श्रीलंका: आतंकवाद व ऑनलाइन सुरक्षा सम्बन्धी विधेयकों के प्रावधानों पर गहरी चिन्ता
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने श्रीलंका में आतकंवाद और ऑनलाइन सुरक्षा के मुद्दे पर संसद में चर्चा के लिए लाए गए दो विधेयकों पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है, और उनमें संशोधन करके, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के अनुरूप बनाए जाने का आग्रह किया है.
यूएन कार्यालय के अनुसार, आतंकवाद-निरोधक विधेयक, आतंकवादी कृत्यों की रोकथाम के लिए पुराने क़ानून में संशोधन के बाद पेश किया गया है.
यह क़ानून लम्बे समय से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार तंत्रों के लिए चिन्ता का विषय रहा है.
वहीं, ऑनलाइन सुरक्षा के लिए विधेयक में प्रशासनिक एजेंसियों को विशाल शक्तियाँ देने और मानवाधिकारों पर पाबन्दियाँ लगाए जाने के प्रावधान हैं.
मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने शुक्रवार को कहा कि ये विधेयक, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के अनुरूप नहीं हैं.
आतंकवाद निरोधक विधेयक
यूएन प्रवक्ता ने बताया कि आतंकवाद पर नए क़ानून के लिए प्रस्तावित मसौदे में, कुछ सकारात्मक बदलाव किए गए हैं, जिनमें सम्भावित दंड के तौर पर मौत की सज़ा को हटाया गया है.
मगर, उनका कहना है कि संशोधित मसौदे में अब भी ऐसे अनेक प्रावधान हैं, जिससे उसके दायरे और भेदभावपूर्ण असर के प्रति चिन्ता है.
रवीना शमदासानी ने ध्यान दिलाया कि अभिव्यक्ति की आज़ादी, और शान्तिपूर्ण ढंग से एकत्र होने के अधिकार पर जिन पाबन्दियों का प्रावधान किया गया है, वे आवश्यकता व आनुपातिकता की ज़रूरतों के अनुरूप नहीं होने की आशंका है.
इस विधेयक में आतंकवाद की मोटे तौर पर व्याख्या की गई है और पुलिस व सेना को विस्तृत शक्तियाँ दी गई हैं. इनके तहत, सुरक्षा एजेंसियों के पास लोगों को रोकने, सवाल पूछने व तलाशी लेने, और बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के गिरफ़्तार व हिरासत में लेने का अधिकार होगा.
इसके अलावा, कर्फ़्यू लागू किए जाने, पाबन्दियाँ थोपने के लिए आदेश जारी करने और निषिद्ध स्थलों को चिन्हित किए जाने के प्रावधानों पर भी चिन्ता व्यक्त की गई है.
यूएन कार्यालय प्रवक्ता ने सचेत किया कि इस विधेयक में कार्यपालिका को ऐसी शक्तियाँ दिए जाने का प्रस्ताव है, जिन पर रोक या सन्तुलन स्थापित किए जाने का प्रावधान नहीं है.
ऑनलाइन सुरक्षा बिल
रवीना शमदासानी ने ऑनलाइन सुरक्षा विधेयक से ऑनलाइन संचार के गम्भीर नियामन और माध्मयों पर पाबन्दियाँ लागू होने की आशंका जताई.
उन्होंने कहा कि इससे प्रशासनिक एजेंसियों के पास, किसी भी असहमतिपूर्ण अभिव्यक्ति को झूठा वक्तव्य के रूप में परिभाषित करने का बेरोकटोक अधिकार होगा.
यूएन कार्यालय प्रवक्ता के अनुसार, इस बिल में ऐसी कई शब्दावली व अपराधों की परिभाषाएँ हैं, जिनकी स्पष्ट रूप से व्याख्या नहीं की गई हैं.
इससे इन प्रावधानों का मनमाने ढंग से इस्तेमाल किए जाने की आशंका बढ़ेगी और सभी प्रकार की जायज़ अभिव्यक्तियों का आपराधिकरण किया जाना सम्भव होगा.
उन्होने कहा कि इनसे एक ऐसा माहौल पनपने की आशंका है जिससे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कंपा देने वाला असर हो.
इसके मद्देनज़र, यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने श्रीलंका सरकार से नागरिक समाज व यूएन स्वतंत्र विशेषज्ञों के साथ अर्थपूर्व विमर्श पर बल दिया है, ताकि क़ानून के इन मसौदों में बदलाव लाकर, उन्हें अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों के अनुरूप बनाया जा सके.