यमन में शान्ति प्रक्रिया, ग़ाज़ा युद्ध के साए से प्रभावित
यमन के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत हैंस ग्रुंडबर्ग ने बुधवार को कहा है कि ग़ाज़ा में युद्ध के झटकों की गूंज, व्यापक मध्य पूर्व क्षेत्र में सुनी और देखी जा रही है और यमन में भी स्थिति कुछ महीने पहले की तुलना में कहीं अधिक जटिल है.
हैंस ग्रुंडबर्ग ने सुरक्षा परिषद को जानकारी देते हुए, 2014 में हूथी लड़ाकों द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने से उत्पन्न हुए और दशक-लम्बे जटिल संकट में, मध्यस्थता के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों में "निरन्तर प्रगति" को रेखांकित किया.
अलबत्ता, इसराइल-ग़ाज़ा युद्ध और लाल सागर में सैन्य वृद्धि के कारण, दिसम्बर 2023 से ध्यान का केन्द्र आश्चर्यजनक रूप से बदल गया है.
उन्होंने कहा, “मैंने (यमन की) शान्ति प्रक्रिया को, व्यापक क्षेत्रीय घटनाक्रम से अलग करने की काफ़ी कोशिश की है, वास्तविकता यह है कि यमन में मध्यस्थता के प्रयासों को वृहद परिदृश्य से अलग नहीं किया सकता है. क्षेत्रीय स्तर पर जो होता है उसका असर यमन पर पड़ता है और यमन में जो होता है वह क्षेत्र पर असर डाल सकता है.''
हैंस ग्रुंडबर्ग ने ज़ोर देकर कहा कि बिगड़ती स्थिति के बावजूद, यमन में संकट को हल करने के प्रयास जारी रहेंगे, चाहे कुछ भी हो, राजनैतिक स्थान को संरक्षित करना और संचार के चैनलों को खुला रखना बहुत अहम है.
जटिल संकट
यमन का गृह युद्ध सितम्बर 2014 में उस समय भड़क उठा था जब, हूथी लड़ाकों ने राजधानी सना पर क़ब्जा कर लिया था, जिससे सरकार को वहाँ से हटने के लिए मजबूर होना पड़ा. उसके बाद, वर्ष 2015 के शुरू में सरकार के समर्थन में, सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबन्धन ने सैन्य हस्तक्षेप किया था.
इस टकराव के परिणामस्वरूप लोगों का व्यापक विस्थापन, भोजन अभाव और चिकित्सा की कमी, हैज़ा का प्रकोप हुआ है. इस स्थिति को, जिससे संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया के सबसे ख़राब मानवीय संकट के रूप में परिभाषित किया है, जिसमें लाखों नागरिकों को तत्काल सहायता की आवश्यकता है.
या तो युद्ध के कारण या खाद्य अभाव की वजह से, सैकड़ों-हज़ारों लोग मारे गए हैं, और लगभग 15 प्रतिशत आबादी विस्थापित हो गई है - जिनमें से अधिकांश को कई बार विस्थापित होना पड़ा है.
राजनैतिक अस्थिरता और जारी हिंसा के कारण, हालात और भी अधिक जटिल हो गए हैं और इसमें विशेष रूप से, ग़ाज़ा संकट का फैलाव भी एक कारण है, जिससे नागरिक आबादी की पीड़ा बढ़ गई है.
उन्होंने कहा कि एक क्षेत्रीय तनाव को तत्काल कम करने की आवश्यकता है.
उन्होंने यमनी पक्षों को "सैन्य अवसरवाद" से दूर रहने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, और सभी पक्षों को एक समझौते तक पहुँचने की दिशा में अब तक हुई प्रगति को सहेजने पर फिर से ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया.
हैंस ग्रुंडबर्ग ने ज़ोर देकर कहा, "ऐसा कोई कारण नहीं है कि यमनी लोगों को युद्ध, निर्धनता और दमन की स्थितियों के लिए दोषी ठहराया जाए."
मानवीय स्थिति
मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (OCHA) के संचालन निदेशक, ऐडेम वोसोर्नू ने भी सुरक्षा परिषद में राजदूतों को बताया कि मानवीय पक्ष पर, यमन "विशाल, निरन्तर ज़रूरतों" का स्थान बना हुआ है.
उन्होंने बताया कि वर्ष 2024 में, 1.82 करोड़ से अधिक लोगों यानि आधी से अधिक आबादी को मानवीय सहायता और सुरक्षा सेवाओं की आवश्यकता होगी. इस संख्या में 1.1 करोड़ से अधिक बच्चे हैं.
देश भर में, तीन साल तक की आयु के 70 प्रतिशत से अधिक बच्चों को बुनियादी टीकाकरण की पूरी ख़ुराकें नहीं मिली हैं, 80 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे रहती है, और आधे से भी कम अस्पताल, पूरी तरह या आंशिक रूप से काम कर पा रहे हैं.
लाल सागर में टकराव और हुदायदाह व अदन बन्दरगाहों के माध्यम से होने वाले सहायता परिवहन पर प्रभाव से, संकट और भी जटिल हो गया है.
ऐडेम वोसोर्नू ने कहा, "तत्काल और पर्याप्त ध्यान के बिना, स्थिति बिगड़ती रहेगी."
उन्होंने इस युद्धग्रस्त देश में, लगभग 1.12 करोड़ लोगों की सहायता के लिए, संयुक्त राष्ट्र की 2.7 अरब डॉलर की मानवीय अपील की तरफ़ याद दिलाया, और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आगे बढ़ने व यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि राहत कार्यों में उन लोगों तक पहुँचने के लिए आवश्यक धन उपलब्ध हो.