आदिवासी समुदायों के साथ एक नए सामाजिक अनुबन्ध की पुकार
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने सोमवार, 9 अगस्त, को ‘विश्व के आदिवासी लोगों के लिये अन्तरराष्ट्रीय दिवस’ के अवसर पर, इन समुदायों की पीड़ाओं की पहचान करने, विषमताओं का अन्त करने और उनके ज्ञान व बुद्धिमता की पहचान करते हुए, एक नए सामाजिक अनुबन्ध की पुकार लगाई है.
महासचिव गुटेरेश ने इस अवसर पर जारी अपने सन्देश में कहा कि इन उद्देश्यों की पूर्ति में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की एक अहम भूमिका है.
विश्व के 90 देशों में, 47 करोड़ से अधिक आदिवासी लोग रहते हैं, जो कि विश्व आबादी का लगभग छह फ़ीसदी हैं. मगर दुनिया के सबसे निर्धनों में उनकी हिस्सेदारी क़रीब 15 प्रतिशत है.
विश्व में प्रचलित सात हज़ार भाषाओं में अधिकांश आदिवासी समुदायों द्वारा बोली जाती हैं, और ये समुदाय पाँच हज़ार से अधिक संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
यूएन प्रमुख ने आगाह किया कि आदिवासी लोग अब भी व्यापक पैमाने पर हाशिये पर रहने को मजबूर हैं. वे भेदभाव और बहिष्करण से भी पीड़ित हैं.
उन्होंने कहा कि इन गहरी विषमताओं की जड़ उपनिवेशवाद और पितृसत्ता में है, और आदिवासी लोगों के अधिकारों, गरिमा व अधिकारों की शिनाख़्त ना किये जाने से ये और ज़्यादा पनपती हैं.
महासचिव ने कहा, “हमें एक नए सामाजिक अनुबन्ध की आवश्यता है – जिससे उन सभी के अधिकारों, गरिमा व आज़ादियों की बहाली व सम्मान होता हो, जिन्हें लम्बे समय से वंचित रखा गया है.”
एक सामाजिक अनुबन्ध को ऐसी अलिखित सहमति बताया गया है, जिसके ज़रिये समाज, सामाजिक व आर्थिक लाभ पाने के लिये सहयोग सुनिश्चित करते हैं.
“इसके केन्द्र में निष्कपट सम्वाद, आपसी सम्पर्क और बात सुनने की इच्छा को रखा जाना होगा.”
यूएन प्रमुख के मुताबिक़, इस लक्ष्य को साकार करने के लिये ज़रूरी औज़ार पहले से ही मौजूद हैं.
उन्होंने इस क्रम में आदिवासी लोगों के अधिकारों पर यूएन घोषणापत्र और आदिवासी लोगों पर विश्व सम्मेलन के समापन पर जारी दस्तावेज़ का उल्लेख किया है.
अनमोल विरासत
आदिवासी समुदायों के पास अनूठी संस्कृतियों, परम्पराओं, भाषाओं व ज्ञान प्रणालियों का असीम भण्डार है, अपनी ज़मीनों के साथ एक विशेष नाता है और विकास के प्रति अपना परिप्रेक्ष्य और अवधारणा है.
महासचिव गुटेरेश ने क्षोभ जताया कि आधुनिक इतिहास में, आदिवासी लोगों से उनकी ज़मीनों व क्षेत्रों, राजनैतिक व आर्थिक स्वायत्तता और यहाँ तक कि, बच्चों को छीना गया है.
उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदायों की संस्कृतियों व भाषाओं का अपमान किया गया है और उन्हें ख़त्म कर दिया गया है.
यूएन प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि हाल के महीनों में दुनिया ने, उपनिवेशवादियों द्वारा आदिवासी समुदायों पर किये गए अत्याचारों के बारे में जाना है.
“कुछ देशों ने इन जघन्य विरासतों पर माफ़ी, सत्य, आपसी मेल-मिलाप और क़ानूनी व संवैधानिक सुधारों के ज़रिये, इन पर ध्यान देना शुरू किया है. मगर, अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है.”
महासचिव गुटेरेश ने ज़ोर देकर कहा कि दुनिया के 47 करोड़ से अधिक आदिवासी लोगों की, निर्णय प्रक्रिया में स्व-निर्धारण और अर्थपूर्ण भागीदारी से नकारे जाने का कोई बहाना नहीं है.
उनके मुताबिक़, विकास के प्रति आदिवासी लोगों की परिकल्पना को सम्भव बनाने के लिये उनकी स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति की आवश्यकता है.
यूएन प्रमख के अनुसार जलवायु और जैवविविधता संकटों के समाधानों की तलाश करने और संक्रामक बीमारियों को उभरने से रोकने में, आदिवासी ज्ञान की अहमियत को पहचाना जा रहा है.
इसके मद्देनज़र, यह सुनिश्चित किया जाना होगा कि आदिवासी ज्ञान का स्वामित्व और उसे साझा करने का निर्णय आदाविसी समुदायों द्वारा किया जाए.
23 दिसम्बर 1994 को यूएन महासभा ने 49/214 प्रस्ताव के ज़रिये, 9 अगस्त को ‘विश्व के आदिवासी लोगों के लिये अन्तरराष्ट्रीय दिवस’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी.
यह दिवस वर्ष 1982 में यूएन आदिवासी आबादी कार्यसमूह की पहली बैठक की स्मृति में मनाया जाता है, जो इसी दिन आयोजित की गई थी.