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युद्ध भड़कने के बाद से अब तक, ग़ाज़ा व पश्चिमी तट के स्वास्थ्य केन्द्रों पर 550 से अधिक हमले

ग़ाज़ा के ख़ान यूनिस के एक अस्पताल में एक माँ अपनी बेटी की देखभाल कर रही है.
© UNICEF/Abed Zaqout
ग़ाज़ा के ख़ान यूनिस के एक अस्पताल में एक माँ अपनी बेटी की देखभाल कर रही है.

युद्ध भड़कने के बाद से अब तक, ग़ाज़ा व पश्चिमी तट के स्वास्थ्य केन्द्रों पर 550 से अधिक हमले

मानवीय सहायता

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि हमास द्वारा दक्षिणी इसराइल में आतंकी हमले किए जाने के बाद शुरू हुए युद्ध के दौरान अब तक, ग़ाज़ा और क़ाबिज़ पश्चिमी तट के स्थानीय अस्पतालों और अन्य महत्वपूर्ण चिकित्सा केन्द्रों पर 550 से अधिक बार हमले किए जा चुके हैं. 

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी से प्राप्त जानकारी के अनुसार, क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में पिछले साल 7 अक्टूबर से स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों पर हुए हमलों में लगभग 613 लोग मारे गए हैं और 770 से अधिक घायल हुए हैं.

इनमें 606 लोगों की ग़ाज़ा में और पश्चिमी तट में सात लोगों की जान गई है.   

संगठन के प्रवक्ता क्रिस्टियान लिन्डमायर ने ग़ाज़ा में लड़ाई और बमबारी जारी रहने की निन्दा करते हुए कहा कि मानवतावादी आश्रय स्थलों की कमी और स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों पर हमले, ग़ाज़ा के निवासियों को कगार पर धकेल रहे हैं.

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ग़ाज़ा पट्टी में बच्चों के जीवन पर तिहरे ख़तरे मंडरा रहे हैं: बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं, पोषण में कमी आ रही है और हिंसक टकराव के 14वें सप्ताह में प्रवेश करने के साथ ही उसमें तेज़ी आई है. 

हज़ारों बच्चों की पहले ही हिंसा में मौत हो चुकी है, जबकि अन्य बच्चों के लिए गुज़र-बसर की परिस्थितियाँ बद से बदतर हो रही हैं.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी अपने एक ऑनलाइन प्लैटफ़ॉर्म के ज़रिये ग़ाज़ा में स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों पर हमलों पर नज़र रखी है, जिसके अनुसार 550 से अधिक चिकित्सा केन्द्रों और वाहनों पर पिछले लगभग 100 दिनों में असर हुआ है.

बच्चों के लिए दुस्वप्न 

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की प्रमुख कैथरीन रसैल ने शुक्रवार को जारी अपने एक वक्तव्य में कहा कि ग़ाज़ा में बच्चे एक ऐसे दुस्वप्न में फँस गए हैं, जोकि हर दिन बीतने के साथ भयावह होता जा रहा है.

उन्होंने क्षोभ प्रकट किया गया कि युवा ज़िन्दगियों पर ऐसी बीमारियों का जोखिम मंडरा रहा है, जिनकी रोकथाम सम्भव है, और उनके पास भोजन व पानी भी नहीं है. 

पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में दस्त के मामलों में, 17 दिसम्बर को शुरु हुए सप्ताह में बड़ी वृद्धि हुई और वे 48 हज़ार से बढ़कर 71 हज़ार तक पहुँच गए.

उन्होंने कहा कि यह वृद्धि दर्शाती है कि ग़ाज़ा में बाल स्वास्थ्य के लिए हालात तेज़ी से बिगड़ रहे हैं. लड़ाई शुरू होने से पहले, पाँच साल से कम आयु के बच्चों में प्रति माह औसतन दो हज़ार मामले दर्ज किए जाते थे.

राहत प्रयासों में अवरोध

इस बीच, मानवीय सहायता प्रयासों में संयोजन के लिए यूएन कार्यालय (OCHA) ने आगाह किया है कि ग़ाज़ा में ज़रूरतमन्द आबादी तक राहत पहुँचाने की गति और उसका स्तर, ज़मीन पर हालात के कारण बाधित हो रहा है.

यूएन कार्यालय की प्रवक्ता ऐरी कानेको ने शुक्रवार को एक वक्तव्य जारी किया, जिसके अनुसार, ग़ाज़ा में अभियान संचालन के लिए हालात और प्रतिक्रिया की क्षमता, सुरक्षा जोखिमों, आवाजाही सम्बन्धी मुश्किलों, देरी समेत अन्य कारणों से प्रभावित हो रही है.  

 

“अनेक बार निरीक्षण, ट्रकों की लम्बी क़तार और चौकियों पर मुश्किलों से अभियान संचालन में अवरोध पैदा होते हैं.

ग़ाज़ा के भीतर, राहत अभियानों को निरन्तर बमबारी का सामना करना पड़ रहा है. स्वयं राहतकर्मियों की मौत हुई है और कुछ क़ाफ़िलों पर गोलियाँ चलाई गई हैं.”

इसके अलावा, ख़राब संचार व्यवस्था, क्षतिग्रस्त सड़कों और सीमा चौकियों पर होने वाली देरी समेत अन्य चुनौतियाँ भी हैं. 

142 UNRWA कर्मचारियों ने गँवाई जान

फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) ने बताया है कि हिंसक टकराव शुरू होने के बाद से अपनी जान गँवाने वाले यूएन कर्मचारियों की संख्या बढ़कर 142 पहुँच गई है.

7 अक्टूबर के बाद से विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या 19 लाख हो गई है, जिनमें से कई लोग अनेक बार विस्थापन का शिकार हुए हैं.

यह संख्या, ग़ाज़ा पट्टी की कुल आबादी का 85 फ़ीसदी है. क़रीब 14 लाख आन्तरिक रूप से विस्थापितों ने UNRWA द्वारा संचालित 155 आश्रय स्थलों में शरण ली है.

बढ़ती आवश्यकताओं के मद्देनज़र, अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) ने शुक्रवार को 6.9 करोड़ डॉलर की एक अपील जारी की है, ताकि क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में उपजी मानवीय सहायता आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके.

यूएन एजेंसी ने सचेत किया है कि लाखों आम नागरिकों को तत्काल सहायता पहुँचाई जानी ज़रूरी है, मगर मानवीय सहायता क़ाफ़िलों में शामिल ट्रकों को सीमा पर स्वीकृति मिलने की प्रक्रिया बेहद लम्बी है, और लड़ाई जारी रहने के कारण राहत अभियान में देरी हो रही है.