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‘श्रीलंका के आर्थिक संकट पर, वैश्विक ध्यान की दरकार’

श्रीलंका में लोग खाद्य पदार्थों और ईंधन की बढ़ती क़ीमतों और ज़रूरी चीज़ों की भारी क़िल्लत के बीच, अपनी खाद्य और पोषण आवश्यकताएँ पूरी करने में, संघर्ष कर रहे हैं.
© WFP/Josh Estey
श्रीलंका में लोग खाद्य पदार्थों और ईंधन की बढ़ती क़ीमतों और ज़रूरी चीज़ों की भारी क़िल्लत के बीच, अपनी खाद्य और पोषण आवश्यकताएँ पूरी करने में, संघर्ष कर रहे हैं.

‘श्रीलंका के आर्थिक संकट पर, वैश्विक ध्यान की दरकार’

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक समूह ने बुधवार को अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से एक अपील में कहा है कि श्रीलंका को इस समय और ज़्यादा सहायता व समर्थन दिये जाने की आवश्यकता है क्योंकि देश आर्थिक संकटों और राजनैतिक उथल-पुथल के दौर से गुज़र रहा है.

इन 9 मानवाधिकार विशेषज्ञों ने एक वक्तव्य में कहा है, “श्रीलंका में आर्थिक बिखराव पर तत्काल वैश्विक ध्यान दिये जाने की दरकार है, और ये केवल मानवीय सहायता एजेंसियों के नज़रिये भर से पर्याप्त नहीं है, मगर अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, निजी क़र्ज़दारों और अन्य देशों को, श्रीलंका की मदद के लिये तत्काल आगे आना होगा.”

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इन मानवाधिकर विशेषज्ञों ने श्रीलंका में रिकॉर्ड उच्च स्तर की मुद्रा स्फीति, उपभोक्ता वस्तुओं की आसमान छूती क़ीमतों, बिजली की क़िल्लत, ठप कर देने वाले ईंधन संकट और आर्थिक बिखराव पर चिन्ता व्यक्त की है, जबकि देश असाधारण राजनैतिक उथल-पुथल का भी सामना कर रहा है.

लम्बे खिंचते संकट

श्रीलंका में, बुधवार को सांसदों ने छह बार प्रधानमंत्री रह चुके रनिल विक्रमसिंघे को देश के नए राष्ट्रपति के रूप में चुना.

पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्सा ने गत सप्ताह अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था और देश छोड़कर भाग गए थे. ये ऐसे समय हुआ जब सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों ने राजधानी कोलम्बो में सरकारी इमारतों पर हमला भी किया था.

श्रीलंका में खाद्य पदार्थों, ईंधन, दवाइयों और अन्य आवश्यक वस्तुओं की भारी क़िल्लत के विरोध में मार्च 2022 में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन भड़क उठे थे.

ये स्थिति, व्यापक टैक्स कटौतियों और क़र्ज़ अदायगी जैसे आर्थिक सुधारों के कारण और ज़्यादा जटिल हो गई, जिनसे देश के विदेशी मुद्रा भण्डार को भारी झटका लगा.

ढाँचागत खाइयाँ हुई उजागर

मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि इन संकटों ने मानवाधिकारों पर गहरा असर छोड़ा है. खाद्य और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच लम्बे समय तक बाधित रहने के कारण, लोगों पर बीमारियों के साथ प्रभाव पड़े हैं, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएँ भी व्यापक रूप से प्रभावित हुई हैं जिन्हें जीवन-रक्षक सहायता की गम्भीर आवश्यकता है.

विदेशी क़र्ज़ और मानवाधिकार मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की स्वतंत्र विशेषज्ञ अतिया वारिस का कहना है, “ हमने बार-बार देखा है कि क़र्ज़ संकट ने देशों पर किस तरह गम्भीर व्यवस्थागत परिणाम छोड़े हैं, इनसे वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में गहराई से बैठी ढाँचागत खाइयाँ उजागर हुई हैं, और उनके कारण मानवाधिकारों का क्रियान्वयन प्रभावित हुआ है.”

अप्रैल में, यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने श्रीलंका सरकार से, देश में शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों के दौरान लोगों के शान्तिपूर्ण ढंग से सभाएँ करने के बुनियादी अधिकार की गारण्टी देने का आग्रह किया था.

उस समय हज़ारों लोग भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट से निपटने में नाकामी के मुद्दे पर, राष्ट्रपति कार्यालय के सामने एकत्र होकर, राष्ट्रपति के इस्तीफ़े की मांग कर रहे थे.

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने देश भर में भड़की हिंसा की निन्दा भी की, जिसके कारण कम से कम सात लोगों की मौत हुई है.