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भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूएन महासभा के 78वें सत्र को सम्बोधित किया.

UNGA78: बढ़ते ध्रुवीकरण और गहराती दरारों के दौर में, संवाद व कूटनीति ही कारगर समाधान - भारत

UN Photo/Cia Pak
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूएन महासभा के 78वें सत्र को सम्बोधित किया.

UNGA78: बढ़ते ध्रुवीकरण और गहराती दरारों के दौर में, संवाद व कूटनीति ही कारगर समाधान - भारत

यूएन मामले

भारत के विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने यूएन महासभा के 78वें सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा है कि एक ऐसे दौर में जब दुनिया अभूतपूर्व उथल-पुथल के दौर से गुज़र रही है, पूर्वी और पश्चिमी जगत के बीच ध्रुवीकरण बढ़ता जा रहा है, और वैश्विक उत्तर व वैश्विक दक्षिण के बीच की दरार गहरी हो रही है, मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए कूटनीति व संवाद ही कारगर समाधान हैं. 

भारतीय विदेश मंत्री ने उच्च स्तरीय जनरल डिबेट को अपना सम्बोधन नमस्ते के साथ आरम्भ करते हुए कहा कि ढाँचागत विषमताओं और असमान विकास के कारण वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) के देशों पर बोझ बढ़ा है,. वैश्विक महामारी कोविड-19 और हिंसक टकरावों से उपजे हालात, तनावों और विवादों से यह और पैना हुआ है.

इसके परिणामस्वरूप, हाल के समय में दर्ज की प्रगति को धक्का पहुँचा है, टिकाऊ विकास के लिए संसाधन जुटाने में गम्भीर चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं, और अनेक देशों के लिए गुज़ारा कर पाना कठिन हो रहा है. 

भारतीय विदेश मंत्री के अनुसार, इन परिस्थितियों से जूझते हुए भविष्य की ओर बढ़ना, अब और अधिक कठिन हो गया है. "इस पड़ाव पर, ज़िम्मेदारी के असाधारण एहसास के साथ, भारत ने जी20 की अध्यक्षता सम्भाली."

"एक पृथ्वी, एक कुटुम्ब, एक भविष्य की हमारी दूरदृष्टि ने अनेकानेक की मुख्य चिन्ताओं पर ध्यान केन्द्रित करना चाहा, केवल कुछ के संकीर्ण हितों पर नहीं."

उन्होंने कहा कि जी20 के समापन पर नई दिल्ली घोषणापत्र में विश्व को पोषित करने वाले रचनात्मक सहयोग के बीज बोने, दरारों को पाटने और अवरोधों को दूर करने की भावनाएँ परिलक्षित हुईं.

वृहद प्रतिनिधित्व, प्रभावशीलता और विश्वसनीयता

उन्होंने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था, विविधतापूर्ण है और यदि मतभेदों का नहीं तो भिन्नताओं का ख़याल रखा ही जाना होगा.

“ केवल मुट्ठी भर देशों द्वारा एजेंडा तय किए जाने और फिर अन्य [देशों] द्वारा उसका पालन किए जाने के दिन बीत चुके हैं.” 

" अन्य की बात सुनना और उनके विचारों का सम्मान करना, यह कमज़ोरी नहीं है. यह सहयोग का आधार है. केवल उसके बाद ही वैश्विक मुद्दों पर सामूहिक प्रयास सफल हो सकते हैं."

उन्होंने कहा कि भारत की पहल पर अफ़्रीकी संघ को स्थाई सदस्यता प्रदान की गई, जिसके ज़रिए पूरे महाद्वीप को आवाज़ मिली, जिसकी आवश्यकता लम्बे समय से थी.

एस जयशंकर ने कहा कि जी20 में सुधार की ओर उठाए गए इस ठोस क़दम से, संयुक्त राष्ट्र को भी प्रेरणा मिलनी चाहिए, जोकि कहीं ज़्यादा पुराना संगठन है ताकि सुरक्षा परिषद को समकालीन बनाया जा सके.

"अन्ततः, वृहद प्रतिनिधित्व, प्रभावशीलता और विश्वसनीयता के लिए एक पूर्व अनिवार्यता है."

अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था में सुधार

विदेश मंत्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि अक्सर एक नियम-आधारित अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था की पैरवी की जाती है, और यूएन चार्टर का भी उल्लेख होता है.

“मगर तमाम बातों के बावजूद, अब भी केवल कुछ देश ही एजेंडा को आकार देते हैं और मानदंडों को निर्धारित करना चाहते हैं. यह अनिश्चितकाल के लिए जारी नहीं रह सकता है. और ना ही इसे चुनौती दिए बग़ैर रहा जा सकता है.”

