वर्ष 2030 तक एड्स ख़ात्मे का लक्ष्य – विषमताएँ दूर करना अहम
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि एड्स के विरुद्ध लड़ाई में मौजूदा विषमताएँ, वर्ष 2030 तक इस सार्वजनिक स्वास्थ्य ख़तरे को जड़ से उखाड़ फेंकने के लक्ष्य के लिये एक बड़ा ख़तरा हैं. शुक्रवार को जारी एक नई रिपोर्ट में एड्स पर जवाबी कार्रवाई में दुनिया को वापिस प्रगति के मार्ग पर लाने के लिये 10 सिफ़ारिशें पेश की गई हैं.
यूएन प्रमुख ने रिपोर्ट में कहा है कि यह ज़रूरी है कि उस चक्र को तोड़ा जाए, जिसमें एड्स के ख़िलाफ़ लड़ाई में कुछ सफलताएँ तो मिलती हैं, मगर इस बीमारी पर पूरी तरह से क़ाबू नहीं पाया जा सकता.
The global AIDS targets for 2020 were missed by a long way, allowing the AIDS pandemic to grow in many regions and countries.In a new report released ahead of #HLM2021AIDS, the @UN Secretary-General calls for an urgent course correction.Read it here 👉🏾 https://t.co/RTLTcDF5MK pic.twitter.com/9NOBBaM70f
UNAIDS
रिपोर्ट दर्शाती है कि कार्रवाई के ज़रिये कुछ आबादी समूहों व स्थानों पर प्रगति के बावजूद, अन्य स्थानों पर एचआईवी की चुनौती बढ़ रही है.
यह रिपोर्ट एड्स पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक बड़ी बैठक होने से कुछ सप्ताह पहले जारी किया गया है.
"विषमताएँ, अहम कारण हैं जिनसे 2020 के वैश्विक लक्ष्य हासिल नहीं किये जा सके. विषमताओं का अन्त करके, कायापलट कर देने वाले नतीजे, एचआईवी के साथ रहने वाले व्यक्तियों, समुदायों व देशों के लिये हासिल किये जा सकते हैं."
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने, वर्ष 2016 में, वर्ष 2020 तक एचआईवी संक्रमण के मामले पाँच लाख से कम पर लाने का लक्ष्य तय किया था.
मगर वर्ष 2020 में यह संख्या 17 लाख थी, यानि लक्ष्य से तीन गुना से भी अधिक.
इसी प्रकार, वर्ष 2019 में एड्स-सम्बन्धी छह लाख, 90 हज़ार लोगों की मौतें हुईं, जोकि प्रतिवर्ष पाँच लाख से कम मौतों के लक्ष्य से कहीं ज़्यादा है.
एड्स मामलों की यूएन संस्था की प्रमुख विनी ब्यानयिमा ने कहा कि वर्ष 2030 तक, सार्वजनिक स्वास्थ्य ख़तरे के रूप में एड्स के ख़ात्मे का लक्ष्य अब भी हासिल किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि बहुत से देशों ने दर्शाया है कि तथ्य-आधारित रणनीतियाँ और मानवाधिकार केन्द्रित उपाय अपना कर एचआईवी के ख़िलाफ़ लड़ाई में त्वरित प्रगति सम्भव है.
मगर उन्होंने इसके लिये, निडर राजनैतिक नेतृत्व की अहमियत पर बल दिया है, जिससे ऐसी सामाजिक अन्यायों व विषमताओं को दूर करने में मदद मिलेगी, जिनसे कुछ समुदायों व समूहों के लिये एचआईवी संक्रमित होने का ख़तरा बढ़ता है.
रिपोर्ट बताती है कि विषमताओं को बढ़ावा देने वाले सामाजिक व ढाँचागत कारकों से निपटना ज़रूरी है.
उदाहरणस्वरूप, नुक़सानदेह लैंगिक रीतियों से व्याप्त लैंगिक विषमताएँ महिलाओं को, एचआईवी सेवाओं और यौन व प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं के इस्तेमाल से रोकती हैं.
इससे अनचाहे यौन सम्बन्धों को नकारने या सुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाने में उनकी निर्णय-क्षमता पर भी असर पड़ता है.
सिफ़ारिशें पेश
निर्बल, हाशियेकरण का शिकार व आपराधिक समुदायों पर एचआईवी संक्रमण का जोखिम ज़्यादा मंडराता है, क्योंकि उनके पास ज़रूरी जानकारी नहीं है और एचआईवी सेवाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं.
इन समूहों में समलैंगिक पुरुष व अन्य ऐसे पुरुष हैं, जो पुरुषों के साथ सैक्स करते हैं, या फिर नशीली दवाओं का सेवन करने वाले लोग, यौनकर्मी, ट्राण्सजेण्डर, बन्दी और प्रवासी.
रिपोर्ट में एचआईवी एड्स से लड़ाई में कामयाबी के लिये 10 सिफ़ारिशें भी पेश की गई हैं.
इनमें विषमताओं को दूर करने और एचआईवी के जोखिम का सामना कर रहे सभी लोगों तक पहुँचने सहित, अन्य मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है.
इसके तहत, एचआईवी टैस्टिंग और उपचार में कमियों को दूर करने का आग्रह किया गया है.
साथ ही लैंगिक समानता और महिलाओं व लड़कियों के मानवाधिकारों को, प्रयासों के केन्द्र में रखने पर ज़ोर दिया गया है.
अन्य उपायों में, एचआईवी की रोकथाम को प्राथमिकता देने का आग्रह किया गया है – यह सुनिश्चित किया जाना होगा कि जोखिम झेल रहे 95 फ़ीसदी लोगों के पास रोकथाम का विकल्प हो, और बच्चों में नए संक्रमण का उन्मूलन किया जाए.