अन्तरराष्ट्रीय दशक के ज़रिये, आदिवासी भाषाओं को सहेज कर रखने के प्रयास
संयुक्त राष्ट्र ने शुक्रवार को ‘आदिवासी भाषाओं के अन्तरराष्ट्रीय दशक’ की शुरुआत की है, जिसके ज़रिये इन भाषाओं को लुप्त होने से बचाने के प्रयासों को बढ़ावा दिया जाएगा.
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित करके, 2022 से 2032 के बीच की अवधि को आदिवासी भाषाओं के अन्तरराष्ट्रीय दशक के रूप में मनाये जाने की घोषणा की थी.
Indigenous Peoples are guardians to almost 80% of the world’s remaining biodiversity.
If we are to successfully protect nature, we must listen to indigenous peoples, and we must do so in their own languages.
#IndigenousLanguages
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UN_PGA
संयुक्त राष्ट्र लम्बे समय से आदिवासी समुदायों के अधिकारों, उनके पारम्परिक ज्ञान व भाषाओं के संरक्षण के लिये प्रयासरत है, जिन्हें अनूठी संस्कृतियाँ व प्रथाएँ विरासत में मिली हैं, और जिनका पर्यावरण से गहरा नाता है.
यूएन महासभा के 77वें सत्र के लिये अध्यक्ष कसाबा कोरोसी ने कहा कि आदिवासियों की भाषाओं को सहेज कर रखना ना केवल इन समुदायों के लिये अहम है, बल्कि सारी मानवता के लिये भी आवश्यक है.
“लुप्त हो जाने वाली हर एक आदिवासी भाषा के साथ ही, उससे जुड़ा विचार, संस्कृति, परम्परा और ज्ञान भी खो जाता है.”
“यह इसलिये मायने रखता है चूँकि हमें पर्यावरण के साथ अपने सम्बन्ध में आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है.”
आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के यूएन कार्यालय के अनुसार, आदिवासी समुदाय, विश्व आबादी के छह फ़ीसदी से भी कम है, मगर उनमें विश्व की छह हज़ार 700 से अधिक भाषाओं में से चार हज़ार बोली जाती हैं.
मगर, विशेषज्ञों का मानना है कि इस सदी के अन्त तक, इनमें से लगभग आधी भाषाओं के लुप्त हो जाने की आशंका है.
चेतावनी की घंटी
महासभा प्रमुख हाल ही में माँट्रियाल में यूएन जैवविविधता सम्मेलन से लौटे हैं. उन्होंने भरोसा जताया कि यदि प्रकृति के संरक्षण प्रयासों को सफल बनाना है, तो हमें आदिवासी आबादी को सुनना होगा, और हमें ऐसा उन्हीं की भाषाओं में करना होगा.
कसाबा कोरोसी ने खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के आँकड़ों का उल्लेख करते हुए बताया कि आदिवासी लोग, विश्व में शेष जैवविविधात के लगभग 80 फ़ीसदी के रखवाले हैं.
“इसके बावजूद, हर दो सप्ताह में, एक आदिवासी भाषा ख़त्म हो जाती है. इससे चिन्ता की घंटी बजनी चाहिए.”
महासभा प्रमुख ने सभी देशों से आदिवासी समुदायों के साथ मिलकर कार्य करने का आग्रह किया ताकि उनके अधिकारों की रक्षा की जा सके, जिनमें अपनी भाषाओं में शिक्षा व संसाधनों की सुलभता का अधिकार भी है.
साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाना होगा कि इन समुदायों और उनके ज्ञान का शोषण ना किया जाए.
उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आदिवासी समुदायों के साथ अर्थपूर्ण विचार-विमर्श को बढ़ावा दिया जाना होगा, और उन्हें निर्णय-निर्धारण प्रक्रिया के हर चरण में सम्मिल्लित करना होगा.