान विश्व के 56 प्रतिशत देशों में मौजूद हैं लेकिन उन्हें अपनाए जाने की दर में भिन्नता है: योरोप में यह 73 फ़ीसदी, अमेरिका में 72 फ़ीसदी जबकि अफ़्रीका में महज़ 46 प्रतिशत है.
यूएन एजेंसी के मुताबिक इस मामले में कम विकसित देश अभी पीछे चल रहे हैं. सर्वे में 60 से ज़्यादा देशों ने हिस्सा लिया था. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय संगठनों व विशेषज्ञों से भी बात की गई.