आबादी वृद्धि पर भय फैलाने से बचें, और महिला अधिकारों को पहचानें - UNFPA
यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी (UNFPA) ने बुधवार को प्रकाशित अपनी एक नई रिपोर्ट में आगाह किया है कि विश्व जनसंख्या में वृद्धि के मुद्दे पर चिन्ता या भय फैलाने वाले वृतान्तों से बचा जाना होगा, और महिलाओं के शरीरों को सरकारी नीतियों का बन्धक बनने से भी रोकना होगा.
The world population is at 8 billion.
Are there too many people? Too few?
These are the wrong questions.
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UNFPA
यूएन एजेंसी ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में बताया है कि विश्व आबादी आठ अरब से ज़्यादा होना, अभूतपूर्व प्रगति का द्योतक है.
मगर, इससे चिन्ताएँ भी उपजी हैं और अधिक संख्या में देशों की सरकारें अब प्रजनन दरों मे बदलाव लाने की कोशिश कर रही हैं.
नवम्बर 2022 में विश्व आबादी आठ अरब होने की ख़बर को, इस नज़रिए से नहीं देखा गया था.
उन्होंने बताया कि, “अनेक समाचार शीर्षकों में एक ऐसी दुनिया के प्रति आगाह किया, जोकि अत्यधिक आबादी के भार से डगमगा रही हो, और जिससे व्यक्तियों के अधिकार व उनमें निहित सम्भावनाएँ आसानी से नेपथ्य में अदृश्य हो जाएंगी.”
“हम देखते हैं कि जन्म दरों को एक समस्या, और एक समाधान के रूप में देखा जाता है और उन लोगों के निर्णय-अधिकार को ध्यान में नहीं रखा जाता, जो जन्म दे रहे होते हैं.”
यूएन एजेंसी ने कहा कि आबादी का आकार चाहे जैसा भी हो, समावेशी और फलते-फूलते समाजों का निर्माण किया जा सकता है.
लेकिन इसके साथ, आबादी में बदलाव को ध्यान में रखते हुए योजनाएँ बनाने और सोच में बड़े बदलाव लाने की तैयारी भी करनी होगी.
यूएन एजेंसी की कार्यकारी निदेशक नतालिया कानेम ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा है कि प्रजनन सम्बन्धी स्वायत्तता और स्वस्थ जीवन के बीच सम्बन्ध एक ऐसी सच्चाई है, जिसे नकारा नहीं जा सकता है.
“जैसे-जैसे महिलाएँ अपने शरीरों और जीवन के बारे में चयन करने के लिए सशक्त बनती हैं, वे और उनके परिवार फलते-फूलते हैं और समाज भी फलते-फूलते हैं.”
तथ्यों पर नज़र
आँकड़े स्पष्टता से दर्शाते हैं कि विश्व भर में लाखों-करोड़ों महिलाएँ इस विषय में स्व-निर्णय के अधिकार से वंचित हैं.
क़रीब 24 प्रतिशत महिलाएँ व लड़कियाँ, यौन सम्बन्धों के लिए इनकार कर पाने में असमर्थ हैं, और 11 प्रतिशत, गर्भनिरोधक उपाय अपनाने के लिए निर्णय नहीं ले पाती हैं.
यह रिपोर्ट तैयार करते समय आठ देशों का एक सर्वेक्षण किया गया, जोकि दर्शाता है कि जो लोग जनसंख्या वृद्धि के मुद्दे पर मीडिया से जानकारी प्राप्त करते हैं या बातचीत का हिस्सा हैं, वे इस वृद्धि को बहुत अधिक मान सकते हैं.
यूएन जनसंख्या कोष के अनसार, जनसांख्यिकी रुझान इससे कहीं अधिक बड़ी तस्वीर पेश करते हैं.
उदाहरणस्वरूप, विश्व में दो-तिहाई लोग अब उन देशों में रह रहे हैं, जहाँ प्रजनन दरें कम हैं. वर्ष 2050 तक, विश्व आबादी में होने वाली 50 फ़ीसदी सम्भावित वृद्धि केवल आठ देशों में होगी.
यूएन जनसंख्या कोष ने सचेत किया है कि अक्सर व्यक्तियों के प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी लक्ष्यों को दबाया जाता है – अनियोजित गर्भावस्था के कारण, गर्भनिरोधक उपायों या गुणवत्तापरक प्रसूति देखभाल की सुलभता में कमी की वजह से, प्रजनन क्षमता में कमी के कारण या फिर आर्थिक अस्थिरता की वजह से.
इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के लिए प्रजनन दरों पर दोषारोपण करने से, विश्व में कार्बन उत्सर्जन के लिए सर्वाधिक ज़िम्मेदार देशों की जवाबदेही तय करने में विफलता का सामना करना पड़ेगा.
विश्व आबादी आठ अरब से अधिक पहुँच गई है, मगर साढ़े पाँच अरब लोगों के पास कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त आय ही नहीं है.
लैंगिक समानता अहम
संगठन के अनुसार, जनसंख्या परिवर्तन प्रबन्धन और सुदृढ़ समाजों के निर्माण के लिए सर्वोत्तम समाधान, लैंगिक समानता को बढ़ावा देना है.
यूएन एजेंसी प्रमुख के अनुसार, यह एक ऐसा समाधान है, जिसे अक्सर नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है.
“बुज़ुर्ग हो रहे, और कम-प्रजनन दर वाले देशों में, श्रम उत्पादकता सम्बन्धी चिन्ताओं के बीच, कार्यबल में लैंगिक समता को प्राप्त करना, उत्पादकता में बेहतरी लाने और आय वृद्धि का सर्वोत्तम रास्ता है.”
“ऊँची प्रजनन दर वाले देशों में, माना जाता है कि शिक्षा व परिवार नियोजन से सशक्तिकरण के ज़रिए आर्थिक प्रगति और मानव पूंजी विकास के रूप में विशाल लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं.”
शारीरिक स्वायत्तता के साथ शुरुआत
नतालिया कानेम ने कहा कि उनका संगठन शारीरिक स्वायत्तता को साकार करने के लिए वृहद प्रयासों की पुकार लगा रहा है, जिसकी एक वजह, सर्वजन के लिए यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य व अधिकारों को समर्थन सुनिश्चित करना है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि आबादी के विषय में सभी प्रकार की बातचीत इसी बिन्दु से शुरू होनी चाहिए.
यूएन एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में देशों की सरकारों से मानवाधिकारों को सर्वोपरि रखने, पेंशन व स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को मज़बूती प्रदान करने, अच्छे स्वास्थ्य के साथ बुज़ुर्ग होने को बढ़ावा देने, प्रवासियों के अधिकारों की रक्षा करने और जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों में कमी लाने के लिए प्रयासों का आग्रह किया है.