'बेलारूस भय और मनमानेपन के माहौल में जकड़ा'

संयुक्त राष्ट्र की एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ अनाइस मैरिन ने आगाह करते हुए कहा है कि बेलारूस में मानवाधिकारों की बिगड़ती स्थिति ने, देश को भय और मनमानी व्यवस्था की जकड़ में लेना जारी रखा हुआ है.
बेलारूस में मानवाधिकार स्थिति पर विशेष रैपोर्टेयर अनाइस मैरिने बुधवार को जिनीवा में मानवाधिकार परिषद में अपनी वार्षिक रिपोर्ट पेश करते हुए, ऐसी सरकारी नीतियों की तरफ़ ध्यान दिलाया जिनके माध्यम से व्यवस्थागत रूप में क़ानूनों और सिविल व राजनैतिक अधिकारों पर प्रतिबन्धों को और ज़्यादा कड़ा बनाया गया है.
The human rights situation in #Belarus continues to deteriorate dangerously, engulfing the country in a climate of fear and arbitrary rule as systematic #violations and #impunity persist, expert Anaïs Marin said in her annual report @UN_HRC.👉 https://t.co/zZhHQN00G1 pic.twitter.com/K5VjqSWW7K
UN_SPExperts
उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से यही रुझान जारी रहा है जब यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने ऐसे लाखों प्रदर्शनकारियों पर हुए दमन प्रयोग की निन्दा की थी जिन्होंने अगस्त 2020 में हुए राष्ट्रपति पद के चुनावों के नतीजों का विरोध किया था.
मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा, “निसन्देह दुनिया का ध्यान विश्व भर में अनेक तरह की संकटपूर्ण स्थितियों पर टिका हुआ है, फिर भी मेरा ये कहना है कि बेलारूस में मानवाधिकार स्थिति को नज़रअन्दाज़ करते हुए पीछे नहीं धकेला जा सकता.”
विशेष रैपोर्टेयर ने मानवाधिकारों पर दमन का एक ताज़ा उदाहरण - 27 फ़रवरी को कराए गए संवैधानिक जनमतसंग्रह के रूप में दिया. उन्होंने रेखांकित किया कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव था और मतदान के दौरान गम्भीर हनन हुए, जिसे स्वतंत्र और निष्पक्ष क़तई नहीं कहा जा सकता.
अनाइस मैरिन ने कहा कि इस जनमतसंग्रह के ज़रिये जो सुधार शुरू किये गए हैं उनसे बेलारूस के नागरिकों के मानवाधिकारों के प्रयोग में आने वाली बाधाएँ, मज़बूत और व्यवस्थागत होंगी.
उससे भी ज़्यादा, संशोधित अपराध दण्ड संहिता, शान्तिपूर्ण सभा करने, संगठन बनाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताओं को और भी ज़्यादा प्रतिबन्धित करेगी.
उन्होंने कहा, “मैं एक ऐसे क़ानून को मनमाने तरीक़े से लागू करने के बारे में गम्भीर रूप से चिन्तित हूँ जो पहले से ही प्रतिबन्धक है.”
यूएन विशेषज्ञ ने ध्यान दिलाया कि मौजूदा संवैधानिक प्रावधान के अनुसार केवल बहुत गम्भीर अपराधों के मामलों में ही एक अपवाद के रूप में मृत्युदण्ड पर विचार हो सकता है, मगर इस प्रावधान के उलट, अपराध दण्ड संहिता में संशोधन के माध्यम से मृत्युदण्ड के दायरे में, ऐसे अपराधों की योजना बनाने और उन्हें अंजाम देने को भी शामिल कर दिया है, जिन्हें देश ‘आतंकवादी गतिविधि’ समझता है.
उन्होंने कहा, “मैं बहुत चिन्तित हूँ कि ‘आतंकवादी गतिविधियों’ की व्यापक और अस्पष्ट परिभाषाओं के दायरे में ऐसी गतिविधियाँ भी शामिल की जा सकती हैं जो बुनियादी अधिकारों का प्रयोग करने के लिये की जाएँ.”
विशेष रैपोर्टेयर ने अपनी रिपोर्ट में ऐसे क़ानूनों, नीतियों और आचरण का रिकॉर्ड दर्ज किया है जिनके परिणामस्वरूप स्वतंत्र ग़ैर-सरकारी संगठनों, मीडिया और सांस्कृतिक संगठनों का वास्तव में सफ़ाया हो गया है.
रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी अधिकारियों ने विभिन्न तरह के दमनात्मक तरीक़ों से, मानवाधिकार पैरोकारों और वकीलों के वैध और अति महत्वपूर्ण काम को बाधित कर दिया है.
यूएन विशेषज्ञ ने कहा, “सरकार के लिये तमाम तरह की कल्पनात्मक या वास्तविक चुनौती को ख़त्म करने के लिये, व्यवस्थागत व सोची-समझी नीति के परिणाम स्वरूप, नागरिक स्थान में सिकुड़ाव और तेज़ हुआ है.”
उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से बेलारूस के ऐसे नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा और उन्हें समर्थन देने का आहवान किया जिन्हें सरकारी दमन और प्रताड़ना के कारण अपना देश छोड़ने के लिये विवश होना पड़ा है.
उन्होंने कहा, “व्यवस्थागत मानवाधिकार हनन और उन अपराधों के लिये दण्डमुक्ति ने बेलारूस को मनमानेपन के माहौल और भय ने जकड़ लिया है.”
उन्होंने साथ ही सरकारी अधिकारियों से व्यवस्थागत मानवाधिकार हनन पर तुरन्त रोक लगाने और हनन के तमाम मामलों की त्वरित व स्वतंत्र जाँच कराने का आग्रह किया है. साथ ही, पीड़ितों को न्याय और मुआवज़ा सुनिश्चित करने और अपारधियों को जवाबदेह ठहराने का भी आग्रह किया है.
विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों का नियुक्ति, जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद करती है जो किसी विशेष मानवाधिकार स्थिति या देश की स्थिति की जाँच-पड़ताल करके रिपोर्ट तैयार करते हैं. ये पद मानद होते हैं और इन विशेषज्ञों को उनके कामकाज के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.