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'सूडान आपबीती: "अपना घर छोड़ना किसी को अच्छा नहीं लगता...'

सूडान में संघर्ष से भागे लोग ख़ार्तूम में एक बस अड्डे पर प्रतीक्षा करते हुए.
UNDP Sudan
सूडान में संघर्ष से भागे लोग ख़ार्तूम में एक बस अड्डे पर प्रतीक्षा करते हुए.

'सूडान आपबीती: "अपना घर छोड़ना किसी को अच्छा नहीं लगता...'

शान्ति और सुरक्षा

सूडान में युद्ध भड़कने के लगभग एक महीने बाद भी, राष्ट्रीय सेना और प्रतिद्वन्द्वी आरएसएफ़ के लड़ाकों के बीच संघर्ष ख़त्म होने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं. इस लड़ाई से जान-बचाकर भागे लाखों लोग, अपने बसे-बसाए घर छोड़कर, विषम परिस्थितियों में शरण स्थलों में जीने के लिए मजबूर हैं.   

15 अप्रैल की सुबह, ख़ारतूम में सूडानी नागरिकों की नीन्द, गोलियों की आवाज़ से खुली. "सूडानी सशस्त्र बलों और अर्द्धसैनिक बलों के बीच सशस्त्र संघर्ष" होने की जानकारी के अलावा, और कोई सूचना उपलब्ध नहीं थी. ऐसे में उनके लिए सबसे पहले अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण था.

"तालिया" (सुरक्षा कारणों से नाम बदल दिया गया है) ने, रमज़ान के पवित्र महीने में सभी परिवार वालों को इकट्ठा करने की जो योजना बनाई थी, वो पूरी तरह धूल में मिल गई.  

तालिया बताती हैं, “मैं पाँच साल से सूडान नहीं गई थी और अपने परिवार में किसी से नहीं मिल पाई थी. लड़ाई के पहले दो दिनों में, मैं अपने बेटों तक नहीं पहुँच पाई. वे केवल दो गली दूर, अपने चचेरे भाइयों के घर गए थे. लेकिन गोलियों से बचकर उनके पास जाने का कोई रास्ता नहीं था. हर बार जब हम बचने के लिए फ़र्श पर लेटते, तो मेरे ज़ेहन में अपने बच्चों का ख़याल आता रहता कि उनके लिए अपनी माँ से दूर रहते हुए गोलियों की भयावह आवाज़ें सुनना कितना पीड़ादायक होगा.”

कुछ ही समय बाद, शहर के अधिकांश हिस्सों में बिजली और पानी की आपूर्ति ठप हो गई और कुछ ही घंटों में संघर्ष बढ़ गया. आसमान में मंडराते लड़ाकू विमान और गोलाबारी की आवाज़ें चारों-तरफ़ गूंज रही थीं. सभी नागरिक, पर्याप्त भोजन, पानी, बिजली, और दवाओं के बिना, घरों के अन्दर फँसकर रह गए थे.

दस दिनों तक लगातार संघर्ष से जूझने के बाद, देश के बहुत से अन्य लोगों की तरह, तालिया और उनके परिवार ने भी सब कुछ पीछे छोड़कर मिस्र जाने का मुश्किल फ़ैसला लिया.

सूडान में लड़ाई के कारण परिवहन एक बड़ी चुनौती रही है.
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तालिया बताती हैं. “किसी को भी अपना घर छोड़ना अच्छा नहीं लगता, लेकिन हम कर भी क्या सकते थे? हर दिन ऐसी ख़बरें सुनने को मिलती थीं कि पास के किसी घर या इमारत पर बमबारी हुई है, तो हम और क्या करते?”

60 साल पहले उनके दादा, जोकि एक वास्तुकार थे, उन्होंने बड़े चाव से यह घर बनाया था. उसे छोड़ना उनके लिए दिल तोड़ने वाला अनुभव था.

वो बताती हैं, “मेरी माँ की शादी भी इसी घर में हुई. मेरी सभी बुआओं, भाई और बहन की शादियाँ भी इसी घर में हुईं. वहाँ हमारी अनगित यादें भरी पड़ी हैं. हम बस उन्हीं यादों को पहचानते हैं, मेरी सारी बुआएँ, चाचा, चचेरे भाई - हम सभी अपने जीवन के किसी न किसी मोड़ पर इस घर में रहे हैं. यह कभी ख़ाली नहीं रहा. ऐसा पहली बार ही हुआ है.”

