वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

जलवायु कार्रवाई - सर्वजन को गरिमा, अवसर और समानता वाहन, आमिना जे मोहम्मद

चाड झील में बहुत से मछुआरे भी अपनी आजीविका के लिये काम करते हैं जिनमें महिलाएँ भी शामिल हैं. मगर चाड झील सिकुड़कर केवल 10 प्रतिशत बची है.
UN News/Dan Dickinson
चाड झील में बहुत से मछुआरे भी अपनी आजीविका के लिये काम करते हैं जिनमें महिलाएँ भी शामिल हैं. मगर चाड झील सिकुड़कर केवल 10 प्रतिशत बची है.

जलवायु कार्रवाई - सर्वजन को गरिमा, अवसर और समानता वाहन, आमिना जे मोहम्मद

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद का कहना है कि जलवायु कार्रवाई, सर्वजन के लिये, हरित व समान भविष्य की ख़ातिर, एक बदलाव वाहन बन सकती है. उन्होंने हाल ही में एक TED वार्ता में, सभी जगह के लोगों का आहवान किया कि वो अपने नेतृत्वकर्ताओं से, वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के उनके वादों पर अमल करने की मांग करें.

उप प्रमुख आमिना जे मोहम्मद ने, स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में हाल ही में सम्पन्न हुए संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन कॉप26 के मौक़े पर इस प्रस्तुति में, ज़्यादा वित्तीय संसाधनों के आबण्टन और प्रतिबद्धताएँ व एकजुटता की ज़रूरत को भी रेखांकित किया.

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यह टैड वार्ता स्कॉटलैण्ड के एक अन्य शहर ऐडिनबरा में आयोजित की गई और इसका ऑनलाइन प्रसारण दुनिया भर में हुआ.

उन्होंने कहा, “जलवायु परिवर्तन ठहरता नहीं है और ना ही हम रुक सकते हैं.”

जलवायु परिवर्तन की एक अन्य पीड़ित

नाइजीरिया मूल की आमिना जे मोहम्मद ने अपने बचपन को याद करते हुए कहा कि वो अक्सर चाड झील के किनारों पर चहलक़दमी किया करती थीं, जोकि अफ़्रीका में विशाल झीलों में से एक होती थी.

चार देशों के क़रीब तीन करोड़ लोग, चाड झील के फ़ायदों पर निर्भर होते थे.

उस ज़माने में ये झील, समुन्दर की तरह हुआ करती थी. उन्हें लगता था कि ये झील सदैव इसी तरह रहेगी और कभी ख़त्म नहीं होगी. मगर आज ये, पहले की तुलना में, बहुत छोटी सी बची है, अपने विशाल आकार का एक छोटा सा हिस्सा.

उनका कहना था, “ताज़ा पानी की स्रोत, इस झील का 90 प्रतिशत हिस्सा सूख गया है – और इसके साथ ही – करोड़ों लोगों की आजीविकाएँ भी मुरझा गई हैं: किसान, मछुआरे और बाज़ार सम्भालने वाली महिलाएँ - सभी.”
जलवायु परिवर्तन ने, अपनी एक और विनाशकारी भेंट लील ली है.

उन्होंने बताया कि इस नुक़सान को, हारमैटैन धूल भरा तूफ़ान, और ज़्यादा विनाशकारी व व्यापक बना देता है, जोकि अतीत में केवल तीन महीने का धूल भरा व तेज़ हवाओं वाला तूफ़ान हुआ करता था.

त्रासदी की तरफ़ बढ़त

ये धूल भरे तूफ़ान अब हर साल, मौसम से पहले और ज़्यादा विशाल व विनाशकारी रूप में आ रहे हैं. इन तूफ़ानों के मानवीय और पारिस्थितिकी को होने वाले नुक़सान बहुत भीषण हैं, जिनसे रोज़गार ख़त्म हो रहे हैं, भुखमरी बढ़ रही है और लोग विस्थापित हो रहे हैं.

आमिना जे मोहम्मद ने इन हालात को, दमनात्मक निर्धनता व हिंसा के लिये एक उपयुक्त तूफ़ान क़रार दिया, जिसने अतिवाद को जड़ जमाने के लिये उर्वरक धरातल मुहैया कराया है, और शान्ति पर ताबड़तोड़ प्रहार किया है. 

उन्होंने कहा, “बड़े दुख की बात है कि हम दुनिया में कहीं भी नज़र डालें तो, जलवायु तबाही की और भी ज़्यादा दुखद व भयंकर स्थितियाँ नज़र आएंगी.

सूखा, बाढ़ और जंगलों में लगी भीषण आग – ज़िन्दगियाँ और आजीविकाएँ ख़तरे में हैं – जो एक भीषण त्रासदी की ओर बढ़ रहे हैं.”

यूएन उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद का हालाँकि ये भी कहना था कि इस बढ़ते जलवायु संकट के बीच भी, उन्हें मानव परिवार, और तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, अपना वजूद बनाए रखने की इसकी अटूट ललक में, एक उम्मीद भी नज़र आती है 

इसी भावना के साथ, देशों ने, जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता अपनाया है, जिसमें तापमान वृद्धि की सीमा 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

एक महत्वपूर्ण दशक

आमिना जे मोहम्मद ने कहा कि वर्ष 2015 में हुए पेरिस समझौते में, 17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को आगे बढ़ाने की ताक़त समाहित है.

