जलवायु परिवर्तन से, मलेरिया पर क़ाबू पाने की रफ़्तार पलट जाने का जोखिम
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी - WHO ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों ने, मलेरिया के ख़िलाफ़ लड़ाई में हुई प्रगति को पलट देने का जोखिम उत्पन्न कर दिया है. इनमें विशेष रूप से अत्यन्त चरम मौसम, और ताप लहरों के जोखिम शामिल हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने, दुबई में, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन - COP28 में देशों के एकत्र होने पर अपनी 2023 विश्व मलेरिया रिपोर्ट जारी करते हुए, चेतावनी दी कि मलेरिया की रोकथाम के उपायों के विस्तार के बावजूद, अधिक लोग इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं.
डब्ल्यूएचओ ने 2022 में 24.9 करोड़ मामले दर्ज किए, जो 2021 से 20 लाख की वृद्धि और 2016 में महामारी-पूर्व स्तर 23.3 करोड़ से अधिक हैं.
ऐसा मुख्य रूप से COVID-19-प्रेरित सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों, मानवीय संकटों, दवाओं और कीटनाशक प्रतिरोध की क्षमता विकसित किए जाने व वैश्विक तापमान वृद्धि के प्रभावों के कारण हुआ है.
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रोस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा, "बदलती जलवायु, मलेरिया के ख़िलाफ़ प्रगति के लिए एक बड़ा ख़तरा पैदा करती है, विशेष रूप में, कमज़ोर क्षेत्रों में."
उन्होंने कहा, "वैश्विक तापमान वृद्धि की गति को धीमा करने और इसके प्रभावों को कम करने के लिए, तत्काल कार्रवाई के साथ-साथ टिकाऊ और लचीली मलेरिया प्रतिक्रियाओं की, अब पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है."
पाकिस्तान में पाँच गुना बढ़ोत्तरी
रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और मलेरिया के बीच सम्बन्ध पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसमें बढ़ते तापमान, आर्द्रता और वर्षा के कारण एनोफ़िलिस मच्छर के व्यवहार में बदलाव और जीवित रहने की दर में वृद्धि पर ध्यान दिया गया है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि ताप लहरें और बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाएँ भी सीधे तौर पर संचरण और बीमारी के बोझ को प्रभावित कर सकती हैं. उदाहरण के लिए, पाकिस्तान में 2022 में आई विनाशकारी बाढ़ के कारण, देश में मलेरिया के मामलों में पाँच गुना वृद्धि हुई.
इथियोपिया, नाइजीरिया, पापुआ न्यू गिनी और युगांडा में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई.
नीचे की तरफ़ रुझान वाले प्रभाव
डब्ल्यूएचओ ने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तनशीलता, मलेरिया के रुझानों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डाल सकती है, जिसके लिए, आवश्यक मलेरिया सेवाओं तक कम पहुँच और कीटनाशक-उपचारित मच्छरदानियों, दवाओं और टीकों की आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, जैसे कारक ज़िम्मेदार शामिल हैं.
जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित जनसंख्या विस्थापन से, मलेरिया के मामलों में भी वृद्धि हो सकती है, क्योंकि बिना प्रतिरक्षा वाले व्यक्ति, बीमारी फैलाव वाले स्थानों की ओर पलायन करते हैं.
अन्य कारक
निसन्देह, जलवायु परिवर्तन ने एक बड़ा ख़तरा पैदा किया है, फिर भी डब्ल्यूएचओ ने कई अन्य ख़तरों को स्वीकार करने की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया है.
अफ़्रीका क्षेत्र के लिए, WHO की क्षेत्रीय निदेशक, मात्शीदीसो मोएती का कहना है, "जलवायु परिवर्तनशीलता एक बड़ा जोखिम पैदा करती है, लेकिन हमें सीमित स्वास्थ्य देखभाल पहुँच, लगातार जारी टकरावों और आपात स्थिति, सेवा उपलब्धता पर कोविड -19 के लम्बे समय तक चलने वाले प्रभावों, अपर्याप्त धन और हमारे मुख्य मलेरिया कार्यक्रम के असमान कार्यान्वयन जैसी चुनौतियों से भी निपटना होगा."
उन्होंने कहा, "हमें एक मलेरिया मुक्त भविष्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिए, इन विविध ख़तरों से निपटने के वास्ते, ऐसे ठोस प्रयास करने होंगे जो नवाचार, संसाधन जुटाने और सहयोगात्मक रणनीतियों को बढ़ावा दें."
अगले क़दम
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया के ख़िलाफ़ लड़ाई में ठोस बढ़त की ज़रूरत को रेखांकित किया है, जिसमें अधिक ध्यान, संसाधनों में वृद्धि, राजनैतिक प्रतिबद्धता की मज़बूती, डेटा-संचालित रणनीतियों और अधिक कुशल, प्रभावी व किफ़ायती उत्पादों के विकास पर केंद्रित हो.
संगठन ने कहा है, “जलवायु परिवर्तन का अतिरिक्त ख़तरा, टिकाऊ और लचीली मलेरिया प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता की मांग करता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रयासों के साथ मेल खाए. एकीकृत दृष्टिकोण विकसित करने के लिए सम्पूर्ण समाज की भागेदारी महत्वपूर्ण है.''