बेलारूस को प्रदर्शनकारियों पर ज़ुल्म ढाना बन्द करना होगा
संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बेलारूस सरकार का आहवान किया है 9 अगस्त के राष्ट्रपति पद के चुनाव के मुद्दे पर हो रहे व्यापक प्रदर्शनों के दौरान बन्दी बनाए गए लोगों को प्रताड़ित करना बन्द करे, और उन पुलिस अधिकारियों को न्याय के कटघरे में लाया जाए जिन्होंने अपनी हिरासत में रखे गए प्रदर्शनकारियों की कथित रूप में बेइज़्ज़ती व पिटाई की है.
पूर्वी योरोपीय देश बेलारूस में लम्बे समय से राष्ट्रपति पद पर विराजमान अलेक्ज़ेण्डर लुकाशेन्को के इस्तीफ़े की माँग के साथ मुख्य रूप से शान्तिपूर्ण रैलियाँ निकाली जा रही हैं जिनमें हज़ारों लोगों को बन्दी बनाया गया है.
🇧🇾 UN experts call on #Belarus to stop torturing detainees and bring to justice police officers who reportedly have been humiliating and beating protesters in their custody with impunity. Learn more: https://t.co/BGw6vaQpMM pic.twitter.com/iCaEkpyOo0
UN_SPExperts
अलेक्ज़ेण्डर लुकाशेन्को को सर्वाधिकारवादी राजनीतिज्ञ कहा जाता है. वो हाल ही में छठे कार्यकाल के लिये चुने गए लेकिन विपक्ष का कहना है कि उन चुनावों में धाँधली हुई, जिसके बाद सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर दमन का रास्ता अपनाया है.
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, “पुलिस हिरासत में सैकड़ों लोगों को प्रताड़ित किये जाने और उनके साथ अन्य तरह की ज़्यादतियाँ किये जाने की ख़बरों पर हम बहुत चिन्तित हैं.”
इस सम्बन्ध में उन्होंने ऐसी रिपोर्टों का हवाला भी दिया है जिनमें लगभग 450 मामले दर्ज किये गए हैं.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय द्वारा जारी एक प्रैस विज्ञप्ति में इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बेलारूस में अधिकारियों से आग्रह किया है कि बन्दी बनाए गए लोगों की तुरन्त सूची तैयार की जाए, उन्हें न्यायिक निगरानी में रखा जाए और उनके परिजनों को सूचित किया जाए ताकि जबरन ग़ायब किये जाने से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
प्रताड़ना के लिये कोई दलील नहीं
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि प्रताड़ना को किसी भी कारण से सही नहीं ठहराया जा सकता. साथ ही लोगों को जबरन ग़ायब किये जाने की गतिविधि को किसी भी कारण से न्यायोचित या स्वीकार्य नहीं ठहराया जा सकता.
इसके लिये आन्तरिक राजनैतिक अस्थिरता या फिर कोई सार्वजनिक आपदा जैसी किसी भी स्थिति की दलील क़तई स्वीकार नहीं की जा सकती.
संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को तुरन्त रिहा किये जाने का भी आहवान किया.
उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि पत्रकारों और राहगीरों सहित लगभग छह हज़ार 700 लोगों को हाल के सप्ताहों के दौरान बन्दी बनाया गया है, और शनिवार को तो सरकार ने 17 पत्रकारों की मान्यता समाप्त कर दी जो विदेशी मीडिया संस्थानों के लिये काम करते हैं.
अन्धाधुन्ध गिरफ़्तारियाँ जारी
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सप्ताहान्त के दौरान राजधानी मिन्स्क में शनिवार को अन्धाधुन्ध गिरफ़्तारियाँ किये जाने पर भी चिन्ता जताई है जब महिलाओं की एक शान्तिपूर्ण रैली निकाली गई थी.
रविवार को भी अनेक नगरों में शान्तिपूर्ण प्रदर्शन किये गए थे.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि देश की सरकारी एजेंसियों द्वारा लोगों को उनकी स्वतन्त्रता से वंचित किये जाने को स्वीकार करने में नाकामी और लोगों की गिरफ़्तारियों को दर्ज करने से इनकार करना लोगों को जबरन ग़ायब किये जाने की परिभाषा के दायरे में आता है, चाहे ऐसा छोटी अवधि के लिये ही क्यों ना किया गया हो.
प्रैस विज्ञप्ति के अनुसार वैसे तो लापता या ग़ायब सूचित किये गये ज़्यादातर लोगों के बारे में जानकारी मिल गई है, मगर कम से कम छह व्यक्तियों के स्वास्थ्य के बारे में अभी कोई जानकारी हासिल नहीं हुई है.
इनके अलावा महिलाओं और बच्चों के साथ यौन हिंसा व बलात्कार किये जाने की भी ख़बरें मिली हैं.
सरकार को जवाबदेही दिखानी होगी
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ज़ोर देकर कहा कि बेलारूस सरकार को पूर्ण और निष्पक्ष जाँच कराने के साथ-साथ दोषियों को न्याय के कटघरे में लाना होगा, और पीड़ितों और उनके परिजनों को मुआवज़ा सुनिश्चित किया जाना होगा.
उन्होंने कहा, “सरकार के स्तर पर जवाबदेही के लिये संकल्प दिखाए बिना कोई न्याय सुनिश्चित नहीं किया जा सकता और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में राहत नहीं पहुँचाई जा सकती.”
विशेष रैपोर्टेयर, स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ और कार्यकारी समूह यूएन मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं. ये विशेषज्ञ स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं, और ये संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं, और ना ही उन्हें उनके काम के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.