तीस दिन बीत चुके हैं और युद्ध समाप्त होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं. युद्ध, दारफ़ूर, उत्तरी कोर्डोफ़न और नील राज्य तक फैल गया है. ये वो प्रान्त हैं जो वर्षों के विनाशकारी संघर्ष और आर्थिक अस्थिरता से पहले से ही कमज़ोर स्थिति में हैं.

विभिन्न युद्धविराम समझौतों की घोषणा के बावजूद, युद्धरत पक्ष लड़ना जारी रखे हुए हैं, जिससे चोटों व विस्थापन में वृद्धि हुई है और मृतक संख्या संख्या बढ़ती जा रही है. कम से कम 604 लोग मारे गए हैं और 5,100 घायल हुए हैं.

UNHCR के अनुसार, 3 लाख 34 हज़ार लोगों के आन्तरिक रूप से विस्थापित होने का अनुमान है, और एक लाख से अधिक लोगों ने भागकर पड़ोसी देशों में शरण ली है.

संघर्ष का असर, पड़ोसी देशों में भी गम्भीरता से महसूस किया जा रहा है. लीबिया, मिस्र, चाड, मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, दक्षिण सूडान, इथियोपिया और इरिट्रिया, सूडान की सीमा से लगे देश हैं. मिस्र जैसे कुछ देशों ने सीमाएँ खोल देने की घोषणा भी की है.

मिस्र के विदेश मंत्रालय का कहना है कि 73 हज़ार 684 लोग मिस्र में प्रवेश कर चुके हैं, जिनमें 68 हज़ार 698 सूडानी और 4,986 अन्य देशों के नागरिक शामिल हैं.

सूडान में लड़ाई छिड़ने के बाद से इधर-उधर घूमना नए ख़तरे लेकर आया है.
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मिस्र जाने के लिए तालिया के परिवार को आसमान छूते बस किराए और बसों व ईंधन की कमी का सामना करना पड़ा.

"युद्ध के पहले दिन से, टिकट की क़ीमतें दस गुना बढ़ गईं हैं. इतने दाम चुकाने के बाद भी सीट मिलना मुश्किल था. हम लगभग 30 लोग थे, और किसी को भी पीछे नहीं छोड़ सकते थे.”

सूडान में लोग दशकों में अपने सबसे ख़राब मानवीय संकट से गुजर रहे हैं. संघर्ष बड़े पैमाने पर विस्थापन का कारण बन रहा है और आगे विस्थापितों की संख्या और बढ़ने की आशंका है.

यूएनडीपी व उनके सहयोगी और संयुक्त राष्ट्र की अन्य एजेंसियाँ, आवश्यक बुनियादी सेवाओं, महत्वपूर्ण चिकित्सा देखभाल, ऊर्जा एवं पानी की आपूर्ति पहुँचाने के लिए राहत कार्रवाई कर रही हैं.

सीमाओं पर पानी, भोजन और चिकित्सा देखभाल की मांग दिनों-दिन बढ़ रही है. संयुक्त राष्ट्र, सीमा पार करने वाले अधिक से अधिक लोगों की सहायता के लिए, सभी देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है.

घर छोड़ने का निर्णय लेने के बाद, तलिया के परिवार को सूडानी-मिस्र सीमा पर 32 घंटे लम्बा इन्तेज़ार करना पड़ा. फिर भी उनका परिवार अपने-आप को भाग्यशाली मानता है कि अन्य लोगों के मुक़ाबले, वो कम से कम बाहर आने में तो सक्षम हुए.

तालिया बताती हैं, "मैं डर गई थी कि हम सीमा से बाहर नहीं जा पाएंगे. हमारे साथ बच्चे और बीमार बुज़ुर्ग थे. मेरे सामने कितनी औरतें बेहोश हुईं, मैं उनकी गिनती तक भूल गई हूँ. सीमा पर स्थिति भयानक है.”

क्षेत्र में व्याप्त नाज़ुक स्थिति बदतर होती जा रही है. अनेक क्षेत्रों में आवश्यक सेवाएँ प्रभावित हुई हैं और संघर्ष एवं सामूहिक लूटपाट के कारण हुए नुक़सान के परिणामस्वरूप, सरकारी संस्थान और मानवीय व विकास एजेंसियाँ कारर्वाई करने में असमर्थ हैं.

जितनी जल्दी हो सके पुनर्बहाली व पुनर्निर्माण शुरू होना चाहिए. आगे बढ़ने का एकमात्र तरीक़ा, युद्ध रोकना और सूडान और वहाँ के लोगों के लिए शान्ति स्थापित करना होगा.