एस जयशंकर ने कहा कि एक निष्पक्ष, समतापूर्ण, और लोकतांत्रिक व्यवस्था निश्चित रूप से उभरेगी, और उसके लिए यह ज़रूरी है कि नियम-निर्माता, नियमों का पालन करने वालों को अपने आधीन ना करें. 

“नियम केवल तभी काम करेंगे, जब वे सभी पर समान रूप से लागू होंगे.” 

उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना होगा कि वैक्सीन वितरण में अन्यायपूर्ण हालात को फिर से ना दोहराया जाए. ना ही जलवायु कार्रवाई के लिए ऐतिहासिक ज़िम्मेदारियों को अनदेखा किया जा सकता है और ना ही बाज़ारी शक्तियों को भोजन व ऊर्जा, ज़रूरतमन्दों के बजाय साधन सम्पन्न तक पहुँचाने की अनुमति दी जा सकती है.

साथ ही, यह देखना होगा कि राजनैतिक सुविधा के हिसाब से आतंकवाद, अतिवाद और हिंसा के विरुद्ध जवाबी कार्रवाई को तय ना किया जाए, और ना ही, क्षेत्रीय अखंडता के लिए सम्मान और आन्तरिक मामलों में ग़ैर-हस्तक्षेप को मनमुताबिक़ अपनाया जा सकता है.

"ईमानदार एकजुटता के बिना, कभी भी सही मायनों में विश्वास नहीं हो सकता है. वैश्विक दक्षिण में काफ़ी हद तक यही भावना है."

विदेश मंत्री ने कहा कि अगले वर्ष यूएन मुख्यालय में 'भविष्य की शिखर बैठक' को बदलाव लाने, निष्पक्षता सुनिश्चित करने, सुरक्षा परिषद के विस्तार के साथ बहुपक्षवाद में सुधार लाने का एक गम्भीर अवसर बनाना होगा.

राष्ट्रीय हित, वैश्विक भलाई 

विदेश मंत्री एस जयशंकर के अनुसार, हर देश अपने राष्ट्रीय हितों की ओर बढ़ना चाहता है, लेकिन भारत इन प्रयासों को वैश्विक भलाई के विरोधाभास के रूप में नहीं देखता है.

उन्होंने कहा कि भारत एक अग्रणी शक्ति बनने की आकांक्षा रखता है लेकिन यह अपनी पदवी बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि अधिक ज़िम्मेदारियों को अपने कन्धों पर लेने के लिए है. 

"भारत ने यह कोविड-19 के दौरान वैक्सीन मैत्री पहल के ज़रिए दर्शाया. अन्तरराष्ट्रीय सौर गठबन्धन और जलवायु सहनसक्षमता बुनियादी ढाँचे के लिए गठबन्धन जैसे हमारे प्रयासों को वृहद समर्थन मिला है."

इस क्रम में, उन्होंने 'अन्तरराष्ट्रीय बाजरा (मोटा अनाज) वर्ष' का भी ज़िक्र किया, जिसे वैश्विक खाद्य सुरक्षा को मज़बूती देने के नज़रिए से अहम बताया गया है. 

भारतीय विदेश मंत्री ने बताया कि भारत ने विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में 78 देशों के साथ विकास साझेदारियाँ की हैं, और तुर्कीये भूकम्प समेत अनेक आपदा हालात में देश के राहतकर्मियों ने अग्रिम मोर्चे पर ज़िम्मेदारी निभाई.  

सतत विकास लक्ष्यों की ओर

एस जयशंकर ने यूएन मुख्यालय में पिछले सप्ताह आयोजित शिखर बैठक के दौरान टिकाऊ विकास लक्ष्यों की दिशा में प्रगति की समीक्षा का उल्लेख करते हुए बताया कि भारत को इस मोर्चे पर सफलता मिली है, जिससे अन्य देशों का भरोसा मज़बूत होगा.

उन्होंने कहा कि वैश्विक बहुआयामी निर्धनता सूचकांक दर्शाता है कि भारत में 41 करोड़ से अधिक लोगों को निर्धनता के चक्र से बाहर निकलने में सफलता मिली है. 

भारतीय विदेश मंत्री के अनुसार, वित्तीय समावेशन, भोजन व पोषण, स्वास्थ्य, जल आपूर्ति, ऊर्जा व आवास समेत अन्य क्षेत्रों में विशेष प्रयास किए गए हैं. 

ज़रूरतमन्दों तक सार्वजनिक भलाई की वस्तुओं को पहुँचाने में, डिजिटल टैक्नॉलॉजी ने रूपान्तरकारी भूमिका निभाई है, और किसी को भी पीछे नहीं छूटने देने का राष्ट्रीय लक्ष्य अनेक आयामों में आगे बढ़ रहा है.

भारतीय विदेश मंत्री का यह वक्तव्य अंग्रेज़ी में यहाँ उपलब्ध है.