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ऐमेज़ॉन सीईओ के फ़ोन हैकिंग मामले की जांच की मांग

विचारों की अभिव्यक्ति पर विशेष रैपोर्टेयर डेविड केय और ग़ैर न्यायिक व मनमाने तरीक़े से हत्या मामलों पर विशेष रैपोर्टेयर एगनेस कैलामार्ड.
UN Photo/Rick Bajornas/Loey Fili
विचारों की अभिव्यक्ति पर विशेष रैपोर्टेयर डेविड केय और ग़ैर न्यायिक व मनमाने तरीक़े से हत्या मामलों पर विशेष रैपोर्टेयर एगनेस कैलामार्ड.

ऐमेज़ॉन सीईओ के फ़ोन हैकिंग मामले की जांच की मांग

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के दो स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ‘द वॉशिंगटन पोस्ट’ अख़बार के मालिक जैफ़ बेज़ोस के आईफ़ोन को हैक किए जाने के आरोपों पर गहरी चिंता जताई है. रिपोर्टों के मुताबिक़ हैकिंग के लिए सऊदी युवराज मोहम्मद बिन सलमान के व्हॉट्सएप अकाउंट का इस्तेमाल किया गया. यूएन विशेषज्ञों ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए अमेरिका में स्थानीय प्रशासन द्वारा जांच कराए जाने की अपील की है.

विचारों की अभिव्यक्ति पर विशेष रैपोर्टेयर डेविड केय और ग़ैर न्यायिक व मनमाने तरीक़े से हत्या मामलों पर विशेष रैपोर्टेयर एगनेस कैलामार्ड ने अपने बयान में कहा है कि उन्हें हाल ही में जानकारी मिली थी कि सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान के व्हॉट्सएप अकाउंट का इस्तेमाल ऐमेज़ॉन (Amazon) कंपनी के सीईओ जैफ़ बेज़ोस के फ़ोन को हैक करने में किया गया.

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मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आशंका जताई कि इस हैकिंग का मक़सद सऊदी अरब पर 'द वॉशिंगटन पोस्ट' अख़बार की रिपोर्टिंग को प्रभावित करना था.

उनके मुताबिक़ यह मामला दर्शाता है कि सऊदी नेतृत्व के विरोधियों और रणनीतिक अहमियत वाली शख़्सियतों को निशाना बनाकर की जाने वाली निगरानी की घटनाओं का एक लंबा सिलसिला है. 

उन्होंने कहा कि अगर जैफ़ बेज़ोस और अन्य लोगों के फ़ोन की कथित हैकिंग साबित हो जाती है तो यह बुनियादी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का उल्लंघन होगा.

इस स्थिति में मामले की जाँच अमेरिका व अन्य पक्षों द्वारा तत्काल करानी होगी – ये जाँच भी कि किस तरह सऊदी युवराज कई वर्षों तक अपने विरोधियों की गुप-चुप निगरानी में सीधे तौर पर शामिल रहे.

बेहतर नियंत्रण की दरकार

ऐमेज़ॉन कंपनी के सीईओ जैफ़ बेज़ोस की कथित निगरानी एक ऐसे सॉफ़्टवेयर के ज़रिए की गई जिसे एक निजी कंपनी ने बनाकर सऊदी सरकार को दे दिया और जिसके इस्तेमाल पर कोई न्यायिक नियंत्रण नहीं था.

विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि सूचना चुराने के लिए इस्तेमाल होने वाले सॉफ़्टवेयर – स्पाइवेयर की बेरोकटोक मार्केटिंग, बिक्री और इस्तेमाल से होने वाले नुक़सान का यह एक ठोस उदाहरण है.

डिजिटल माध्यमों के ज़रिए ग़लत ढंग से निगरानी को रोकने के लिए ऐसे सॉफ़्टवेयर के इस्तेमाल पर कठोर नियंत्रण स्थापित करने को अहम बताया गया है. साथ ही ‘निजी सर्वेलेंस टैक्नोलॉजी’ की बिक्री और हस्तांतरण पर स्वैच्छिक रूप से पाबंदी लगाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया है.

विशेष रैपोर्टेयर ने कड़े शब्दों में कहा कि सऊदी अरब ने 'द वॉशिंगटन पोस्ट' के पत्रकार जमाल ख़शोग्जी की हत्या के लिए ज़िम्मेदार लोगों की जांच कराने के बजाय गुप-चुप ढंग से जैफ़ बेज़ोस के ख़िलाफ ऑनलाइन मुहिम छेड़ी हुई थी.

फ़ोरेंसिक जांच से पुख़्ता हुआ संदेह

वर्ष 2019 में बेज़ोस के आईफ़ोन की फ़ोरेंसिक जांच के बाद यह संदेह पुष्ट हो गया था कि 1 मई 2018 को मोहम्मद बिन सलमान के व्हॉट्सएप अकाउंट से एक वीडियो भेजकर उनके फ़ोन को हैक कर लिया गया.  

इस कथित हैंकिग से एक महीने पहले ही सऊदी युवराज और एमेज़ॉन सीईओ ने अपने फ़ोन नंबर एक दूसरे के साथ साझा किए थे.

फ़ोरेंसिक विश्लेषण में पता चला कि सऊदी युवराज के अकाउंट से वीडियो मिलने के कुछ ही घंटों के भीतर उनके आईफ़ोन से बड़ी मात्रा में डेटा की चोरी शुरू हो गया. इसके बाद ग़ैरक़ानूनी ढंग से डेटा चुराए जाने का यह सिलसिला कई महीनों तक चलता रहा.

हालांकि वॉशिंगटन में सऊदी अरब के दूतावास ने मंगलवार रात कहा कि जैफ़ बेज़ोस के फ़ोन को हैक किए जाने के आरोप बकवास हैं.

विश्लेषण के मुताबिक़ इस काम में जिस स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया गया, सऊदी अरब पहले भी उस स्पाईवेयर का इस्तेमाल राजनैतिक असंतुष्टों व विरोधियों के ख़िलाफ़ कर चुका है.

मई से जून 2018 के मध्य जमाल ख़शोग्जी के सहयोगियों, याहया अस्सिरी और उमर अब्दुलअज़ीज़ के फ़ोन हैक किए गए थे.

मई 2018 में जमाल ख़शोग्जी ‘द वॉशिंगटन पोस्ट’ अख़बार के लिए स्तंभकार थे और सऊदी युवराज के शासन की आलोचना भरे लेख लिख रहे थे. अक्टूबर 2018 में तुर्की के इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्यिक दूतावास में उनकी हत्या कर दी गई थी.

इस घटनाक्रम के बाद  'द वॉशिंगटन पोस्ट' अख़बार ने जमाल ख़शोग्जी के ग़ायब होने और उनकी हत्या किए जाने पर विस्तृत रूप से रिपोर्टिंग की और सऊदी युवराज के शासन पर रिपोर्टिंग की धार को और ज़्यादा पैना कर दिया था.

नवंबर 2018 और फ़रवरी 2019 में ऐमेज़ॉन के सीईओ को सऊदी अरब में सोशल मीडिया में भी निशाना बनाया गया और उन्हें देश का शत्रु क़रार दिया गया.

यह ‘द वॉशिंगटन पोस्ट’ अख़बार और उसके मालिक को निशाना बनाने के लिए शुरू की गई ऑनलाइन मुहिम का हिस्सा था.

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.