ध्यान रहे कि 17 टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी ), सर्वजन पृथ्वी ग्रह के लिये, एक ज़्यादा समान, न्यायसंगत, और समतामूलक भविष्य की ख़ातिर एक ब्लूप्रिण्ट है. 

यूएन उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद, सऊदी अरब में, मध्य पूर्व हरित पहल के दौरान अपनी बात कहते हुए. (फ़ाइल फ़ोटो)
MGI Summit
यूएन उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद, सऊदी अरब में, मध्य पूर्व हरित पहल के दौरान अपनी बात कहते हुए. (फ़ाइल फ़ोटो)

पेरिस समझौते के लक्ष्य हासिल करने के लिये, वैश्विक अर्थव्यवस्था में, वर्ष 2050 तक कार्बन उत्सर्जन पर क़ाबू पाना ज़रूरी है, जिसके लिये मौजूदा दशक के दौरान, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कम से कम आधी कटौती किया जाना ज़रूरी है.

उन्होंने कहा कि हमें कोयला प्रयोग को अतीत की बात बनाना होगा. इसके लिये धनी देशों में कोयला प्रयोग 2030 तक बन्द करना होगा और अन्य देशों में वर्ष 2040 तक. जी20 समूह के देश, ग्रीनहाउस गैसों से होने वाले कुल प्रदूषण के लगभग 80 प्रतिशत हिस्से के लिये ज़िम्मेदार हैं, इसलिये, इन 20 वैश्विक अग्रणी देशों को ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए, असरदार नेतृत्व दिखाना होगा.

यूएन उप प्रमुख ने कहा कि देशों की सरकारों को जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी (अनुदान) बन्द करनी होगी, और हरित व नील बदलाव के लिये दरकार संसाधन मुहैया कराने होंगे.

एक हरित भविष्य

आमिना जे मोहम्मद ने इस सन्दर्भ में, अफ़्रीका में महान हरित दीवार पहल का ज़िक्र किया. ये महान पहल वर्ष 2007 में शुरू की गई थी जिसके तहत जंगल क्षति को रोकना और सेनेगल से लेकर जिबूती तक, 10 करोड़ पेड़ उगाकर, वनों को बहाल करना शामिल है.

उनकी नज़र में ये महान हरित दीवार, प्रेरणा का एक स्रोत है और इसमें विशाल मानव क्षमता नज़र आती है. 

उन्होंने कहा कि स्पष्ट रूप से, इसके जलवायु लाभ, असीम होंगे. मगर ये योजना, धूल को रेगिस्तान में रखने मात्र से कहीं ज़्यादा है.

“ये पहल, दरअसल 50 करोड़ से भी ज़्यादा लोगों के लिये एक हरित अर्थव्यवस्था गलियारा उत्पन्न करने के लिये है. पुरुष, महिलाएँ, बच्चे सभी के लिये, जोकि स्थानीय मूल्य श्रृंखलाएँ बनाते हैं, अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूत करते हैं, और एक युवा व तेज़ गति से आगे बढ़ता कार्यबल हैं.”

उन्होंने कहा कि आर्थिक अवसरों में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ, करोड़ों लोगों के लिये, भविष्य की ख़ातिर उम्मीद में भी इज़ाफ़ा होता है, और आतंकवाद व अतिवाद के लिये स्थान सिमटता है. 

एक हरित भविष्य

अलबत्ता, वहाँ पहुँचने के लिये धन की आवश्यकता होगी, विशेष रूप में, विकासशील देशों को जलवायु अनुकूलन प्रयासों के लिये, हर साल 100 अरब डॉलर के जलवायु वित्त की उपलब्धता, जिसका वादा धनी देशों ने किया है.

उन्होंने सरकारों से इसमें तेज़ी लाने का आहवान भी किया.

उन्होंने कहा, “एक अन्य तत्व, जिसकी हमें ज़रूरत है - वो है एकजुटता. कभी-कभी हमें एकजुटता की ख़ासी कमी नज़र आती है, मगर हम जानते हैं कि वो मौजूद है.”

वैश्विक एकजुटता के परिणामस्वरूप ही पेरिस जलवायु समझौता और मॉण्ट्रियल प्रोटोकोल सम्भव हुए. ग़ौरततलब है कि 1987 में वजूद में आई - मॉण्ट्रियल प्रोटोकोल एक ऐसी सन्धि है जिसमें ओज़ोन परत को नुक़सान पहुँचाने वाले पदार्थों व तत्वों को प्रतिबन्धित किया गया है. 

यूएन उप प्रमुख ने आगाह करते हुए कहा कि हमें एकजुटता की इस भावना को जीवित बनाए रखना होगा, और हमे ये बिल्कुल अभी करना होगा. अभी बहुत देर नहीं हुई है, मगर मौक़ा और समय, हाथ से निकलते जा रहे हैं.

यूएन उप प्रमुख आमिना जे मोहम्मद की इस TED वार्ता का वीडियो और ऑडियो यहाँ भी उपलब्ध है.